मैं एकलव्य हूं,
मेरी रुह आहत नहीं हुई,
जब गुरु द्रोणाचार्य ने
अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्नुधारी बनाने के लिये
मुझ से गुरु-दक्षिणा में,
मेरे दाहिने हांथ का अँगूठा मांगा था...
मेरे गुरु ने तो केवल
मेरे दाहिने हांथ का अँगूठा ही मांगा था
जो सहहर्ष मैंने दे दिया था,
आज मेरा नाम तो,
गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन से भी
अधिक आदर से लिया जाता है...
न मेरा जन्म राजवंश में हुआ,
न मेरा ऊंचा कुल था,
न सर्वश्रेष्ठ बनने की कामना,
मेरी गुरु पर श्रधा थी,
एकग्रता ने मुझे पहचान दी
मेरी निष्ठा ही मेरे काम आयी...
आज न मैं हूं,
न मेरे गुरु द्रोणाचार्य
न वो शिक्षा रहीं,
न सत्य को लिखने वाले,
अगर आज मेरे साथ वो अन्याय होता,
तो सत्य दब जाता कागजों में ही...
आज मेरी रुह भी आहत है,
जब देखता हूं, सुनता हूं,
उन गुरुओं के बारे में,
जिनकी निष्ठा पैसे पर है,
जो गुरु-दक्षिणा तो नहीं मांगते,
पर भविष्य से खेलते हैं...
मेरी रुह आहत नहीं हुई,
जब गुरु द्रोणाचार्य ने
अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्नुधारी बनाने के लिये
मुझ से गुरु-दक्षिणा में,
मेरे दाहिने हांथ का अँगूठा मांगा था...
मेरे गुरु ने तो केवल
मेरे दाहिने हांथ का अँगूठा ही मांगा था
जो सहहर्ष मैंने दे दिया था,
आज मेरा नाम तो,
गुरु द्रोणाचार्य और अर्जुन से भी
अधिक आदर से लिया जाता है...
न मेरा जन्म राजवंश में हुआ,
न मेरा ऊंचा कुल था,
न सर्वश्रेष्ठ बनने की कामना,
मेरी गुरु पर श्रधा थी,
एकग्रता ने मुझे पहचान दी
मेरी निष्ठा ही मेरे काम आयी...
आज न मैं हूं,
न मेरे गुरु द्रोणाचार्य
न वो शिक्षा रहीं,
न सत्य को लिखने वाले,
अगर आज मेरे साथ वो अन्याय होता,
तो सत्य दब जाता कागजों में ही...
आज मेरी रुह भी आहत है,
जब देखता हूं, सुनता हूं,
उन गुरुओं के बारे में,
जिनकी निष्ठा पैसे पर है,
जो गुरु-दक्षिणा तो नहीं मांगते,
पर भविष्य से खेलते हैं...
आपका प्रमुख ब्लॉग तलाश करने में काफी समय लगा , समस्त ब्लॉग लिस्टिंग की जगह पर आप उस ब्लॉग को लिस्ट करें जिसपर आप प्रमुखता से लिखते हैं .. .. उससे मित्रों को आसानी होगी !
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं आपको !!