[आप सब को पावन पर्व दिवाली की शुभकामनाएं...]
पे राम
तुम दूर रहे
14 वर्षों तक
अंधकार सा लगा
सब को तुम बिन
पर अंधकार नहीं था
न अन्याय था
राजा थे भरत...
वनवास काटकर
जब आये तुम
माएं हर्षित हुई
जंता झूम उठी
पंछियों ने भी
जी भर के खाया
सब ने मिलकर
मनाई दिवाली...
पर आज
न तुम हो
न भरत
न तुम्हारी चरणपादुका।
है केवल
अन्याय, भ्रष्टाचार
भय, हिंसा,
अनैतिकता और आतंकवाद...
हमे विश्वास है
तुम्हारे वचन पर
होती है जब-जब
धर्म की हानी
आते हो तुम
मानव बनकर
इस विश्वास से ही
मनाते हैं हम दिवाली...
सुन्दर सामयिक प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंआपको भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
मेरी ओर से भी दिवाली की आप को असंख्य शुभकामनाएं...
हटाएंतुम दूर रहे
जवाब देंहटाएं14 वर्षों तक
अंधकार सा लगा
सब को तुम बिन
पर अंधकार नहीं था
न अन्याय था
क्या बात है !.....बेहद खूबसूरती से लिखा है कुलदीप जी