शुक्रवार, दिसंबर 19, 2014

भाग्यशाली और बदनसीब


भाग्यशाली है वो कुत्ते
जिन  का लालन पालन
बड़ी बड़ी कोठियों में
किसी राजकुमार की तरह हो रहा है
निछावर है जिनपर
शहर की सुंदरियों का सकल प्रेम


उन्ही  कोठियों में
बदनसीब वो बच्चे  भी रहते  हैं
जिन्हे रोटी भी
ताने सुन सुनकर
काम के बदले मिलती है।
 प्रेम पाने की तो
वो अपेक्षा ही नहीं करते।

अगर इन कोठियों में
कुत्तों की जगह
 इन बच्चों का लालन पालन होता
तो मैं कभी भी
इन बच्चों को बदनसीब
उन कुत्तों को भाग्यशाली न कहता।

गुरुवार, दिसंबर 11, 2014

काफी है तुम्हारे ही  विनाश के लिये।

भारत विभाजन के बाद
उठी चिंगारी वहां
यहां भी।
ज्वाला बन उसने
हाहाकार मचाया यहां
खाक  बनाया वहां भी।
यहां की चिंगारी
तो बुझ गयी थी
कुछ ही महिनों में।
वहां   चिंगारी आज भी
सुलग रही है
नफरत की हवा से।
चाह  कर भी
इस चिंगारी को
बुझा न सके हम।
तुम्हारा ये बारूद का कोष
और ये एक  चिंगारी
काफी है तुम्हारे ही  विनाश के लिये।

शनिवार, दिसंबर 06, 2014

6 दिसंबर का महत्व

 6   दिसंबर का महत्व
हिंदुओं के लिये भी
मुस्लिम के लिये भी है।
पर एक हिंदूस्तानी के लिये
इस का महत्व
 0 है।
गिराए गये मंदिर कयी
शोर भी न दिया सुनाई
सोचा क्यों खून बहाएं
 आताताई उस  बाबर की
मस्जिद गिरने की चिंगारी
आज भी  क्यों थमती नहीं।


जो भी  हुआ है  कल
भूल जाना अच्छा है उसे
न किसी की जीत है उस में
न प्राजित   हुआ है कोई
वो रक्त किसी राज नेता का नहीं
आम आदमी का था।
 
एक हिंदूस्तानी को
न वहां मंदिर चाहिये
न मस्जिद
आवश्यक्ता है अस्पताल की
या स्कूल चाहिये।

शुक्रवार, दिसंबर 05, 2014

केवल शस्त्र चलाते हैं अश्वस्थामा की तरह।

 एक स्वार्थ के लिये
काटते हैं उस  वृक्ष को
जो किसी से कुछ नहीं कहता
न किसी से कुछ मांगता है।
खड़ा है वर्दान बनकर
 घर हैं  इन पंछियों का भी।

देता है स्वच्छ हवा
हमे जीने के लिये भी ।
आने जाने वाले पथिक को
मिलती है   छाया
भूख लगने पर
खाते हैं उसके फल

अपने स्वार्थ के लिये
बन जाते हैं दानव
भूल जाते हैं हर परोपकार
नहीं रहती औरों की चिंता
नहीं देखते अपने कल को
केवल शस्त्र चलाते हैं अश्वस्थामा की तरह।

सोमवार, दिसंबर 01, 2014

दुर्भाग्य उस पुष्प का।

फूल टूटने  के बाद भी
लगते हैं सुंदर
कहीं माला में
कहीं मंदिर में
कभी अर्थी पर
कभी विवाह में।

तोड़ने से पहले
नहीं पूछते इनसे
क्या ये चाहते  हैं  अलग होना
अपनी उस  डाली से।
जिसने दिया है
इन्हे  ये सौंदर्य।

एक सुंदर   फूल
जिसे गुमान था
 अपने सौंदर्य पर
चाहता था स्पर्श पाना
रति सी किसी    सुंदरी का
ताकि मिलन हो
सौंदर्य से सौंदर्य का।

दुर्भाग्य उस पुष्प का
उस दिन प्रातः  ही
तोड़कर ले गये उसे
एक भ्रष्ट  नेता की
अर्थी पर चढ़ाने के लिये।
उसकी चाह और  ख्वाब,
वो सौंदर्य भी
उस अर्थी के साथ
राख हो गये मिनटों में।

शनिवार, नवंबर 29, 2014

मौत...

