मंगलवार, अक्तूबर 11, 2016

विजयदशमी का संदेश यही है।

हम जलाते हैं हर बार,
पुतला केवल रावण का,
जिसने अपनी बहन के अपमान का
बदला लेने की खातिर
सीता जी का हरण किया।
न स्पर्श किया,
न अपमान किया,
अशोक-वाटिका में,
अतिथि सा मान दिया।
हम दशहरे के दिन,
 भूल जाते हैं,
आज के उन रावणों को,
जिन्हें न तीन वर्ष की बेटी की,
मासूमियत दिखती है,
न कौलिज जाने वाली बेटी की,
 मजबूरी ही।
वे केवल मौका पाकर,
उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं।
आज के ये रावण भी,
रावण का पुतला जलाते हैं,
इन्हें दंड दिये बिना,
हम कैसा दशहरा मनाते हैं।
श्री राम हमारे आदर्श हैं,
रावण फिर भी घूम रहे हैं,
हम केवल पुतले जलाकर,
मस्ति में झूम रहे हैं।
रावण मेघनाथ के पुतले जलाना,
विजयदशमी नहीं है,
अधर्मियों को दंडित करना,
विजयदशमी का संदेश यही है।
  

3 टिप्‍पणियां:

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