तिरंगा तो
लहरा रहा है
सुनो, समझो,
कुछ कह रहा है।
हम भूल रहे हैं
संविधान को
देते हैं गाली
राष्ट्र गान को...
आज हजारों
माखन चोर
पीड़ित हैं
कुपोषण से।
मासूम किशोरों
के सपने
बेबस हैं
कारखानों में...
चाहते थे करना
जो अथक काम
उनके पास
रोजगार नहीं है।
जिन के पास
अनुभव हैं
वो सीमित कर दिये
आश्रमों में...
न जान सकी
जनता अब तक
अपने मत का
मोल ही।
बन गया चुनाव
खेल अब
जीतते हैं
केवल पैसे वाले...
हर तऱफ
भ्रष्टाचार है
संसद देश की
बिलकुल लाचार है।
देखो आज
झुलस रहा है
गणतंत्र भी
धर्म की आग में...
लहरा रहा है
सुनो, समझो,
कुछ कह रहा है।
हम भूल रहे हैं
संविधान को
देते हैं गाली
राष्ट्र गान को...
आज हजारों
माखन चोर
पीड़ित हैं
कुपोषण से।
मासूम किशोरों
के सपने
बेबस हैं
कारखानों में...
चाहते थे करना
जो अथक काम
उनके पास
रोजगार नहीं है।
जिन के पास
अनुभव हैं
वो सीमित कर दिये
आश्रमों में...
न जान सकी
जनता अब तक
अपने मत का
मोल ही।
बन गया चुनाव
खेल अब
जीतते हैं
केवल पैसे वाले...
हर तऱफ
भ्रष्टाचार है
संसद देश की
बिलकुल लाचार है।
देखो आज
झुलस रहा है
गणतंत्र भी
धर्म की आग में...
शुभ संध्या
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता
ज्ञान भी
और अज्ञानता पर
निशान भी
सादर
सार्थक और सामयिक रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , मंगलकामनाएं !
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