मैंने देखा है
 साक्षात  मौत को
मेरे साथ वर्षों तक
रही भी है   वो
पर पहचाना नहीं
मैंने उसको।

मन भावक होता है
सौंदर्य मौत का
वाणी भी मधुर होती है
कोकिला  सी
अनुपम होता है
उसका आकर्षण
इसी लिये हर आदमी
किसी को भी बिना बतलाए
उसका हो जाता है।

मंगलवार, नवंबर 25, 2014

प्रकृति की तरह...

मुझे लगता है
अब पंछियों की चहचाहट भी
कम हो रही है
...मानवीय  संवेदना की तरह...

अब तो बसंत में भी
मुर्झा कर   गुल
बिखर रहे हैं इधर उधर
...हमारे सपनों की तरह...

अब तो पिंजड़े में बंद
पंछियों को भी
स्विकार है बंधन में रहना
....हमारे बच्चों की तरह...

नहीं सुनाई देती है अब
कहानियों में परियां
उन्हे भी मार दिया होगा
...अजन्मी बेटियों की तरह...

कहीं 21वी सदी में
हमारा अस्तित्व भी
खतरे में तो नहीं है
प्रकृति की तरह...
...

सोमवार, नवंबर 24, 2014

...जीने के लिये तुम्हारे शब्द ही काफी हैं...

    उस दिन जब
मेरा वहां अंतिम दिन था
मुझसे कहा था तुमने
लबों की इस प्यारी मुस्कान को
....कभी मिटने न देना...

आशीषो भरा
आप का कहा हर शब्द
याद रहेगा
जीवन भर मुझे
...हालात भी न छीन सकेंगे  मुझसे...

पर वो मुस्कान
अब लबों पर नहीं है
जो बहुत पहले
भेंट चढ़ गयी हालात की
...जीने के लिये तुम्हारे शब्द ही काफी हैं...

शनिवार, नवंबर 22, 2014

देश की इस धुंधली तसवीर को।



मैंने अपना मत
दिया था जिसे,
मतगणना में
उसे शिकस्त मिली।

न क्षेत्र देखा
न  जाती
न हवा की तरफ
अपना मत बदला।

दल को मैं
महत्व नहीं देता,
आशवासन,  भाषण
बहुत सुन चुका।

देखा था मैंने
व्यक्तित्व उसका
वो बदल सकता था
देश की इस धुंधली तसवीर को।

मंगलवार, नवंबर 18, 2014

हम कहां व्यस्त हैं?


मैं सोचता हूं कि
हमारा अधिकांश काम
आज  होता है मशीनों से
फिर भी हम
व्यस्त हो गये
मशीनों  से भी अधिक।

आज हमारे पास
किसी के लिये ही
यहां तक की खुद के लिये भी
वक्त नहीं है।

बिलकुल भी संदेह नहीं
मशीनें हम से अधिक
और अति शिघ्र काम करती है।
फिर सोचिये जरा
 हम कहां व्यस्त हैं?

रविवार, नवंबर 09, 2014

ये क्रांति लाना चाहता हूं...

तुम दे दो अपने शब्द मुझे,
मैं गीत बनाना चाहता हूं,
सोए हैं जो निदरा में,
उन्हे जगाना चाहता हूं...

नहीं मिलती, मजदूर को मजदूरी,
कर रहा है किसान आत्महत्या,
गांव कली के  हर बच्चे को,
स्कूल भिजवाना चाहता हूं...

प्रताड़ित हो रही   है औरत घर में,
लड़कियों के लिये   पग-पग पे खतरा,
गर्भ में पल रही बेटियों का,
जीवन बचाना चाहता हूं...

मृत हो गया है यौवन आज,
नशे से अनेकों होनहारों का,
नशे के सभी   गिरोह को,
फांसी पे चढ़ाना चाहता हूं....

शोषण न हो किसी का,
सभी को न्याय मिले,
 अंजान न हो   अधिकारों से कोई,
ये क्रांति लाना चाहता हूं...

