बुधवार, नवंबर 06, 2024

हर बच्चे को दिखाएं सपने, सुनहरे भविष्य के।

कविता

नशे की राह पे जो बच्चे चल रहे हैं,
माँ-बाप के अरमान अब टूट कर छल रहे हैं।
आँखों में सपने, अब आँसुओं में डूबे हैं,
सपनों के महल, शीशे की तरह टूटे हैं।

जो कभी खिलते थे हंसी में, अब गुम हैं मुस्कानें,
नशे ने छीन ली उनसे, सारी पहचानें।
माँ-बाप की मेहनत, अब बेकार हो गई,
हर उम्मीद, हर चाहत, अंधेरे में खो गई।

आओ, मिलकर इन्हें बचाएं इस अंधेरे से,
हर बच्चे को दिखाएं सपने, सुनहरे भविष्य के।
नशे की काली रात, अब खत्म हो जाए,
एक नई सुबह, बच्चों के जीवन में आए।

गुरुवार, जून 06, 2024

धरती का क्रंदन


शिखर झुके हुए, मानो आंसू बहा रहे हों,
दर्द भरी आवाज़, गूंज रही चारों ओर।
पेड़ कट रहे हैं, जंगल उजड़ रहे हैं,
नदियाँ सूख रही हैं, मानव तड़प रहा है।
सुरंगें कट रही हैं, मेरा सीना चीरकर,
प्रकृति से खिलवाड़, अब और न सहन कर।
मेरी रगों में, जहर घुल रहा है,
हवा प्रदूषित है, ज़हर सांसों में मिल रहा है।
कुल्हाड़ी देखकर, वृक्ष कांप रहे हैं,
कुछ पक्षी मर रहे हैं, कुछ लुप्त हो रहे हैं।
फूल मुरझा गए हैं, हवा दूषित है,
नदियां रो रही है, वो भी प्रदुषित हैं।
सोचता है मानव, वो विकास कर रहा है,
पर प्रकृति का संतुलन, बिगड़ रहा है।
मेरी नींव कमजोर हो रही है, धीरे-धीरे,
मैं खिसक रहा हूँ, धीरे-धीरे।
भूकंप आ रहे हैं, विनाश ला रहे हैं,
कभी बाढ़ कभी सूखा, तबाही मचा रहे हैं।
ओ मनुष्य! रुक जाओ, विनाश की राह पर,
प्रकृति से दोस्ती करो, यहीं ठहर जाओ।
मुझे बचाओ, अपने अस्तित्व को बचाओ,
धरती को बचाओ, जीवन को बचाओ।

शनिवार, मई 09, 2020

मातृ दिवस--विशेष:शायद ये कलियुग ही है,हम मात्री दिवस मनाते हैं,



मां जब तक धरा पर रहती है,
सुत की खातिर दुख सहती है,
खुद भूखी रह, उसे खिलाती,
कभी ईशवर, गुरु बन जाती।
चिंता करती सुत की हर पल,
देती आशीश, सुनहरा हो कल।
सबसे बड़ा मंदिर है घर,
मां ही है, वहां  पर ईश्वर,
नहीं देखा ईश्वर को कभी,
करते हैं पूजा उसकी फिर भी।
जड़ के सूख जाने पर,
 हर   वृक्ष  सूख जाता है,
निज फूलों को मुरझाते देख,
केवल मां वृक्ष ही मुरझाता है।
शायद ये कलियुग ही है,
हम मात्री दिवस मनाते हैं,
मां की ममता को सीमित करके,
हम हर्षित हो जाते हैं।
नहीं चाहिये मां को दिवस,
मां देख के तुम्हे, खुश होजाती है,
रूखा सूखा जो भी दोगे,
दे आशीष तुम्हे, सो जाती है.।

शुक्रवार, मई 08, 2020

हम जो कल थे, आज भी हैं,

सारा विश्व तो  प्राजित हो गया,
अब तुम ही अपनी शक्ती दिखाओ,
हे ज्ञान दीप हे श्रेष्ठ  भारत!
 इस करोना पर भी  विजय पाओ।
हमारे पास है अलौकिक ज्ञान,
उपनिशद और वेद पुराण,
संजीवनी की खोज करके तुम,
जग में सब का जीवन बचाओ।
घर पर बैठ गया है आदमी,
 हो गया बेबस, लाचार   आदमी,
मिट गयी है धरा की रौनक,
फिर  धरा पर खुशहाली लाओ।
कांप रही है विश्व शक्तियां,
चूर हो गया अहंकार उनका,
हम जो कल थे, आज भी हैं,
दुनियां को ये  ऐहसास दिलाओ।
जब-जब धरा पर संकट आया,
भारत ने ही विश्व बचाया,
तुम्हारी ओर ही देख रहा है जग,
धरा को करोना मुक्त बनाओ।

सोमवार, दिसंबर 30, 2019

ये वर्ष जा रहा है,

ये वर्ष जा रहा है,
संदेश ये सुना रहा है,
नया एक दिन पुराना होता,
जो आया है, उसे है जाना होता।
वक्त कितनी जल्दि बीत गया,
हो गया पुराना, जो था नया,
ये नया वर्ष भी बीत जाएगा,
फिर एक नया वर्ष आयेगा।
बीता वक्त न वापिस आता,
समय को न कोई रोक पाता।
आलस्य, सुसती से लड़ो,
आज के  काम अभी करो....
आया था जब ये वर्ष,
तन-मन में था तब भी हर्ष,
क्या-क्या खुद से वादे किये थे,
अनेकों तुमने संकल्प लिये थे।
कुछ दिनों में सब कुछ  भूल गये थे,
पुराने रंग में रंग रहे  थे।
यूं ही जीवन बीत रहा है,
लक्ष्य पीछे छूट रहा है।
युवा हो गयी ये सदी,
सो कर मत रहो तुम अभी।
नव-वर्ष तुम्हे जगा रही है,
असंख्य अवसर,   दिखा रही है.....

शुक्रवार, अक्टूबर 25, 2019

दीपक बिना दिवाली कैसी.....

लाखों का सामान खरीदा,
हर बार की तरह दिवाली पर,
नहीं खरीदा एक भी दीपक,
दीपक बिना दिवाली कैसी.....

जगमग है घर आंगन,
रंगीन लड़ियों-लाइटों से,
दीपक नहीं जलाओगे तो,
दीपक बिना दिवाली कैसी.....

लड़ियां-लाइटे खरीद कर,
 जगमग हुआ तुम्हारा ही   घर,
 दीपों से मिटता दो घरों का    अंधेरा,
दीपक बिना दिवाली कैसी.....

जब जलता है दीपक पूजा में भी,
फिर मां लक्ष्मी के लिये ये दिखावा क्यों,
 श्री राम भी भाव के भूखें हैं,
दीपक बिना दिवाली कैसी.....

दिवाली पर केवल दीप जलाएं,
दिये बनाने वालों को भी हंसाएं,
उनके घरों में भी दिवाली मनेगी,
दीपक बिना दिवाली कैसी.....


मंगलवार, अक्टूबर 15, 2019

ये केवल सफेद छड़ी नहीं, दृष्टिहीनों की पहचान है....


