आती है गोपियां, ग्वाल बाल, आज भी यमुना के तट पर,
कहा था शाम ने आएंगे वो, विश्वास है उन्हे उस वचन पर।
यमुना आज पूछ रही है, शाम तुम कब आओगे,
मैं तुम्हारी दरशन की प्यासी, मुझे दर्श कब दिखाओगे।
एक बार सुनादो प्रभू, मुर्ली में वो मिठी तान,
इन मुर्झाये अधरों पर, आ जायेगी फिर मुस्कान।
शान्त होगी मेरी पीड़ा, जब रास यहां रचाओगे,
मैं तुम्हारी दरशन की प्यासी, मुझे दर्श कब दिखाओगे।
प्राधीन हुआ सारा देश, पर नटवर तुम नहीं आये,
तुम बिन भारत माँ की, रक्षा हम कर न पाये।
क्या मालूम था हमे नटवर, तुम वचन भूल जाओगे,
मैं तुम्हारी दरशन की प्यासी, मुझे दर्श कब दिखाओगे।
मुगलों और फिरंगियों ने, खूब अत्याचार किये,
निर्बल और निर्दोषों को, अमानवीय दन्ड दिये।
मैं सदा यही सोचती थी, तुम संकट से बचाओगे,
मैं तुम्हारी दरशन की प्यासी, मुझे दर्श कब दिखाओगे।
संकट में है आज भारत, डूब रही है धर्म की नयीया,
पूरा करो अपना वचन, भूल न जाना अब कनहिया।
नाथ अब तो जल्दि आओ, और कितनी देर लगाओगे,
मैं तुम्हारी दरशन की प्यासी, मुझे दर्श कब दिखाओगे।
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