मंगलवार, नवंबर 10, 2015

मनाते हैं हम दिवाली...


[आप सब को पावन पर्व दिवाली की शुभकामनाएं...]
 पे राम
तुम दूर रहे
14 वर्षों तक
अंधकार सा लगा
 सब को तुम बिन
पर अंधकार नहीं था
न अन्याय था
राजा थे भरत...
वनवास काटकर
जब आये तुम
माएं हर्षित  हुई
जंता झूम उठी
पंछियों ने भी
जी भर के खाया
सब ने मिलकर
मनाई दिवाली...
पर आज
न तुम हो
न भरत
न तुम्हारी चरणपादुका।
है केवल
अन्याय,  भ्रष्टाचार
भय, हिंसा,
अनैतिकता और  आतंकवाद... 
हमे  विश्वास है
तुम्हारे वचन पर
होती है  जब-जब
धर्म की हानी
आते हो तुम
मानव बनकर
इस विश्वास से ही
मनाते हैं हम दिवाली...

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सामयिक प्रस्तुति ..
    आपको भी दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी ओर से भी दिवाली की आप को असंख्य शुभकामनाएं...

      हटाएं
  2. तुम दूर रहे
    14 वर्षों तक
    अंधकार सा लगा
    सब को तुम बिन
    पर अंधकार नहीं था
    न अन्याय था
    क्या बात है !.....बेहद खूबसूरती से लिखा है कुलदीप जी

    जवाब देंहटाएं

ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !