अंजान नहीं, हम जान गये,
हर चेहरे को पहचान गये।
शास्त्रि से देशभक्त आज भी हैं,
वो बेवजह ही बदनाम हो गये...
कहीं क्षेत्रवाद, कहीं वंश वाद,
कोई छाड़ू उठाकर हुआ आवाद,
झूठे वादों सेसिंहासन पाया,
जीतने पर भगवान हो गये...
फूलों के हार भी पहनाए,
चर्णों में तुम्हारे मस्तक झुकाए,
जो कहा, वो कुछ भी न किया,
पांच वर्ष भी तमाम हो गये...
वोट मांगने का बदला है अंदाज,
जान गयी जंता, न मिलेगा ताज,
जनसेवक चाहिये आज हिंद को,
भाषण, नुस्के नाकाम हो गये...
उम्दा ... सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर सम्प्रेषण सीधा साधा हिन्दुस्तानी सा
जवाब देंहटाएंआज के हालात..यही हैें
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंजान गयी जंता, न मिलेगा ताज,
जवाब देंहटाएंजनसेवक चाहिये आज हिंद को,
भाषण, नुस्के नाकाम हो गये...
..बहुत सही कहा आपने .. समय रहते जनता को चेतना जरुरी हैं ..राजनेताओं को गद्दी प्यारी होती है यह बात जनता जितने जल्दी समझ जाय उसी में देश और सबका हित है ..
सटीक रचना
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