दुनिया भर की  दृष्टिबाधित आबादी का  बहुत बड़ा हिस्सा हमारे देश भारत में निवास करता है | दृष्टिबाधित आबादी की आँखे है उनके हाथो से सटी रहने वाली वह सफ़ेद छड़ी
जो उन्हे पथ दिखाती है।   हर साल  15 अक्टूबर का दिन इस दृष्टिबाधित आबादी के लिए सबसे अहम दिन होता  है सफेद छड़ी न केवल दृष्टिबाधित
लोगों के स्वतंत्रता का प्रतीक है बल्कि समाज की उनके प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को भी प्रतिबिंबित करती है।
इस दिवस पर सफेद छड़ी पर ये कविता मेरी ओर से.....
क्योंकि किसी भी  वस्तु का महत्व वोही जानता है, जो उसका उपयोग करता है।

 
जो साथ उनके  सदा रहती,
ये उनका स्वाभिमान है..,
ये केवल  सफेद छड़ी नहीं,
दृष्टिहीनों की पहचान है....
पथ में क्या है,, उन्हे बताती,
आत्म निरभरता का मंत्र सिखाती,
चलते हुए उनह्े  सुरक्षा देती,
ये दृष्टिहीन है,  चलने वालों को बताती।
साथ न कोई सदा चलेगा,
अकेले चलने में ही शान है,
ये केवल  सफेद छड़ी नहीं,
दृष्टिहीनों की पहचान है....
दृष्टिहीनों की दृष्टि बन,
हर ठोकर  से उन्हे बचाती है,
 स्वतंत्रता की प्रतीक है ये,
तिमिर में भी पथ दिखाती है।
दृष्टिहीनता अभिशाप नहीं, बाधा है,
उनका भी अपना आत्म-सन्मान है,
ये केवल  सफेद छड़ी नहीं,
दृष्टिहीनों की पहचान है....

ये भी सामान्य से समार्ट  बन गयी है,
बिना इसके दृष्टिहीन की सुरक्षा नहीं है,
हर दृष्टिहीन इसका उपयोग करे,
स्फेद छड़ी दिवस का संदेश यही है।
निडर होकर चलते रहो,
चलता है जो, उसका ही  सन्मान है,
ये केवल  सफेद छड़ी नहीं,
दृष्टिहीनों की पहचान है....
जिसने महत्व तुम्हे दिया,
हर पथ उसने पार किया,
वो आगे ही बढ़ता रहा,
लक्ष्य अंत में  पा ही लिया।
जो जीवन में संघर्श करता है,
उसे ही मिलता मकाम है,
ये केवल  सफेद छड़ी नहीं,
दृष्टिहीनों की पहचान है....

शनिवार, अगस्त 03, 2019

मेंहदी  

जब टूटता  हैं,
  पती पत्नी का पावन रिशता,
तब रोती है मेंहदी,
क्योंकि उसने ही,
इनके जीवन में
 प्रेम के रंग भरे थे......
मेंहदी  चाहती है,
सब में प्यार बढ़े,
केवल   प्रेम हो,
कोई आपस में न लड़े,
किसी के घर न टूटे,
किसी से बच्चे न छूटें.....
   मेंहदी  कहती है, 
अब विवाह केवल
पावन बंधन नहीं,
समझौता बन कर रह गया है।
कृतरिमता के इस दौर में,
मेरा मोल भी घटने लगा है.....

सोमवार, दिसंबर 31, 2018

इस नव-वर्ष में.....

केवल 2018 की जगह अब,
2019 हुआ  है,
बताओ, क्या कुछ और बदलेगा?
इस नव-वर्ष में.....
जहां सुरक्षित नहीं,  4 वर्ष की बेटी भी
सुनाई देती हैं अभी भी, चीखें निरभया, गुडिया की,
क्या बेटियां भय मुक्त निकल पाएगी बाहर?
इस नव-वर्ष में.....

क्या नव-विवाहिताएं घरों में सुरक्षित रह पाएंगी?
क्या दहेज के लोभियों की भूख मिट जाएगी?
क्या एक मर्ित  बेटी के पिता को न्याय  मिलेगा?
इस नव-वर्ष में.....

जो जन्म लेना चाहती हैं,
पर गर्भ में ही मार दी जाती हैं।
क्या वो बेटियां  सुरक्षित रह पाएगी?
इस नव-वर्ष में.....
जो कुपोषित और  बिमार हैं,
निर्धनता के कारण  लाचार हैं।
क्या मिल पाएगा उन्हे भर पेट खाना?
इस नव-वर्ष में.....

न बाल-विवाह होने देंगे,
न बालकों को बोझ ढोने देंगे,
आओ सब का जीवन महकाएं.
इस नव-वर्ष में.....

रविवार, अगस्त 26, 2018

...उसकी आंखों से देख रहा हूं......

मेरे पास
नहीं थी आंखे,
पर उन दोनों के पास ही
 आंखे थी......
एक की आंखों ने
मेरी बुझी हुई
 आंखे देखी
...छोड़ दिया मझधार में मुझे.....
एक की आंखों ने
बुझी हुई आंखों में भी
अपने लिये प्यार देखा,
.... कहा, मेरी आंखे हैं तुम्हारे लिये.....
मेरी बुझी हुई  आंखों ने भी
इनकी आंखों में
उनकी आंखों की तरह
...कभी लोभ नहीं देखा.....
खुशनसीब हूं मैं
जो संसार को
अपनी आंखों से नहीं
...उसकी आंखों से देख रहा हूं......

शुक्रवार, अगस्त 17, 2018

कोटी-कोटी नमन तुम को.....

हे जन-नायक अटल जी,
तुम्हारी शकसियत अनुपम थी।
तुम   स्तंभ बनकर खड़े रहे,
सत्य-पथ पर अड़े रहे,
भारत को विश्व-शक्ति बनाया,
पाक कोमुंह के बल गिराया।
निज संस्कृति पर  अभिमान था,
धर्म-सभ्यता पर मान था।
तुम तो  जन-जन के प्यारे थे,
मां भारती के आंख के तारे थे।
तुम नेताओं  में शास्त्री से,
कवियों में मैथली शरण थे।
तुम भारत की पहचान हो,
कोटी-कोटी नमन तुम को.....
आजाद शत्रु, सभी मित्र,
बेदाग और आदर्श चरित्र।
न रुके कहीं, न झुके कभी,
राजनीति में जिये, बनकर रवी,
ओ भारत के अनुमोल-रतन,
राम राज्य  आये, तुमने  किये यतन।
नम है नैन,   रतन चला गया,
सुना है, भाजपा का कमल चला गया।
ऐ मौत तु, इतनी मत इतरा,
वो मन से मरे, जी भर के जिया।
तु मारती है केवल, नशवर तन को,
नहीं मार सकती, अटल से जन को।
सुभाष गांधी  की तरह तुम अमर हो,
कोटी-कोटी नमन तुम को.....




शुक्रवार, अगस्त 10, 2018

श्री की जगह शहीद लिखती हूं.......


[मेरी इस कविता में एक शहीद की बेटी के भावों को प्रकट करने का प्रयास किया गया है....}
जब तुम  पापा!
आये थे घर
तिरंगे में लिपटकर
तब मैं बहुत रोई थी....
शायद तब मैं
बहुत छोटी थी,
बताया गया था मुझे,
तुम मर चुके हो....
मुझे याद है पापा!
कहा था जाते हुए तुमने
मैं दिवाली पर आऊंगा,
तुम्हारे लिये बहुत से  उपहार  लेकर.....
तुम्हारी पुचकार से,
मैं हंस पड़ी थी उस दिन
क्या पता था मुझे,
नहीं आओगे लौटकर अब....
जब स्कूल में
बाते करते थे सब
अपने पापा के दुलार की
तब तुम्हारी याद रुलाती थी मुझे....
उमर बढ़ने के साथ साथ
सत्य जाना मैंने,
तुमने मुझे क्या दिया,
अब   उसे पहचाना मैंने....
कौन कहता है,
 तुम  मरे हो,
देखो-देखो तुम  तो
महा-वीरों की कतार में खड़े हो.......
मुझे गर्व होता है,
जब  मैं तुम्हारे   नाम से पहले
श्री की  जगह
शहीद लिखती हूं.......
तुमने तो पापा  
निभा दिया अपना फर्ज
उतार दिया मां का कर्ज,
मां का सर झुकने न दिया.....
अब तो  पापा!
जानते हैं सभी
पहचानते हैं मुझे भी
तुम्हारे नाम से....
ओ पापा!
मेरे पास जीने के लिये,
तुम्हारा नाम ही काफी है,
मत उदास होना कभी मेरे लिये......

