सिस्कियाँ लेकर आया सवेरा, उदास है हरेक चेहरा,
सूनी है प्रकृति सारी, आप की जुदायी पर।
न हैं फूलों पर मुस्कान, न गा रहे हैं विहग गान।
नम है देखो सभी नेत्र, आप की जुदायी पर।
झरने की कलकल, तुम्हे बुलाती, पवन विरह गीत सुनाती,
आईना आंसू बहा रहा है, आप की जुदायी पर।
दुखी है आज रजनीकर, कानन, विटप निर्झर,
मेघों में रवि गुम है, आप की जुदायी पर।
दसों दिशाएं हैं उदास, दुखी है धर्ति और आकाश,
मन्दिर में भगवान मऔन है, आप की जुदाई पर।
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंबढ़िया...
अनु
सुन्दर भावभीनी रचना...
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