शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2016

कहीं भी खुशहाली नहीं है।...

 आती है  जब
बसंत पंचमी
झूमती है
समस्त प्रकृति
 हर्षित होता है
हर जीव
गाती है धरा
यौवन के गीत...
 विद्यालय की दिवारें भी
करती हैं प्रतीक्षा
सोचती हैं
होगा उतसव
मां सरस्वती के
जन्मदिवस  पर
पूजा तक भी नहीं होती
बस  वेलेन्टाइन डे की चर्चा...
मां शारदे 
की पूजा से
आती है विद्या
विद्या से विनम्रता,
विनम्रता से पात्रता,    
 पात्रता से धन,
धन से खुशहाली।... 
हम शिक्षित हैं
धन भी हैं
अधिक से ज्यादा
पर संतोष नहीं है।
हम भूल चुके हैं
शिक्षा की देवी को
इसी लिये आज
कहीं भी खुशहाली नहीं है।...

3 टिप्‍पणियां:

  1. सच, पहले जैसा उत्साह भी अब नहीं रहा सरस्वती पूजा मनाने का । लड़के लड़कियाँ तो सरस्वती पूजा को बहाना के रुप में प्रयोग कर रहें हैं V Day आदि मनाने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सच, पहले जैसा उत्साह भी अब नहीं रहा सरस्वती पूजा मनाने का । लड़के लड़कियाँ तो सरस्वती पूजा को बहाना के रुप में प्रयोग कर रहें हैं V Day आदि मनाने के लिए ।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13-02-2016) को "माँ सरस्वती-नैसर्गिक शृंगार" (चर्चा अंक-2251) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    बसन्त पंञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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