शनिवार, नवंबर 22, 2014

देश की इस धुंधली तसवीर को।



मैंने अपना मत
दिया था जिसे,
मतगणना में
उसे शिकस्त मिली।

न क्षेत्र देखा
न  जाती
न हवा की तरफ
अपना मत बदला।

दल को मैं
महत्व नहीं देता,
आशवासन,  भाषण
बहुत सुन चुका।

देखा था मैंने
व्यक्तित्व उसका
वो बदल सकता था
देश की इस धुंधली तसवीर को।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (23-11-2014) को "काठी का दर्द" (चर्चा मंच 1806) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. देश की इस धुंधली तस्वीर को कोई एक अकेला इंसान नहीं बदल सकता कुलदीप जी। मेरा ऐसा मानना है कि जब तक देश में रहने वाला हर एक देशवासी अपने देश को अपना घर नहीं मान लेता तब तक इस देश का कुछ नहीं हो सकता। क्यूंकि परिवर्तन की शुरुआत हमेशा पहले खुद से करने की जरूरत होती है।

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