मंगलवार, सितंबर 18, 2012

आप की जुदाई पर।


सिस्कियाँ लेकर आया सवेरा, उदास है हरेक चेहरा,

सूनी है प्रकृति सारी, आप की जुदायी पर।

 

न हैं फूलों पर मुस्कान, न गा रहे हैं विहग गान।

नम  है देखो सभी नेत्र, आप की जुदायी पर।

 

झरने की कलकल, तुम्हे बुलाती, पवन विरह गीत सुनाती,

आईना आंसू बहा रहा है, आप की जुदायी पर।

 

दुखी है आज रजनीकर, कानन, विटप  निर्झर,

मेघों में रवि गुम है, आप की जुदायी पर।

 

दसों दिशाएं हैं उदास, दुखी है धर्ति और आकाश,

मन्दिर में भगवान मऔन है, आप की जुदाई पर।

3 टिप्‍पणियां:

ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !