सोचा कैसे कुर्सी पाएं,
"आमआदमी" नाम से पार्टी बनाएं,
सब दलों को भ्रष्ट बताकर,
खुद को इमानदार बताएं...
जहां चुनाव केवल छलावा है,
कुर्सी के लिये बस दिखावा है,
जहां व्याप्त है केवल भ्रष्टाचार,
वहां पटेल, शास्त्रि कहां से आये...
कभी तो की
पद यात्रा,
कभी रथ यात्राएं निकाली,
कभी चले साइकलों पर,
जंता पागल बनती जाए...
आसान नहीं है सिंहासन पाना,
पड़ता है झाड़ू तक भी उठाना,
जब सारे नुस्के फेल हो गये,
भाषण, वादे काम न आये...
समस्याओं में घिरा है "आम आदमी",
न वोट मांगता है "आम आदमी",
"आम आदमी" चाहता है केवल,
रोटी, कपड़ा, मकान मिल जाए...
समसामयिक उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंसमय का सुन्दर बिम्ब
जवाब देंहटाएंउसी की तो लड़ाई है ... आप को आम आदमी के साथ मिल के लड़नी है ...
जवाब देंहटाएं...लाज़वाब! बहुत सटीक और अद्भुत अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंwaah........sundar baat
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachana ......badhai
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जवाब देंहटाएंमिल गया है भीड़ में गुम आम आदमी को 'आप' का नेतृत्व।