शनिवार, नवंबर 08, 2014

दिवार...

ये दिवार
जो सहारा देती रही
हर उस आदमी को
जिसे आवश्यक्ता थी
इसके सहारे की...
आज ये दिवार
 गिरने वाली है,
जिसे सहारा देने को
कोई भी तैयार नहीं है...

इसके पत्थर भी,
जिन्हें छुपा रखा था,
प्रेम से अपने आगोश में
भी अलग होना चाहते हैं...
 

शुक्रवार, नवंबर 07, 2014

बापू...

बापू
 मैंने सुना है
किताबों में भी पढ़ा है
तुम भारत के सब से
निर्धन आदमी की तरह
जीवन जीते थे।


मैं ये भी जानता हूं
तुम अपना  हर  काम
स्वयं करते थे।
तुम तो
पहनने के लिये कपड़ा भी
अपने हाथों से बुना करते थे।
तुम्हारा चरित्र तुम्हारी लिखी
किताबों के दर्पण में
देखा है मैंने।

इस लिये आज
मैं महसूस कर सकता हूं कि
तुम्हारी आत्मा भी
आहत होगी
जब हर नेता की
प्रतिमाएं बनाने के लिये
हो रहा है खर्च
वो पैसा जिससे
देश के कयी जनों को
रोटी,
फुटपातियों को
घर,
अभागों को
शिक्षा,
मिल सकती थी।

शनिवार, अक्टूबर 25, 2014

आवारा न कहें...

हर उत्सव, त्योहारों पर,
होती थी मेरी पूजा,
हर पूजा, यज्ञ   के भोग का,
प्रथम अंश  खिलाते थे मुझे।
33 क्रोड़  देव बसते हैं,
होता है जहां मेरा वास,
भूत पिसाच भी नहीं आते वहां
जहां  मििलता है  मुझे मान।
बस में था  तब तक मैंने,
जीवन भर अपना दूध पिलाया।
पर आज मैं बूढ़ी हूं
 दूध देना मेरे बस में नहीं।
तुम्हारे घर को सदा ही
मैंने अपना घर समझा,
 सदा ही, तुम्हारे घर में
 धन भैवभ खुशहाली लाई,
सुख में तुम्हारे साथ रही,
दुख में भी बहुत रोई।
आज मैं बूढ़ी हूं,
केवल  घास फूस तो खाती हूं,
कल लगता था मेरा गोवर भी पावन,
आज  बोझ मैं  ही लगती हूं।
जब आज    मुझे घर से निकाला,
रोई मैं भी मां की तरह,
इससे तुम्हारा  कहीं अहित न हो,
मांगती हूं ईश्वर से ये मन्नत बार बार।
मैं दूध का कर्ज नहीं मांग रही,
न ही  चाहिये मुझे तुमहारे हिस्से की कोई चीज।
तुम मेरे लिये बस इतना करो,
मुझे भय है कहीं लोग,
 कल मुझे भी
 आवारा न कहें...

शुक्रवार, अक्टूबर 24, 2014

नहीं चाहते थे दीप बुझना....

नहीं चाहते थे दीप बुझना,
चाहते थे प्रकाश फैलाना,
भाता है दीपों को,
बस केवल जगमगाना...
कुछ बुझाए हवाओं ने,
कुछ में तेल कम था,
कुछ जलते रहे भोर तक,
था लक्ष्य थिमिर को  मिटाना...
बुझते हुए दीपों ने,
कहा बस हम से ये,
जब जब भी अंधकार हो,
केवल हमे ही जलाना...

बुधवार, अक्टूबर 22, 2014

दिवाली सभी मनाते हैं...


[आप सब को पावन दिवाली की शुभकामनाएं...]
दुख अनेक हों फिर भी देखो,
दिवाली सभी मनाते हैं...
प्रथम गणेश की वंदना करके,
मां लक्ष्मी  को बुलाते हैं...

सब शुभ हो, मंगलमयी हो,
घर घर में समृधि आये,
उमंग, उल्लास, उत्कर्ष हो,
सभी यही चाहते हैं...

घर बाहर हर तऱप,
करते हैं दीपों   से प्रकाश,
जिन घरों में आज भी अंधकार है,
हम उन्हे भूल जाते हैं...

