जब कलियुग में भी
होने लगा
सनातन धर्म का
अस्त सूरज...
विदेशी लुटेरे
बनकर राजा
बनाना चाहते थे
राम राज्य को लंका...
वेदों की ज्शिक्षाएं
भूल गये थे सब
पाखंडों का
अंधकार था...
पंडित ज्ञानी
जब न समझा सके
अर्जुनों को
वो गीता ज्ञान...
धर्म को बचाने
ईश्वर आये फीर
बनकर Guru Nanak
इस धरा पर...
दस रूपों में
आये नानक
वेदों का ज्ञान
Guru ग्रंथ में समझाया...
नानक के रूप में
प्रेम से समझाया
गोविंद के रूप में
शस्त्र उठाए...
प्रेम की भाषा
जब न समझी
शस्त्रों से
अस्तित्व मिटाया...
की धर्म की
पुनः स्थापना
जय बोलो
Guru Nanak की...
होने लगा
सनातन धर्म का
अस्त सूरज...
विदेशी लुटेरे
बनकर राजा
बनाना चाहते थे
राम राज्य को लंका...
वेदों की ज्शिक्षाएं
भूल गये थे सब
पाखंडों का
अंधकार था...
पंडित ज्ञानी
जब न समझा सके
अर्जुनों को
वो गीता ज्ञान...
धर्म को बचाने
ईश्वर आये फीर
बनकर Guru Nanak
इस धरा पर...
दस रूपों में
आये नानक
वेदों का ज्ञान
Guru ग्रंथ में समझाया...
नानक के रूप में
प्रेम से समझाया
गोविंद के रूप में
शस्त्र उठाए...
प्रेम की भाषा
जब न समझी
शस्त्रों से
अस्तित्व मिटाया...
की धर्म की
पुनः स्थापना
जय बोलो
Guru Nanak की...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-11-2015) को "अपने घर भी रोटी है, बे-शक रूखी-सूखी है" (चर्चा-अंक 2171) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
कार्तिक पूर्णिमा, गंगास्नान, गुरू नानर जयन्ती की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजय गुरुदेव!