सोमवार, अप्रैल 16, 2018

यहां तो हर घटना को राजनीति रंग में रंगा जाता है.....

ये भीख मांग रहे बच्चे,
किस धर्म के हैं?
इनकी जात क्या है?
न हिंदू को इस से मतलब,
न मुस्लमान को.......
कारखानों या ढाबों  पर,
काम कर रहे बच्चों से
नहीं पूछते उनका मजहब।
कोई नहीं पहचानता,
ये उनकी जात, मजहब के  हैं....
जब एक बेटी का
जबरन बाल-विवाह होता है,
साथ देते हैं सब,
जात-मजहब के लोग,
नहीं करता कोई भी विरोध इसका.....
पर रेप या हत्या के बाद
पहचान लेते हैं सब
पिड़ित या निरजीव शव को
ये हमारे मजहब का था,
मारने वाले दूसरे मजहब के......
निरभया का नाम छुपाया गया,
गुड़िया का नाम भी दबाया गया,
देदेते आसिफा को भी कोई और नाम।
वो केवल मासूम बेटी थी,
क्यों बताया गया उसका मजहब क्या था....
काश हर मजहब के लोग,
अपने मजहब को समझ पाते,
न रेप होता, न हत्या।
यहां तो  हर घटना को
राजनीति रंग में रंगा जाता है.....

बुधवार, अप्रैल 11, 2018

हुआ था भ्रम, वसंत आया है,

दो दिन पहले  यानी 9 अप्रैल 2018  शाम 3:15 बजे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर में मलकवाल के निकट चुवाड़ी मार्ग पर भयानक हादसा हुआ बजीर राम सिंह पठानिया मेमोरियल स्कूल की   बस करीब 200 फीट गहरी खाई में जा गिरी। हादसे में
27 बच्चों समेत 30 लोगों की मौत हो गई है जबकि कई बच्चे घायल भी हुए हैं।
इस घटना से मन बहुत आहत है......

तेरी धरा पर, ओ मां भवानी,
हर नेत्र में है, क्यों  आज पानी,
तुझसे मांगे थे फूल जो,
निष प्राण  पड़े हैं, आज धरा पे वो,
टूट गयी एक मां की आस,
खंडित हो गया पिता का विश्वास।
न नजर लगे, तिलक लगाया था,
चूम के माथा, बस में बिठाया था।
भाती-भांती के पकवान बनाए,
प्रतीक्षा में थी मां, बच्चे घर आये।
तभी आई खबर, वो नहीं आएंगे,
रो पड़े खिलौने, हम कहां जाएंगे।
अमिट उदासी छा गयी मन में,
छा गया मातम घर आंगन में।
पल भर में ये क्या हो गया,
जो पास था, सब कुछ खो गया।
हुआ था भ्रम, वसंत आया है,
ये कैसा वसंत, जो रोदन लाया है।

शुक्रवार, फ़रवरी 23, 2018

एक प्रश्न

एक प्रश्न
वो बेटी
ईश्वर से पूछती है,
क्यों भेजा गया
मुझे उस गर्भ में,
जहां मेरी नहीं
बेटे की चाह थी....
एक प्रश्न
वो बेटी
 उस  मां से पूछती है,
"तुम तो मां  हो
क्या तुम भी
आज न बचाओगी मुझे
इन  जालिमों  से?....."
"एक प्रश्न
वो बेटी
उस पिता से पूछती है,
"क्यों बोझ मान लिया मुझे?
मेरे जन्म से पहले ही,
क्या किसी बेटी को देखा है,
बूढ़े माता-पिता को वृद्ध आश्रम में भेजते हुए?...."
एक प्रश्न
वो बेटी
उस चकितसक  से पूछती है,
"तुम्हारा कर्म
जीवन बचाना है,
मुझे भी जीना है,
क्या आने दोगे मुझे दुनिया में?...."
एक प्रश्न
वो बेटी
इस समाज से पूछती है,
"कब तक होता रहेगा भेद-भाव,
बेटा और बेटी में?
अग्नी परीक्षा देकर भी
कब तक सीता को वनवास मिलता रहेगा?...."
इन प्रश्नों के
उत्तर की प्रतीक्षा में थी वो,
तभी सुनाई दिया उसे,
पैसों का लेन-देन,
उस जालिम ने जितने मांगे,
क्रूर पिता ने उतने ही दिये,
फिर तीखे औजारों से मिटा दिया उसे.....
ये प्रश्न
एक बेटी नहीं
हजारों बेटियां पूछती है,
 ईश्वर से,  और समाज से,
माता-पिता  और चकितसक  से>
नहीं मिलता उन्हे उत्तर,
और मार दी जाती है....

शनिवार, जनवरी 13, 2018

न जलता है अब वो आलाव

मेरे बचपन के दिनों में,
जब होता था हिमपात,
जलाकर आती-रात तक  आलाव,
बैठते थे सब एक साथ....
याद आती हैं सबसे अधिक
पूस-माघ की वो लंबी  रातें,
दादा-दाती की कहानियां,
बजुरगों की कही  सच्ची बातें....
अब तो  बर्फ के दिनों में भी,
आलाव नहीं, आग जलती है,
जो कर गये स्थान रिक्त,
उनकी कमी  खलती हैं....
बैठते तो हैं आज भी,
आग जलाकर एक साथ,
सबके हाथ में मोबाइल होता है,
नहीं करते आपस में बात....
न जलता है अब वो आलाव,
न वो मेल-मिलाप रहां,
न पहले सी बर्फ गिरती है,
अब पहले से लोग कहां....