केवल मिट्टी  के दीप जलाएं,
लड़ियों से न ढौंग रचाएं,
गरीब  की खुशहाली  हैं   इनमे,
वो निज हाथों से इन्हे बनाते हैं...

 इस दिवाली पर सुख समृधि,
जन जन को, घर घर में देना,
 पर पहले मां उनके पास  जाना,
जो सड़कों पर रैन बिताते हैं...

सोमवार, अक्टूबर 20, 2014

तो हम कह सकेंगे कि नशा जहर है...

कौन कहता है
नशा जहर है,
जहर मारता है केवल  एक बार,
नशे से मरते हैं बार बार...

जहर  को पीकर,
मरते हैं केवल खुद,
नशा लेने वाला,
मारता हैं औरों को भी...

जहर पीना तो शायद,
किसी की मजबूरी भी  हो सकती है,
पर नशा करना तो,
केवल आदत है...

किसी का प्रिय  मित्र
 कभी भी जहर पीने को नहीं देता,
पर खुशी खुशी से,
नशा करने को कह सकता है...

हमारी अपनी नादानी देखो,
 हम जहर  को तो  बच्चों से दूर रख देते हैं,
  पर सिगरेट या शराब को
टेबल पर सजाते हैं...

जहर की तरह अगर हम और सरकार,
        इन नशिले पदार्थों को बिकने से रोकें,
बच्चों को ये देखने को भी न मिलें,
तो बचा सकते हैं हम  आने वाले कल को...

जब जहर की तरह नशे से भी,
भयभीत होगा हमारा समाज,
नशे को भी आत्महत्या माना जाएगा,
तो हम कह सकेंगे  कि  नशा जहर है...

शनिवार, अक्टूबर 18, 2014

ख्वाब देखने से डरता है...

हर एक आदमी
चाहे  छोटा हो या बड़ा,
 अमीर हो या गरीब,
ख्वाब तो देख सकता है...

ख्वाब देखने के लिये,
न कहीं जाना पड़ता है,
न कुछ देना पड़ता है,
न किसी के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है...

न रिशवत देनी पड़ती है,
न रूपये पैसे की जरूरत होती है,
डिगरी भी हो या न हो,
ख्वाब तो देखे जा सकते हैं...


पर ख्वाब पूरा करने के लिये,
ये सब कुछ करना पड़ता है,
फिर भी पता नहीं,
ख्वाब पूरा  हों या न हो...

इसी लिये आज भी
भारत का युवक,
अनेकों डिगरियां होने पर भी,
 ख्वाब देखने से डरता है...

गुरुवार, अक्टूबर 16, 2014

आंसू भी हैं...

ठेके पर बिकने वाली,
हर बोतल में,
केवल शराब ही नहीं,
आंसू भी हैं...
उस औरत के आंसू,
जो दिन भर प्रिश्रम करके,
शाम को घर में आकर,
हिंसा का शिकार होती है...
उस बच्चे के आंसू,
जिस की फीस के पैसे,
स्कूल में नहीं,
ठेके पर दे आये....
उस मां के आंसू,
जिस की दवा के लिये,
उस के बेटे के पास,
पैसे न होने का बहाना है...
ये आंसू,
शराब से भी अधिक
खतरनाक हैं,
इन से बचके रहना...

शुक्रवार, अक्टूबर 10, 2014

तुम तो खुद भी औरत हो


आयी थी मैंजब  इस घर में,
कहां था मैंने तुम को मां,
तुमने भी बड़े प्रेम से,
मुझे बेटी कहकर पुकारा था,
आज तुम्ही कह रही हो,
क्या दिया तुम्हे,  क्या लाया।
समझो मेरे मन के दर्द को।
तुम तो खुद भी  औरत हो,

मेरी शिक्षा की खातिर,
पिता ने दिन रात एक किये हैं,
मेरे विवाह की खातिर,
उन्होंने कयी कर्ज लिये हैं,
कहां से देंगे वो इतना दहेज,
ये सुन, मां मर जाएगी,
मां उन्हे  भी  जीने दो,
तुम तो खुद भी  औरत हो,

7 फेरे लेकर मैं,
आयी हूं  इस घर में,
अर्थी मेरी जाएगी,
केवल अब  इस घर से।
रूप रंग मेरे गुण देखो,
आयेगी लक्ष्मी,  तुम्हारे घर चलकर,
 मुझे स्नेह,  संमान दो,
तुम तो खुद भी  औरत हो,

सोमवार, अक्टूबर 06, 2014

हमे है पथ बनाने की आदत...

