सोमवार, सितंबर 21, 2015

यही है सैनिक धर्म मेरा...

मैं और तुम
नहीं  जानते
एक दूसरे को
न मिले कभी
न हम दोनों का
बैर है कोई...

अगर मिलते
दिल्ली या लाहौर में
पूछता तुम से परिचय
परिचय देता अपना भी
संकट में होते
मदद भी  करता...

हो भले ही
तुम भी मुझसे
आज जंग है
दो देशों में
यहां तो  हम  केवल
  शत्रु हैं...

पर आज
हम दोनों का मिलन
रण-क्षेत्र में
हुआ है
हम दोनों को ही आज
सैनिक धर्म निभाना है...

हम दोनों में
जो मारा गया
वो शहीद कहलाएगा
जो  जिवित बचेगा
वो संमान पाएगा
अपने देश में...


न मैं तुमसे
मांग रहा हूं
भिक्षा अपने जीवन की
न जिवित तुम्हे
जाने दूंगा आज
यही है सैनिक धर्म मेरा...

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर ,बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें. और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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