सोमवार, दिसंबर 25, 2017

इनकी शहादत तक भूल गये

 13 पौष तदानुसार    26 दिसंबर 1705 को    जब देश में मुगलों का शासन था और सरहिंद में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह के दो मासूम बेटों सात वर्ष के जोरावर सिंघ तथा पाँच वर्ष के फतेह सिंघ   को दीवार में जिंदा चुनवाया गया था....
कहते हैं कि  साहिबज़ादों को कचहरी में लाकर डराया धमकाया गया। उनसे कहा गया कि यदि वे इस्लाम अपना लें तो उनका कसूर माफ किया जा सकता है और उन्हें शहजादों जैसी
सुख-सुविधाएँ प्राप्त हो सकती हैं। किन्तु साहिबज़ादे अपने निश्चय पर अटल रहे। उनकी दृढ़ता थी कि सिक्खी की शान केशों श्वासों के सँग निभानी हैं। उनकी दृढ़ता को
देखकर उन्हें किले की दीवार की नींव में चिनवाने की तैयारी आरम्भ कर दी गई किन्तु बच्चों को शहीद करने के लिए कोई जल्लाद तैयार न हुआ।
अकस्मात दिल्ली के शाही जल्लाद साशल बेग व बाशल बेग अपने एक मुकद्दमें के सम्बन्ध में सरहिन्द आये। उन्होंने अपने मुकद्दमें में माफी का वायदा लेकर साहिबज़ादों
को शहीद करना मान लिया। बच्चों को उनके हवाले कर दिया गया। उन्होंने जोरावर सिंघ व फतेह सिंघ को किले की नींव में खड़ा करके उनके आसपास दीवार चिनवानी प्रारम्भ
कर दी।
बनते-बनते दीवार जब फतेह सिंघ के सिर के निकट आ गई तो जोरावर सिंघ दुःखी दिखने लगे। काज़ियों ने सोचा शायद वे घबरा गए हैं और अब धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो
जायेंगे। उनसे दुःखी होने का कारण पूछा गया तो जोरावर बोले मृत्यु भय तो मुझे बिल्कुल नहीं। मैं तो सोचकर उदास हूँ कि मैं बड़ा हूं, फतेह सिंघ छोटा हैं। दुनियाँ
में मैं पहले आया था। इसलिए यहाँ से जाने का भी पहला अधिकार मेरा है। फतेह सिंघ को धर्म पर बलिदान हो जाने का सुअवसर मुझ से पहले मिल रहा है।
छोटे भाई फतेह सिंघ ने गुरूवाणी की पँक्ति कहकर दो वर्ष बड़े भाई को साँत्वना दी:
चिंता ताकि कीजिए, जो अनहोनी होइ ।।
इह मारगि सँसार में, नानक थिर नहि कोइ ।।
इन दोनों शहीदों को मेरा कोटी-कोटी नमन....




मैं पौष  हूं, मैंने देखे हैं,
महाभारत से युद्ध भी  होते हुए,
रक्त के सागर देखे हैं,
पर न  देखा मुझे कभी  रोते हुए....
रोता हूं मैं भी हरबार,
 याद आती है सरहिंद की दिवार,
जब  दो भाइयों को इसमे चिनवाते देखा,
छोटे के लिये बड़े को रोते देखा....
गंगु रसोइया , सुच्चा नँद ,
ये दोनों धब्बे हैं हिंदू  धर्म पर,
सबसे महान था वो पठान,
कहा नवाब से, इन पर दया कर....

धन्य है दशम  गुरु,
धन्य थे ये दोनों  लाल,
प्राण दिये पर धर्म न छोड़ा,
शहादत की   जलाई मशाल....
क्रिसमस और नव-वर्ष का,
हम खूब  जश्न मना रहे हैं,
इनकी शहादत   तक भूल गये,
सोचो हम कहां जा रहे हैं?....

शनिवार, दिसंबर 23, 2017

ओ जाते हुए वर्ष,

ओ जाते हुए वर्ष,
जब तु आया था,
जोष था, उमीदे थी,
सब ओर हर्ष छाया था....
मुझे भी प्रतीक्षा थी तेरी,
कई दिनों पहले से ही,
अभिनंदन मैंने भी किया था तुम्हारा,
उमीद में कुछ नये की....
पर तब मैं नहीं जानता था,
तु मेरे लिये  नया कुछ भी  नहीं लाया है,
जो तब मेरे पास था,
तु उसे मुझसे छीनने  आया है....
हम पुराने से अच्छा
नये को मानते हैं,
नया क्या लेकर आयेगा,
हम नहीं जानते हैं....
जब भी कुछ नया होता है,
अच्छा होगा, हम मन को बहलाते हैं,
होनी तो होकर रहती है,
चंद पलों के लिये खुश हो जाते हैं.....

गुरुवार, दिसंबर 07, 2017

होनी....

नहीं करते कल्पना जिसकी,
जीवन में वो भी घट जाता है,
ये कैसे हुआ, क्यों हुआ,
आदमी सोचता रह जाता है....
नहीं जानता ये मनुज,
कल क्या होने वाला है,
वो तो अपने हिसाब से,
शुभ-शुभ सोचता जाता है.....
हमने अलिशान महल को,
खंडर होते देखा है,
हरे-भरे उपवन  को भी,
बंजर होते देखा है....
होनी तो होकर रहती है,
मानव चाहे जो भी कर,
वक्त एक दिन बदलेगा,
रख भरोसा ईश्वर पर.....

सोमवार, दिसंबर 04, 2017

अब प्रतीक्षा है हमे तुम्हारे निज धाम आने की...




<iframe>ओ श्री राम,
तुम्हे त्रेता में भी वनवास मिला
इस कलियुग में भी।
वो वनवास चौदह वर्ष के लिये था
ये वनवास न जाने कितना लंबा होगा....</iframe>
<iframe>अगर तुम्हे वनवास न मिलता,
अहिलया का उधार कैसे होता,
मां शबरी की इच्छा अधूरी रह जाती,
न सुगरीव को न्याय मिल पाता,
असुरों का विनाश कौन करता....</iframe>
<iframe>जब मिलता है तुम्हे वनवास
प्रसन्न होते हैं देवगण
क्योंकि वे जानते हैं
वनवास के दिनों में ही तुम,
धरा को असुरों से मुक्त करते हो....</iframe>
<iframe>न शक्ति थी किसी में
मंदिर का एक  पत्थर भी हिला सके,
धर्म की रक्षा के लिये ही
फिर तुम्हे धाम त्यागना पड़ा होगा,
ये  देवों की इच्छा से हुआ होगा....</iframe>
<iframe>ये आतंकवादी दानव
जालिम है असुरों से भी
ये जेहादी  बेवजह ही
कहीं भी कुछ भी कर सकते हैं,
मुक्त कर दो धरा को इनसे...</iframe>
 <iframe>कांप रही है  धरा
भयभीत हैं देवगण
जेहादियों  के आतंग से
खतरे में है मानवता,
अब श्री राम पर ही विश्वास है....</iframe>


सोमवार, नवंबर 13, 2017

आओ हम बाल-दिवस मनाएं, इन बच्चों को इनके अधिकार दिलाएं,

मेरे भारत में सब के लिये रोटी हैं?
न जाने इन बच्चों को भोजन क्यों नहीं मिलता।
आंगनबाड़ी स्कूल में,
दोपहर का भोजन मिलता है,
डिपुओं में निशुल्क   भाव में,
ससता राषण दिया जाता है,
हर गाड़ी के आते ही,
क्यों ये हाथ फैलाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....

ये किस पिता के लाल हैं,
ये किस मां की संतान हैं,
जो हर रोज यहां आते हैं,
केवल झूठन ही खाते हैं।
 माता-पिता का   करतव्य था,
 क्या केवल इन्हे जन्म देना?
पशु-पक्षी भी निज बच्चों के लिये,
भोजन खुद लाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....

आओ हम बाल-दिवस मनाएं,
इन बच्चों को इनके अधिकार दिलाएं,
जिन माता-पिता ने इन्हे जन्म दिया,
रोटी देना भी उन्ही की जिमेवारी है,
जो पिता नशे  में मस्त हैं,
वो दंड के अधिकारी हैं।
कुछ पिता नशे के लिये,
सब कुछ ही खा जाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....

सोमवार, अक्टूबर 23, 2017

हम भारत के मत दाता है....