हमे हैं धोखा खाने की आदत,
अपने गमों को छुपाने की आदत,
पथरीला  है ये  रास्ता,
 हमे वहीं है जाने की आदत...

मांगा सूरज से प्रकाश,
पर सूरज ने दी तपश,
होने वाली  है अब शाम,
न है दीपक जलाने की आदत...

कहती है अक्सर मां,
मैंने तुमको दिया सब कुछ,
भाग्य तो तुम्हारा अपना है,
उन्हे मंदिर जाने की आदत...

मंजिल मिले या  न मिले,
चलना है बस  केवल हमे,
काम है किसी का शूल बिछाना,
हमे है पथ बनाने की आदत...

शुक्रवार, अक्टूबर 03, 2014

ये है दशहरे का संदेश...


जीत हुई श्री राम की,
साथ था उनके धर्म,
छल, कपट, और   अत्याचार
थे रावण के कर्म।
धन वैभव और नारी,
थे रावण के पाष,
क्रोध,  लोभ, अहंकार से,
होता है केवल  विनाश,
कैसे जीत होती रावण की,
जब घर में ही था क्लेश,
सत्य की जीत होती है सदा,
ये है दशहरे का संदेश...
[आप सब को इस महान पर्व की शुभकामनाएं...]


सोमवार, सितंबर 29, 2014

बोझ बैग का उठाना है मुशकिल,

बोझ बैग का उठाना है  मुशकिल,
करेंगे कैसे ये पढ़ाई,
खेल के लिये वक्त  नहीं है,
चेहरे पे है उदासी छाई...

पग-पग पे स्कूल  खुले हैं,
फिर घरों  में बच्चे क्यों?
सरकार की दूरदर्शी  योजनाएं,
सेवाएं क्यों  न काम आयी...

अभी बोलना भी न सीखा,
कैसे पढ़ेगा वो किताब,
बनाना चाहते हैं बच्चों को मशीन,
जैसे मानव ने है    मशीन बनाई...

दिनभर स्कूल, शाम को ट्यूशन,
अब हमेशा ही   है टैस्ट की चिंता,
प्रथम आना है कक्षा में,
मां बाप ने ये रट है  लगाई...

वो शिक्षा क्या, जिससे बचपन मुर्झाए,
खेल खेल में बच्चों को पढ़ाएं,
प्रकृति से न इन्हे दूर ले जाएं,
वेदों में  ये बात समझाई...

गुरुवार, सितंबर 25, 2014

हे ईश्वर...

हे ईश्वर,
तुम्हारे मंदिर में,
आते हैं वो,
जिन के पास
होता है सब कुछ,
और पाने की इच्छा लिये
तुम्हे प्रसन्न करने के लिये,
चढ़ाते हैं चढ़ावा।
और ये  सोचकर
मन ही मन में
प्रसन्न  होते हैं,
 कि तुम प्रसन्न हो गये हो...

तुम्हारे मंदिर के बाहर,
तुम्हारे भक्तों के सामने,
एक के बाद दूसरा
दोनों हाथ फैलाता हुआ
अपनी विवशता बताता हुआ,
नजर आता है।
ये देखकर सोचता हूं,
वो तुम से क्यों नहीं मांगता?
हरएक के आगे  क्यों गिड़गिड़ाता है?
क्या तुम भी उसकी नहीं सुनते,
वो हर आने जाने वाले से,
मांगता है तुम्हारे नाम पर...

मंगलवार, सितंबर 23, 2014

कैसे चलते साथ तुम्हारे...

कैसे चलते  साथ तुम्हारे,
जब पग पग पे दिये धोखे तुमने,
कभी विवादों की बिजलियां गिराई,
कभी पथ में शूल बिछाए तुमने...

खुशनुमा थी जिंदगी,
असंख्य अर्मान थे,
सरल  भावुक हृदय को,
जलाकर राख बनाया तुमने...

