शनिवार, अगस्त 22, 2015

प्रीय तिमिर

मैं और तुम
साथ हैं
तब से
जब से मैं
आया हूं यहां...
क्या कहा था
ईश्वर ने तुमसे
जब तुम्हे मेरे पास
भेजा था
मेरे जन्म के साथ ही...

मुझे तो
याद नहीं
अपने पूर्व जन्म
 की कोई  कहानी
न इस जन्म की
कोई घटना...

मुझे क्यों
मिले तुम ही
मैं ईश्वर को
दोष नहीं दे रहा हूं
    बस पूछ रहा हूं...

मैं तुम्हारे साथ
खुश हूं हमेशा
जैसे निशा
 प्रसन्न है
तुम्हारे साथ...

प्रीय तिमिर
तुमने मुझे
जकड़  रखा है इसकदर
न दीपक के
प्रकाश की आवश्यक्ता
न रात होने का भय...
    

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-08-2015) को "समस्याओं के चक्रव्यूह में देश" (चर्चा अंक-2076) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. प्रीय तिमिर
    तुमने मुझे
    जकड़ रखा है इसकदर
    न दीपक के
    प्रकाश की आवश्यक्ता
    न रात होने का भय...

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कोमल अहसास और खूबसूरत कविता.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं
  4. प्रिय कुलदीप जी -- अंधेरों को मर्मस्पर्शी उद्बोधन मन को छू गया | वह भी इन प्रश्नों के जवाब कहाँ दे पायेगा शायद वह भी नियति के हाथों खिलौना भर है | सस्नेह

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