हम भारत के मत दाता है....
हमारे पास मत देने का अधिकार
आज से नहीं त्रेता युग से है,
हमने तब भी
अपना मत दिया था
श्रीराम को राजा बनाने के लिये
"श्री राम हमारे राजा होंगे"
पर श्री राम को वनों में भेजा गया
हमने नहीं पूछा
तब भी राजा से
हमारे मत के अधिकार का क्या हुआ?
 हम भारत के मत दाता है....
हमारे पास मत देने का अधिकार
द्वापर में भी था
हमने सर्वमत से
युधिष्ठिर को राजा बनाया
पर शकुनी की एक चाल ने
द्युत खेल कर
पांचों पांडवों को वनवास भेज दिया।
हम महाभारत से युद्ध में
हाथी घोड़ों की तरह
मर सकते हैं,
पर राजा से
अपने मत के अधिकार के लिये
नहीं लड़ सकते।
 हम भारत के मत दाता है....
हैं तो हम बहुत भाग्यशाली
क्योंकि ये मत का अधिकार
आज भी हमारे पास हैं
शताबदियां बदल गयी
युग बदल गये
पर हम आज भी
नहीं बदले,
क्योंकि हम अपना मत देकर
आज भी नहीं पूछते
हमारे मत का क्या हुआ?

सोमवार, अक्टूबर 16, 2017

हम  जलाएंगे  दीपक करेंगे  प्रकाश, तुम्हारे लिये....

तुम बिन पिताजी
अब हम कैसे मनाएंगे दिवाली
अपने हाठों से लाई मिठाई
खाने में वो आनंद नहीं आएगा....
पर इस दिवाली पर भी,
हम  जलाएंगे  दीपक
करेंगे  प्रकाश,
तुम्हारे लिये....
हम  जानते हैं
तुम्हे अपने  घर में
फैला हुआ अंधकार
अच्छा नहीं लगेगा...
हम  ये भी जानते हैं
तुम आओगे
किसी न किसी रूप में
हमारे साथ दिवाली मनाने....
न सजा पाएंगे घर को,
न बन सकेंगे वो पकवान
आहत मन से ही सही
 एक दीपक अवश्य जलाएंगे....

शुक्रवार, अगस्त 18, 2017

....हमारी ओर से भी अब पासे श्री कृष्ण फैंकेंगे....

आज़ादी की 71वीं वर्षगाँठ पर
पूछता हूं मैं,
भ्रष्ट नेताओं से
बिके हुए अधिकारियों से,
  स्वतंत्रता दिवस पर
या गणतंत्रता दिवस पर
तुम तिरंगा क्यों लहराते हो?
...तुम  क्या जानो  तिरंगे का मोल...


एक वो थे,
जो आजादी के लिये मर-मिटे
एक ये हैं,
जो आजादी को मिटा रहे
नेताओं को  चंदा मिल रहा,
और अधिकारियों को कमिशन
फिर राष्ट्रीय दिवस क्यों मनाते हो?
...तुम क्या जानों इन पर्वों  का मोल....
कल हम अंग्रेजों के गुलाम थे,
और आज भ्रष्टाचार के
कल जयचंद के कारण गुलाम हुए,
आज भी कुछ लोग हैं उसी  परिवार के,
जो रक्षकों पर पत्थर बरसा रहे,
चो वंदे मातरम न गा रहे,
 होने वाला है कृष्ण का अवतार अब,
...तुम क्या जानो श्री-कृष्ण कौन है....
देख लिया कौरवों को
हस्तिनापुर देकर भी,
हमारे बापू भिष्म ने
झेली पीड़ा विभाजन की।
अब न तुम्हारे पास भिष्म है
न द्रौण, न करण,
तुम्हारे पास भले ही आज भी  शकुनी है,
....हमारी ओर से भी  अब पासे श्री कृष्ण फैंकेंगे....

गुरुवार, जुलाई 20, 2017

ओ गुड़िया!


ओ गुड़िया!
तुम ने भी तो
हवस के उन दरिंदों से
अपनी रक्षा के लिये.
द्रौपदी   की तरह
ईश्वर को ही
पुकारा  होगा
पर तुम्हे बचाने 
....ईश्वर भी नहीं आए....

ओ गुड़िया!
तुम भी तो
उसी देश की बेटी थी
जहां बेटियों को
 देवी समझकर पूजा जाता है
जहां की संस्कृति  में
कन्या ही दुर्गा का रूप है.
ओ मां चंडी!
क्या कलियुग में तुम ने   भी
असुरों को दंड देना छोड़ दिया?
....ये जालिम  तो शुंभ-निशुंभ से भी पापी हैं....

 ओ गुड़िया!
तुमने भी सपने देखें थे
झांसी की रानी,  कल्पना चावला
और भी ऊंची उड़ान भरने के,
ऊंची  उड़ान भरने से पहले ही
 तुम्हे नोच दिया
उन जालिम दरिंदों ने.
न तुम रो सकती हो अब
न तुम जी सकती थी अब
...तुम्हे पाषाण बना दिया है  इन जालिमों ने....

ओ गुड़िया!
तुम फूल थी
 मसल दिया तुमको,
पर अब तुम
अंगारा बन गयी हो
ये अंगारा अवश्य ही
 एक दिन
हनुमान की पूंछ की आग की तरह
इन दुष्ट रावणों की
 लंका के साथ-साथ
इस बार तो रावण को भी
.... भस्म कर देगी....

मंगलवार, जुलाई 11, 2017

पर सब ईश्वर नहीं बनते।....

[दिनांक 28 जून 2017 को पूजनीय पिता श्री की समृति में जन सेवा के उदेश्य से एक पीने के पानी का नल स्थापित किया गया साथ ही पूजा उपरांत पिता जी की फोटो दिवार पर स्थापित की गयी]
 ओ पिता जी
अब तो तुम भी
ईश्वर बन गये हो,
तभी तो
ईश्वर की तसवीर के साथ
तुम्हारी तसवीर भी
हार पहनाकर
दिवार पर टांग दी गयी है....

ये तुम्हारी तसवीर भी
जैसे मानो कह रही हो हम से
मैं मरा नहीं,
अभी भी   जीवित  हूं,
घर की हर चीज में,
तुम्हारी यादों में भी।
मरते तो हर रोज कई हैं।
पर सब ईश्वर  नहीं बनते।....




शनिवार, जून 24, 2017

पर खुद भूखे मर रहे हैं।

किसान आज से नहीं,
सदियों से आत्महत्या कर रहे हैं,
उगाते तो हम  अनाज हैं,
पर खुद भूखे मर रहे हैं।
मैंने एक और किसान कि
 आत्महत्या के बाद
आंदोलन कर रही भीड़ के
एक बूढ़े किसान से पूछा
वो किसान क्यों मरा?
"बेटा वो मरा नहीं
आज तो वो   जिवित हुआ,
मरा तो वो पहले कई बार,
  एक बार नहीं हजार बार
न तब कोई आंदोलन हुए,
न कोई चर्चा,
ये केवल वोट के भूखे,
इस आग को सुलगा रहे हैं"
उगाते तो हम  अनाज हैं,
पर खुद भूखे मर रहे हैं।
वो बुढ़ा किसान
कांपते स्वर में फिर बोला,
"ये आंदोलन थम जाएगा,
एक और किसान की आत्महत्या तक,
यही  हुआ है, होगा भी यही,
बंटे  हुए हैं जब तक किसान,
जब तक हम सभी किसान,
आत्महत्या कर रहे किसानों की पीड़ा को
अपनी पीडा नहीं मान लेते,
 आंदोलन हम स्वयम् नहीं,
इशारों से करते रहेंगे,
तब तक किसान भी
आत्महत्या करते ही रहेंगे।
हमे आपस में बांट कर,
वो  कुर्सी के लिये पथ बना रहे हैं"
उगाते तो हम  अनाज हैं,
पर खुद भूखे मर रहे हैं।


सोमवार, मई 22, 2017

ओ मेरे  पूज्य    पिता जी,


[दिनांक 30 अप्रैल 2017 को मेरे पूजनीय पिता जी श्री ठाकुर  ईश्वर सिंह इस भू लोक को त्याग कर चले गये...
जीवन में उनकी कठिन तपस्या से ही आज हम   सुखद जीवन जी पा रहे हैं....]
"हे ईश्वर मेरे पूजनीय पिता जी को....अपने पावन चरणों में स्थान देना...."

