मंगलवार, मई 17, 2016

हम बंद कमरों में बैठे हैं

हम बंद कमरों में बैठे हैं,
पंछी तो गीत गाते हैं,
मां  के पास वक्त नहीं है,
 बच्चे लोरी सुनना चाहते हैं।
न कल कल झरनों नदियों की,
न किलकारियां मासूम बच्चों की,
संगीत नहीं है जीवन में,
निरसता में पल बिताते हैं।
वर्षों बाद  गया    चमन में,
लगा जैसे स्वर्ग यहीं है,
क्रितरिम हवा पानी से,
हम अपनी उमर घटाते हैं।
होता है जब  घरों  में बंटवारा,
सूई तक भी बांटी जाती है,
मां-बाप नहीं बंटते,
न कोई उनको पाना  चाहते हैं।
पैसा है उपयोग के लिये,
हम उपयोग मानव का करते हैं,
जोड़-जोड़ के पैसा रखते,
मानव को दूर भगाते हैं।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज की बुलेटिन विश्व दूरसंचार दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  2. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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