नानक के इस धरा पर,
हैं गुरु आज, कई हजार,
पर नानक सा नहीं है कोई,
इसी लिये है अंधकार...
जब भूल गये थे गीता को,
श्री कृष्ण की अमर कविता को,
अन्याय, अधर्म का राज्य था,
हो रहा था शोषण जंता का।
तब नानक ने गीता समझाई,
गुरु ग्रंथ में लिखा सार...
कहा था ये दशम गुरु ने,
गुरु ग्रंथ को ही गुरु मानना,
ये गुरु कौन है, कहां से आये,
फिर इन्हें गुरु क्यों मानना।
इन्हें देश धर्म की चिंता नहीं,
ये कर रहे हैं केवल व्यपार...
सरकारें चाहे कुछ भी करे,
ये गुरु हैं, कुछ नहीं बोलते,
पांचाली के चीरहरण पर,
अब भी ये न मुंह खोलते।
भोली-भाली जंतां से,
मांगते हैं पैसा बेशुमार...
इन पर न कोई कर लगता,
ये खूब मौज उड़ाते हैं,
जब इनकी चोरी पकड़ी जाए,
शिष्य शोर मचाते हैं।
इन्हें कानून का भय नहीं,
ये हैं धर्म के ठेकेदार...
राम ने रावण को मारा,
कृष्ण ने कंस संहारा,
विष पीकर शंकर कहलाए,
गोविंद ने चार सुत गवाए।
युग-पुरुष वोही, जो युग को बदले,
उन्हे पूजता है तभी संसार...
हैं गुरु आज, कई हजार,
पर नानक सा नहीं है कोई,
इसी लिये है अंधकार...
जब भूल गये थे गीता को,
श्री कृष्ण की अमर कविता को,
अन्याय, अधर्म का राज्य था,
हो रहा था शोषण जंता का।
तब नानक ने गीता समझाई,
गुरु ग्रंथ में लिखा सार...
कहा था ये दशम गुरु ने,
गुरु ग्रंथ को ही गुरु मानना,
ये गुरु कौन है, कहां से आये,
फिर इन्हें गुरु क्यों मानना।
इन्हें देश धर्म की चिंता नहीं,
ये कर रहे हैं केवल व्यपार...
सरकारें चाहे कुछ भी करे,
ये गुरु हैं, कुछ नहीं बोलते,
पांचाली के चीरहरण पर,
अब भी ये न मुंह खोलते।
भोली-भाली जंतां से,
मांगते हैं पैसा बेशुमार...
इन पर न कोई कर लगता,
ये खूब मौज उड़ाते हैं,
जब इनकी चोरी पकड़ी जाए,
शिष्य शोर मचाते हैं।
इन्हें कानून का भय नहीं,
ये हैं धर्म के ठेकेदार...
राम ने रावण को मारा,
कृष्ण ने कंस संहारा,
विष पीकर शंकर कहलाए,
गोविंद ने चार सुत गवाए।
युग-पुरुष वोही, जो युग को बदले,
उन्हे पूजता है तभी संसार...
अति सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति । पांच लिंकों का आनंद की लिंक खुल नही रही है। कृपया देखिएगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना है, मुझे बहुत पसंद आई....
जवाब देंहटाएंएक नई दिशा !