ओ मेरे  पूज्य    पिता जी,
कल तक मैं
खुद को  दुनिया का
 सब से बड़ा आदमी  समझता था
क्यों कि मेरे सिर पर
 तुम्हारा हाथ था....
हम नहीं जानते
हम कौन हैं,
पर तुम भिष्म थे,
जिन्होंने  हमारे घर रूपी हस्तिनापुर को
चारों ओर से सुर्क्षित कर के ही,
ये भू लोक त्यागा...
जब से दुनिया में आएं हैं,
न ईश्वर को देखा कभी
ब्रह्मा   थे तुम
हमे जन्म देने वाले,
विष्‍णु    थे तुम ही
हमारा पालन करने वाले....
तुम तो
नील-कंठ शिव थे,
जिन्होंने हमे तो अमृत दिया,
पर हमारे भाग का
सारा विष ही,
आजीवन ही पीते रहे....
मैं जानता हूं
राजा-महाराजाओं की तरह
तुम्हारा इतिहास नहीं लिखा जाएगा,
जिन पर तुमने उपकार किये थे,
वो भी भूल जाएंगे तुम्हे,
पर मेरे मन मंदिर में तो तुम,
कभी नहीं मरोगे....



मंगलवार, अप्रैल 11, 2017

...केवल संस्कार दो...

शूल की चुभन,
बहुत पीड़ा देती है,
पर शायद
उतनी पीडा नहीं,
जितनी फूल की चुभन,
....देती है....
वो बेटे
भूल चुके हैं  सब कुछ
अपने  मां-बाप को भी,
उन के सप नों को भी,
जिन्हे  याद है अब
...केवल नशा ...
जो माएं
मांगती रही दुआ
लंबी आयु की
अपने बेटों  के लिये
आज वो भी अपनी दुआ में,
....
अपनी खुशियांं  ही मांग रही है...
वो माएं   सब से
यही कह रही है
बच्चों  के लिये
न मांगो लंबी आयु की दुआ
न धन दौलत
...केवल संस्कार दो...

बुधवार, फ़रवरी 01, 2017

तुम बैठे हो आसन पर आज हम शोर मचाएंगे,

तुम बैठे हो आसन  पर
आज हम शोर मचाएंगे,
तुम्हारे अच्छे कामों को भी,
मिट्टी में ही  मिलाएंगे...
तुमने भी यही किया,
अब हम भी यही करेंगे,
पहले तुमने हमे गिराया,
अब फिर   तुम्हे गिराएंगे...
जंता तो है घरों में बैठी,
वो क्या जाने सत्य क्या है,
किसी पर झूठे आरोप लगे हैं,
कोई दोषी  भी बच जाएंगे...
कभी जो  गले मिलते थे,
आज हाथ भी नहीं मिलाते,
ये राजनितिक समिकरण है भाई,
क्या पता फिर एक हो जाएंगे...
कभी दल बदला, कभी दल बनाया,
कभी गधे को भी बाप बनाया,
जानते हैं ये जनता को,
कुछ दिनों में सब भूल जाएंगे...


शनिवार, जनवरी 28, 2017

हम हिंदूस्तान को भूल गये,

इंडिया-इंडिया कहते-कहते,
हम हिंदूस्तान को भूल गये,
आजाद हो गये लेकिन फिर भी,
अपनी पहचान ही भूल गये।...
जलाते हैं दिवाली में पटाखे,
खेलते हैं रंगों से होली,
याद रहा रावण को जलाना,
राम-कृष्ण को भूल गये...
नहीं पता अब बच्चों को,
बुद्ध,  महावीर, गोविंद  कौन हैं?
मुगलों का इतिहास याद है,
पृथवीराज, राणा को भूल गये...
मां-बाप को आश्रम में भेजकर,
घर में हैं  कुत्ते  पाले,
फेसबुक, ट्वीटर   पर  दोस्त कई हैं,
अपने परिवार को भूल गये...
इतिहास में पढ़ाते हैं,
कब कब किसने यहां शासन किया,
हम क्यों विदेशियों के  गुलाम हुए,
ये पढ़ाना ही भूल गये...
वापिस लाओ, अपना  स्वर्णिम अतीत,
वो संस्कृति, वो सभ्यता,
वर्ना हो जाएंगे फिर गुलाम,
अगर भारत को भूल गये...

शुक्रवार, जनवरी 27, 2017

गणतंत्र का अर्थ, अब जान गये।

जो समझते रहे हमें वोट,
हार उन्हे पहनाते रहे,
गणतंत्र-दिवस मनाते-मनाते,
 गणतंत्र का अर्थ, अब जान गये।
दिया किसी ने आरक्षण,
किसी ने सस्ती दालें दी,
खाकर सभाओं में लड्डू,
बस तालियां बजाते रहे,
गिराकर मंदिर-मस्जिद,
बस करा दिये दंगे,
उनको तो मिल गया राज,
हम व्यर्थ ही खून बहाते रहे।
हीरन सिंह  भी  एक  साथ,
रहते थे राम राज्य में,
हम सब तो हैं इनसान,
क्यों नफरत के शूल बिछाते रहे।
न देंगे हम अब वोट,
जाति, धर्म क्षेत्र के नाम पर,
पटेल, शास्त्रि की जगह हम,
गिरगिट, उलुओं को  जिताते रहे।

बुधवार, जनवरी 18, 2017

इस कड़ाके की सर्दी में... 

इस कड़ाके की सर्दी में,
वो इकठ्ठा परिवार ढूंढता   हूं।
 दादा दादी की कहानियां,
चाचा-चाची का प्यार ढूंढता   हूं...
खेलते थे अनेकों खेल,
लगता था झमघट बच्चों का,
मोबाइल, टीवी के शोर में,
बच्चों का संसार ढूंढता  हूं...
लगी रहती थी घर में,
अतिथियों  से रौनक,
पल-पल सुनाई देती आहटों में,
कोई पल यादगार ढूंढता   हूं...
बदल गया है अब समय,
 आग नहीं  अब हीटर जलते हैं,
न जाने क्यों मैं आज भी,
पुराना समय बार-बार ढूंढता हूं...

शुक्रवार, जनवरी 13, 2017

दुनियां में।

हम आए अकेले, इस दुनियां में,
न लाए साथ कुछ दुनियां में,
शक्स ही रहे तो मर जाएंगे,
बनो शक्सियत इस दुनियां में।
जो भी मन में प्रश्न हैं,
उनका उत्तर गीता में पाओ,
जब ज्ञान दिया खुद ईश्वर ने,
क्यों भटक रहे हो दुनियां में।
जो ज्ञान न मिला भिष्म  को,
न द्रौण को, न विदुर को,
वो ही  ज्ञान अब  गीता का,
सब के पास है दुनियां में।
फिर भी सभि भ्रमित हैं,
अकारण ही चिंतित हैं,
न अर्जुन न दुर्योधन रहे,
उनके कर्म रहे इस दुनियां में।

शनिवार, नवंबर 19, 2016

उन्हे पूजता है तभी संसार...

