रविवार, सितंबर 08, 2013

कल तक कहते थे खुद को खुदा...

कल तक कह रहे थे खुद को खुदा,
आज कैसे कहेंगे खुद को इनसान,
औरों को उपदेश देते थे,
नहीं था  खुद को धर्म का ज्ञान...
 श्रधा     से श्रधालू   आते थे,
सिर चर्णों में झुकाते थे,
खुद तो  भूखे रह कर भी,
करते  थे जी भर के दान...

कला बोलने की सीखकर,
कहलाते थे चतुरवेदी,
कुकर्म  ऐसा कभी न करते,
पढ़े होते वेदपुर्आण...

क्या कहा कृष्ण ने, औरों कोसमझाया,
इस पावन धर्म को,  व्यवसाय  बनाया,
जो सिखाया  औरों को, खुद  भी करते,
न होताफिर  ये अंजाम...

न राम ने कभी उपदेश दिये,
केवल उत्तम कर्म किये,
आदर्शों  को श्री राम के,
पूजता है सकल जहान...

8 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
    आभार आपका-

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती,आभार।

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  3. बेनामी10:37 pm

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी लेखक मंच पर आप को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपके लिए यह हिंदी लेखक मंच तैयार है। हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपका योगदान हमारे लिए "अमोल" होगा | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा |

    मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003

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  4. सच कहा है ... राम से सीधी लो लगानी चाहए ... ये बीच के गुरु कुछ नहीं कर पाते अगर लगन सच्ची है तो ...

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
    ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

    जवाब देंहटाएं
  6. कुलदीप भाई ठाकुर इशारों इशारों में आपने सब कुछ कह दिया है -तमोगुण प्रधान प्रवचनकारों के बारे में -

    कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटियन के पास ,

    करेंगे सो भरेंगे तू क्यों भयो उदास।

    दिन में माला जपत हैं ,रात हनत हैं गाय।

    सुन्दर प्रस्तुति है आपकी। बधाई।

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