पहचान न सका मैं तुम को,
तुम तराशा हुआ पत्थर हो,
चलते चलते मुझे  पथ में
बार बार गिराया तुमने...

राह में पड़े  पत्थर से पूछा
तुम्हे पत्थर बनाया किसने,
दशा उसकी देख मैं रो पड़ा,
उसे भी पत्थर बनाया तुमने...

इतराओ न अपनी जीत पर,
जो मिली है विश्वासघात से,
जो जो मैंने खोया है,
वोही है पाया तुमने...


शनिवार, सितंबर 20, 2014

प्राजय...

हम अक्सर जीवन में,
जीत के जश्न    को
शिघ्र भूल जाते हैं...

जीवन में मिली प्राजय को,
वर्षों तक याद करके,
आंसू बहाते हैं...

पर प्राजित होने की पीड़ा,
समझ सकता है वोही,
जो खुद प्राजित हुआ हो...

अगर जीतने वाला,
छल या विश्वासघात से जीता हो
तो वो जीत नहीं है...

 पर प्राजय चाहे,
धर्म या अधर्म से हुई हो,
प्राजय तो प्राजय है...

शुक्रवार, सितंबर 19, 2014

किसने यहां क्याहै  पाया...

सांझ हुई तो घर आये पंछी,
नीड़ अपना, टूटा पाया।
रैन बिताई,  पेड़ो पर
भोर हुई तो नव नीड़ बनाया...
जो हुआ उसे भूल गये,
फिर हर पल अगला  हंस के बिताया।
यहां तो सब कुछ नशवर हैं,
किसने यहां क्याहै  पाया...
 

गुरुवार, सितंबर 18, 2014

पीड़ित  है इस लिये     भारत मां...+


विदेशी हमने दूर भगाए,
अपने नियम, कानून बनाए,
अपनों को ही सत्ता दी,
पीड़ित  है फिर    भी भारत मां...

हिंदू मुस्लिम  के झगड़े सुलझाए,
भाषा जाति के विवाद  मिटाए,
दुश्मनों को भी हमने  मात दी,
पीड़ित  है फिर    भी भारत मां...

तुम मुझे वोट दो,
मैं तुम्हे खुशहाली दूंगा,
ये कहने वाले नेता बहुत हैं,
पीड़ित  है फिर    भी भारत मां...

विपक्षी चाहते कुर्सी पाना,
सत्ता पक्षियोम का है काम खाना,
पिस रही है बीच में  केवल   जंता,
पीड़ित  है इस लिये     भारत मां...

मंगलवार, सितंबर 16, 2014

ये शस्त्र उठाकर...

देखते हैं हम अक्सर,
हर शहर, हर गली  में,
होटल और ढाबोपर,
बर्तन धोते हुए बच्चे को,
 जानते हैं हम सब,
ये बाल शोषण है,
कानूनी अपराध है।
हम आवाज उठा सकते हैं,
छोड़ो हमे क्या,
ये सोच कर,
हम निकल पड़ते हैं,
अपनी राह पर...

कानून तो केवल,
शस्त्र हैं हमारे पास,
अन्याय से लड़ने का,
न्याय पाने का,
हम सब दोषी हैं,
ये समाज दोषी हैं,
जो शस्त्र होने पर भी,
उस का प्रयोग नहीं करते,
रुक सकता है शोषण,
मिल सकता है सब को न्याय,,
जीते जंग,
 ये शस्त्र उठाकर...

शनिवार, सितंबर 13, 2014

तब हिंदी ने ही जगाया हमे...


[आप सब को 14 सितंबर यानी हिंदी दिवस की शुभ कामनाएं...]
जब हम गुलाम थे,
 विश्व में गुम नाम थे,
मिट गयी थी हमारी पहचान,
 तब हिंदी ने ही  जगाया हमे...


हम कौन थे?
 कैसा था अदीत हमारा?
हम क्यों गुलाम हुए,
ये हिंदी ने ही  बताया हमे...

कहीं मंदिर मस्जिद का झगड़ा था,
कोई मांग रहे थे  खालीस्तान,
पानी पर  भी विवाद था,
हिंदी ने ही  एक बनाया हमे...