नानक के इस धरा पर,
हैं गुरु आज, कई हजार,
पर  नानक सा   नहीं  है कोई,
इसी लिये है अंधकार...
जब भूल गये थे गीता को,
श्री कृष्ण की अमर कविता को,
   अन्याय, अधर्म  का राज्य था,
हो रहा था शोषण जंता का।
तब नानक ने गीता समझाई,
गुरु ग्रंथ में लिखा सार...
कहा था ये  दशम गुरु ने,
गुरु ग्रंथ को ही  गुरु मानना,
ये गुरु कौन है, कहां से आये,
फिर इन्हें गुरु क्यों मानना।
इन्हें देश धर्म की चिंता नहीं,
ये कर रहे हैं केवल व्यपार...
सरकारें चाहे कुछ भी करे,
ये गुरु हैं,  कुछ नहीं बोलते,
पांचाली के चीरहरण पर,
अब भी ये न मुंह खोलते।
भोली-भाली जंतां से,
मांगते हैं पैसा बेशुमार...
इन पर न कोई कर लगता,
ये खूब मौज उड़ाते हैं,
जब इनकी चोरी पकड़ी जाए,
 शिष्य शोर मचाते हैं।
इन्हें कानून का भय नहीं,
 ये हैं  धर्म के ठेकेदार...
राम ने रावण को मारा,
कृष्ण ने  कंस संहारा,
विष पीकर शंकर कहलाए,
गोविंद ने चार सुत गवाए।
युग-पुरुष वोही, जो युग को बदले,
उन्हे पूजता है तभी संसार...

बुधवार, अक्टूबर 19, 2016

फिर क्यों होगा तलाक...

जो  बच्चे,
 मां के साथ हैं,
पापा को ढूंढ़ते हैं,
जिन के पास, केवल  पापा हैं,
वो तरसते हैं,
मां की ममता को...
बच्चों को
आवश्यक्ता होती है,
दोनों के प्रेम की,
दोनों में से,
एक का न होना,
बच्चे का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता है...
जो माता-पिता,
तलाक के लिये,
कतार में खड़ें है,
वे अपने बच्चों की,
जीवन की सबसे बड़ी,
आवश्यक्ता छीन रहे हैं...
नहीं त्याग सकते,
दोनों अपने अहम   को,
अहम बच्चों से बड़ा है क्या?
विवाह  फेरों को समझो,
 आपस में विश्वास रखो,
    फिर क्यों होगा तलाक...


मंगलवार, अक्टूबर 11, 2016

विजयदशमी का संदेश यही है।

हम जलाते हैं हर बार,
पुतला केवल रावण का,
जिसने अपनी बहन के अपमान का
बदला लेने की खातिर
सीता जी का हरण किया।
न स्पर्श किया,
न अपमान किया,
अशोक-वाटिका में,
अतिथि सा मान दिया।
हम दशहरे के दिन,
 भूल जाते हैं,
आज के उन रावणों को,
जिन्हें न तीन वर्ष की बेटी की,
मासूमियत दिखती है,
न कौलिज जाने वाली बेटी की,
 मजबूरी ही।
वे केवल मौका पाकर,
उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं।
आज के ये रावण भी,
रावण का पुतला जलाते हैं,
इन्हें दंड दिये बिना,
हम कैसा दशहरा मनाते हैं।
श्री राम हमारे आदर्श हैं,
रावण फिर भी घूम रहे हैं,
हम केवल पुतले जलाकर,
मस्ति में झूम रहे हैं।
रावण मेघनाथ के पुतले जलाना,
विजयदशमी नहीं है,
अधर्मियों को दंडित करना,
विजयदशमी का संदेश यही है।
  

रविवार, सितंबर 04, 2016

मां के हाथ का भोजन ही  लगता है।


इन 32 वर्षों में,
सब कुछ बदला है।
पर्व, मेले,  त्योहार भी,
रिति-रिवाज, संस्कार भी।
पीपल नीम अब काट  दिये,
नल, उपवन भी बांट दिये,
अब चरखा भी कोई नहीं बुनता,
दादा की कहानियां भी नहीं सुनता।
मेरा गांव,  शहर बन गया,
भाईचारा  अपनापन गया।
पहले घर थे चार,
पर नहीं थी बीच में दिवार।
अब घर चालिस बन गये,
सब में गेट लग गये।
 अब आवाज देकर नहीं बुलाते,
मोबाइल से ही नंबर मिलाते।
पर आज भी नहीं बदली,
मेरे आनंद की वो गंगा,
जिसके पास,
स्नेह, ममता, त्याग,
आज भी पहले से अधिक है।
पर मैं जानता हूं,
वो अब थक चुकी है,
वो अब खाना नहीं बना  सकती,
पर नहीं मानती,
घर में  खाना वोही बनाती है।
वो नहीं देना चाहती,
अपना ये अधिकार किसी को,।
सत्य कहूं तो,
मुझे दुनियां में,
सबसे अच्छा,
मां के हाथ का भोजन ही  लगता है।

गुरुवार, अगस्त 18, 2016

राखी बांधते हुए, अपने भाइयों से कह रही है।

आज हर बहन खुद को
असुर्क्षित महसूस कर रही है।
राखी बांधते हुए
अपने भाइयों  से कह रही है।
केवल मेरी ही नहीं,
हर लड़की की    करना रक्षा,
भयभीत है आज सभी,
 सभी को चाहिये सुर्क्षा।
जानते हो तुम भया,
 दुशासन खुले   घूम रहे  हैं,
अकेली असहाय लड़कियों को,
तबाह करने के लिये  ढूंढ़ रहे  हैं।
 ये  रूपए, उपहार,
 मुझे नहीं चाहिये,
जो मिले  मां-पिता  से  
तुम में वो संस्कार चाहिये।
ये रक्षा का  अटूट बंधन,
भारत में है  सदियों पुराना,
मुझे ये वचन देकर
तुम भी इसे सदा निभाना।
आप सभी को पावन पर्व रक्षाबंधन की असंख्य शुभकामनाएं...

मंगलवार, अगस्त 16, 2016

हे भारत! आज तुम बिलकुल अकेले हो...

हे भारत
आज तुम बिलकुल अकेले हो,
इस महाभारत के रण में,
न कृष्ण है
न अर्जुन,
न धर्मराज,
आज विदुर भी,
तुम्हारा हित नहीं चाहता।
भिष्म द्रौण
और कृपाचार्य की निष्ठा,
आज मात्रभूमि के प्रति नहीं,
कुर्सी के प्रति है...
आज भी जंग भी,
सिंहासन के लिये ही है,
पर आज के राजा,
तुम्हारी खुशहाली नहीं,
अपनी खुशहाली चाहते हैं,
अब सत्य कोई नहीं बोलते,
न टीवी चैनल, न अखबार,
न लेखक न कवि,
न विद्वान न ज्ञानी,
इस लिये जंता भी  भ्रमित है।
सुभाष जैसों को आज भी,
कहीं नजरबंद किया जा रहा है...

