हे भारत
आज तुम बिलकुल अकेले हो,
इस महाभारत के रण में,
न कृष्ण है
न अर्जुन,
न धर्मराज,
आज विदुर भी,
तुम्हारा हित नहीं चाहता।
भिष्म द्रौण
और कृपाचार्य की निष्ठा,
आज मात्रभूमि के प्रति नहीं,
कुर्सी के प्रति है...
आज भी जंग भी,
सिंहासन के लिये ही है,
पर आज के राजा,
तुम्हारी खुशहाली नहीं,
अपनी खुशहाली चाहते हैं,
अब सत्य कोई नहीं बोलते,
न टीवी चैनल, न अखबार,
न लेखक न कवि,
न विद्वान न ज्ञानी,
इस लिये जंता भी भ्रमित है।
सुभाष जैसों को आज भी,
कहीं नजरबंद किया जा रहा है...
आज तुम बिलकुल अकेले हो,
इस महाभारत के रण में,
न कृष्ण है
न अर्जुन,
न धर्मराज,
आज विदुर भी,
तुम्हारा हित नहीं चाहता।
भिष्म द्रौण
और कृपाचार्य की निष्ठा,
आज मात्रभूमि के प्रति नहीं,
कुर्सी के प्रति है...
आज भी जंग भी,
सिंहासन के लिये ही है,
पर आज के राजा,
तुम्हारी खुशहाली नहीं,
अपनी खुशहाली चाहते हैं,
अब सत्य कोई नहीं बोलते,
न टीवी चैनल, न अखबार,
न लेखक न कवि,
न विद्वान न ज्ञानी,
इस लिये जंता भी भ्रमित है।
सुभाष जैसों को आज भी,
कहीं नजरबंद किया जा रहा है...
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 18 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशायद भारत तो वहीं है उसके चाहने वाली नहीं हैं ...
जवाब देंहटाएंएक.दम सही कहा आपने । बहुत ही सटीक रचना । अभिवादन स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंएक.दम सही कहा आपने । बहुत ही सटीक रचना । अभिवादन स्वीकार करें ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर
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