मेरी आंखों में जब देखे सपने,
मुझसे बोला मुझे देदो सपने,
पैसा चाहे जितना भी लेलो,
बेच दो मुझे अपने सपने।
पैसे नहीं है तुम्हारे पास,
क्यों सजाये है सुनहरे सपने,
नहीं कर पाओगे पैसे बिना,
पूरे तुम अपने सपने।
क्रोधित होकर बोला मुझसे,
लेले पैसे, देदे सपने।
नहीं नहीं मैं नहीं दूंगा,
अपनी आंखो के सपने,
मैं कंगाल हूं, नहीं है पैसे,
मेरे पास है केवल सपने,
चन्द पैसों में बेच दूं अगर,
अपनी आंखों के सुनहरे सपने,
कल पैसों में भी नहीं मिलेंगे
ऐसे सुन्दर प्यारे सपने।
कभीसोता हूं राज महल में,
कभी देखता हूं गाड़ी के सपने।
करता हूं विवाह अपस्रा से,
देखता हूं कयी रानियों के सपने।
नहीं नहीं मत छीनो मुझसे,
रहने दो मेरी आंखों में सपने,
हम ग्रीब हैं, हमतो बस,
देख सकते हैं केवल सपने।
धन नहीं है, दौलत नहीं है,
हमारे पास है केवल सपने।
संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंलीजिये
जवाब देंहटाएंमैं आ गई
अब आपकी रचना भी प्रकाशित हो जाएगी
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसपने अपने होते है
जवाब देंहटाएंसबसे अनमोल होते है..
बहुत सुन्दर रचना..
:-)
नहीं नहीं मत छीनो मुझसे,
जवाब देंहटाएंरहने दो मेरी आंखों में सपने,..
सच है की आँखों के सपने खुदको जीने का अवसर मिलना चाहिए ...
धन्यवाद आप सब का... मेरी रचना आप ने पढ़ी एवम् टिप्पणी की आभार
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