सोमवार, अगस्त 15, 2016

बच सकेगी हमारी स्वतंत्रता है।


आप सभी को भारत के पावन पर्व स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं...
जो नहीं कहते  वंदे मातरम,
पाकिस्तानी झंडा लहराते हैं,
जो दे रहे हैं देश को गाली
वो कौन है? वो कौन हैं?
जो पनाह देते हैं, आतंकवादियों को,
भारत को खंडित करना चाहते हैं,
अफजल की फांसी का विरोध करने वाले,
वो कौन है,? वो कौन हैं?
ये वोही है, जिनके कारण,
हमलावर देश में आये,
कई वर्षों तक  यहां जुल्म किये,
मंदिर तक भी गिराए।
न हिंदू हैं वो,
न वो मुस्लमान हैं,
न उन्होंने कभी गीता पढ़ी है,
न पढ़ी कुराण है।
जब तक जिवित हैं, जयचंद यहां,
भारत मां को खतरा है,
इनकी जडें उखाड़ फैंको,
बच सकेगी हमारी स्वतंत्रता है।

सोमवार, अगस्त 01, 2016

नहीं आयेगा, अब वो सावन...

न बच्चों के हाथ में,
कागज की कश्तियाँ
न इंतजार है,
परदेस से   पिया का।
नहीं दिखते अब
   झूलें बागों में,
  न मेलों मे रौनक,
न तीज त्योहारों में।
अब तो सावन
डराता है,
विक्राल रूप
दिखाता है।
कहीं बाड़ आती है,
कहीं फटते हैं बादल,
होती है प्रलय,
करहाते हैं मानव।
सूखे नाले भी
कोहराम मचाते हैं,
गांव, शहर,
बहा ले जाते हैं।
न वो हरियाली,
न वो रौनक,
नहीं आयेगा,
अब वो सावन...



मंगलवार, जुलाई 19, 2016

पर भविष्य से खेलते हैं...

मैं एकलव्य हूं,
मेरी रुह आहत नहीं हुई,
जब गुरु द्रोणाचार्य ने
अर्जुन को विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्नुधारी बनाने के लिये 
मुझ  से गुरु-दक्षिणा में,
मेरे दाहिने हांथ का अँगूठा मांगा था...
मेरे गुरु ने तो केवल
मेरे दाहिने हांथ का अँगूठा ही  मांगा था
जो सहहर्ष मैंने दे दिया था,
आज मेरा नाम तो,
गुरु द्रोणाचार्य और  अर्जुन से भी
 अधिक आदर से लिया जाता है...
 न मेरा जन्म राजवंश में हुआ,
न मेरा ऊंचा कुल था,
न सर्वश्रेष्ठ बनने की कामना,
मेरी गुरु पर श्रधा थी,
एकग्रता ने मुझे पहचान दी
मेरी  निष्ठा ही मेरे  काम आयी...
आज न मैं हूं,
न मेरे गुरु द्रोणाचार्य
न वो शिक्षा रहीं,
न सत्य को लिखने वाले,
अगर आज मेरे साथ वो अन्याय होता,
तो सत्य दब जाता कागजों में ही...
 आज मेरी रुह भी आहत है,
जब देखता हूं, सुनता हूं,
उन गुरुओं के बारे में,
जिनकी निष्ठा पैसे पर है,
जो गुरु-दक्षिणा तो नहीं मांगते,
पर भविष्य से खेलते हैं...


शुक्रवार, जुलाई 08, 2016

कलयुग में राम अवतार का...

आतंकवाद का जन्म
भूख से हुआ,
जेहाद के कारण,
पला-बढ़ा,
जैसे त्रेता युग में,
राक्षसों ने था आतंक मचाया,
वैसे ही   सारी दुनिया में,
भय है आतंकवाद का...
आतंकवादी तो  बेचारा,
क्या करे हालात  का मारा,
खिलौने नहीं, शस्त्र  मिले,
प्रेम नहीं, डंडे खाए,
ज्ञान  नहीं, जनून बढ़ाया,
मन से मौत का भय मिटाया।
न जीवन का मोह,
न प्रेम किसी से....
ये दानव भी नहीं,
महा दानव है कोई,
न धर्म  है इनका,
न इमान कोई।
कांपती है भारत मां  जब,
सुनते हैं पुकार देवता सब,
समझो  समय आ गया है,
कलयुग में  राम   अवतार का...

   

मंगलवार, जून 28, 2016

मैंने घर नहीं, एक मकान बनाया है....

आज सुबह फिर
मेरे पड़ोस से,
हंसमुख दादा   की
वोही आवज सुनाई दी,
"अब हाथ में लाठी,
आंख पे ऐनक,
थके पांव,
तन पे झुर्रियाँ
न मुंह में दांत,
झड़ गये बाल
बोलो बेटा
अब कहां जाऊं"...
याद आया मुझे,
एक दिन खलियान में,
हंस मुख दादा,
अपने मित्र से रोते हुए बोले थे,
"एक ख्वाइश थी,
अपना घर हो,
ख्वाइश पूरी करने के लिये,
दिन रात एक किये,
घर बन भी गया,
पर आज पता चला,
मैंने घर नहीं,
एक मकान बनाया है"....

शुक्रवार, जून 17, 2016

अब क्या करें?

शौक आदत बन गयी
अब क्या करें?
नशा है जहर
अब क्या करें?
आशाएं मां-बाप की
दर दर भटक रही,
उनके बिखरे  अर्मानों का,
अब क्या करें?
समझाया था बहुत
न सुनी तब  किसी की,
ओ समझाने वालों बताओ,
अब क्या करें?
न होष है खुद की
न पास है कोई हितेशी, 
 जीवन है अनुमोल,
अब क्या करें?
वो दोस्त  भी तबाह है
जिसके साथ धुआं उड़ाया,
जेब भी है  खाली,
अब क्या करें?
ऐ दोस्त तुने मुझे,
नशे की जगह जहर दिया  होता,
न जीना पड़ता इस हाल में,
अब क्या करें?


मंगलवार, मई 17, 2016

हम बंद कमरों में बैठे हैं

हम बंद कमरों में बैठे हैं,
पंछी तो गीत गाते हैं,
मां  के पास वक्त नहीं है,
 बच्चे लोरी सुनना चाहते हैं।
न कल कल झरनों नदियों की,
न किलकारियां मासूम बच्चों की,
संगीत नहीं है जीवन में,
निरसता में पल बिताते हैं।
वर्षों बाद  गया    चमन में,
लगा जैसे स्वर्ग यहीं है,
क्रितरिम हवा पानी से,
हम अपनी उमर घटाते हैं।
होता है जब  घरों  में बंटवारा,
सूई तक भी बांटी जाती है,
मां-बाप नहीं बंटते,
न कोई उनको पाना  चाहते हैं।
पैसा है उपयोग के लिये,
हम उपयोग मानव का करते हैं,
जोड़-जोड़ के पैसा रखते,
मानव को दूर भगाते हैं।

शनिवार, मई 07, 2016

काम नहीं नाम बिकता है...

सरहदों पर
खड़े हैं रक्षक
घर से दूर
मां की रक्षा के लिये।
पर हम नहीं जानते  उन्हें
बच्चे भी नहीं पहचानते उन्हें
क्योंकि उनकी लाइव कर्वेज नहीं होती।
 वे   अभिनय भी  नहीं कर रहे हैं।
उनका भाग्य मैदानों में लगने वाले
चौकों छक्कों पर निर्भर नहीं होता।
कहते हैं न,
जो दिखता है, वोही  बिकता है।
 एक किसान
 सब से अधिक काम करता है,
सुबह से शाम तक,
रात को भी नहीं सोता,
रखवाली करता है फसल की।
चिंता सताती है कर्ज की।
कई बार तो
दुखी होकर
आत्महत्या भी कर देता है।
क्योंकि वो जानता है
हमारे देश में
काम नहीं नाम बिकता है...