मंगलवार, जून 24, 2014

पावन है गुल...



सुन ऐ बुलबुल,
उस गुल ने,
प्रेम किया था,
केवल तुम से...

बुलबुलें कयी आयी,
सामने उसके,
हृदय में उसके,
केवल तुम थे...

सर्वस्व किया,
तुम पर अर्पण,
न मांगा कुछ भी,
न चहा तुम से....

बुलबुल का स्वार्थ,
देखा सबने,
गुल पावन है,
जग में सब से...

4 टिप्‍पणियां:

  1. बुलबुल का स्वार्थ,
    देखा सबने,
    गुल पावन है,
    जग में सब से...
    ..... निस्वार्थ भाव की ही प्रसंशा है जग में !

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार रचना की प्रस्‍तुति

    जवाब देंहटाएं

ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !