मानव ने आवाहन किया,
शिवजी ने मुझे आदेश दिया,
स्वर्ग का सुख छोड़ के आयी,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...
आयी थी मैं धरा पर,
अमृत सा पावन जल लेकर,
उर्वर बनाया बंजर को,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...
रोया जब हिंद मैं भी रोई,
संकटों के समय, मैं भी न सोई,
अर्पण किये भिष्म से सुत,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...
जहां चाह तुमने, मेरे जल को रोका,
उद्योगों का कचरा मुझमे फैंका,
मौन रही, न क्रोधित हुई,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...
चाहते हो मेरा
अस्तित्व बचाना,
जल को मेरे शुद्ध, पावन बनाना,
और नदियों को मत भूल जाना,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...
स्वच्छ होगा जब, सब नदियों का जल,
सुनहरा होगा, आने वाला कल,
जल बिना, नहीं है जीवन,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन डू नॉट डिस्टर्ब - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंगंगा माँ एक वरदान है अपने देश के लिए ... और हमारी पहचान भी है ...
जवाब देंहटाएंनिर्मल उदगार ...