भारत विभाजन के बाद
उठी चिंगारी वहां
यहां भी।
ज्वाला बन उसने
हाहाकार मचाया यहां
खाक बनाया वहां भी।
यहां की चिंगारी
तो बुझ गयी थी
कुछ ही महिनों में।
वहां चिंगारी आज भी
सुलग रही है
नफरत की हवा से।
चाह कर भी
इस चिंगारी को
बुझा न सके हम।
तुम्हारा ये बारूद का कोष
और ये एक चिंगारी
काफी है तुम्हारे ही विनाश के लिये।
उठी चिंगारी वहां
यहां भी।
ज्वाला बन उसने
हाहाकार मचाया यहां
खाक बनाया वहां भी।
यहां की चिंगारी
तो बुझ गयी थी
कुछ ही महिनों में।
वहां चिंगारी आज भी
सुलग रही है
नफरत की हवा से।
चाह कर भी
इस चिंगारी को
बुझा न सके हम।
तुम्हारा ये बारूद का कोष
और ये एक चिंगारी
काफी है तुम्हारे ही विनाश के लिये।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (12.12.2014) को "क्या महिलाए सुरक्षित है !!!" (चर्चा अंक-1825)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
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