जिन से हमने आजादी पाई,
भाषा उनकी ही अपनाई,
सोचो  कैसे आजाद हैं हम?
ये अब तक समझ न आया हमे...

बुधवार, सितंबर 10, 2014

मेरे गांव का वो वृक्ष

मेरे गांव का वो वृक्ष,
जिसकी छाया में हम,
बैठकर घंटों,
बाते किया करते थे...
हम सोचा करते थे,
यहां आस पास कोई नहीं है,
पर वो खामोश वृक्ष,
सब कुछ सुना करता था...

इसी लिये वो वृक्ष भी,
हम दोनों के जुदा होने पर,
बुलाता है तुम्हे अक्सर,
मुझ से भी कुछ कहना चाहता है...
 

मंगलवार, सितंबर 09, 2014

आता  हूं मैं अपनी सुनाने...

आता  हूं मैं मंदिर में,
निर्मल मन से,  धूप  जलाने, 
ईश्वर मेरी  सुनें, न सुनें,
आता  हूं मैं अपनी सुनाने...

राम-नाम का एक शब्द,
महकाता है मेरी   रुह को,
शोर-गुल से दूर यहां,
आता हूं मैं  मन बहलाने...

कभी खोना, कभी पाना,
होता रहता है जीवन में,
आता हूं कभी नम आंखों से,     
 कभी खुशियों के पल बिताने...

अरज है बस एक मेरी,
बुलाते रहना इस दर पे,
आता रहूं,  पुष्प लेकर,
बस तुम्हारा आशीश पाने...

सोमवार, सितंबर 08, 2014

ये भ्रम नहीं, सत्य है...

होती है मृत्‍यु  जब  किसी की,
हम सब उदास होते हैं,
अब न आयेगा वो कभी,
जी भरके  हम  रोते हैं,
ये रोना-धोना चार दिन का,
ये भ्रम नहीं, सत्य है...

मृत्‍यु   है सत्य, जीवन है नशवर,
बैठे हैं हम, ये सत्य भूलकर,
जो आया है, उसे जाना है,
ये तन,  खाक हो जाना है,
जाना है छोड़, यहीं सब,
ये भ्रम नहीं, सत्य है...

जियोगे फूल बन, नाम होगा,
कांटों सा जीवन, बदनाम होगा,
जलती है शमा, देती है प्रकाश,
न रखती है, लेने वाले से आस,
महामानव, न मरता है कभी,
ये भ्रम नहीं, सत्य है...









जिन्दा

शनिवार, सितंबर 06, 2014

ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

आओ आचार्य यहां बैठो,
कुछ पल बिताओ मेरे पास,
  मैं आहत पड़ा हूं रण भूमि में,
चंद क्षण ही हैं तुम्हारे पास,
मेरी शपत, पक्षपात तुम्हारा,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

तुमने तेज अर्जुन में देखा,
उस तेज को खूब निखारा तुमने,
दुर्योधन में अबगुण असंख्य देखे,
न दूर करने का तुमने प्रयत्न किया,
न बनाया तुमने उसे सुयोधन,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

सौ कौरव, पांच पांडव,
शिष्य थे केवल तुम्हारे,
हस्तिनापुर का सुनहरा कल हो,
भेजे थे तुम्हारे पास ये सारे,
लक्ष्य था तुम्हारा केवल द्रुपद ,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

अर्जुन को उचित थी  शस्त्र  शिक्षा,
दुर्योधन को देते शास्त्र ज्ञान,
बाधक शकुनि को दंड दिलाते,
समझते सब को एक समान।
तुम्हारी प्रतिज्ञा, तुम्हारा स्वार्थ,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

ये कैसी शिक्षा, ये  कैसा ज्ञान,
भाई  भाई के ले रहा है प्राण,
न धर्म,  आचरण, मर्यादाएं,
न रह गयी अब   भावनाएं,
जो देखा, हम केवल  मौन रहे,
ये पृष्ठभूमि हैं, इस रण की,

सोमवार, सितंबर 01, 2014

आम आदमी की आवाज...

कोई भी सरकार आये,
राजा चाहे कोई भी हो,
आम आदमी  की आवाज,
कोई  भी  नहीं सुनता...

आम आदमी भी,
जब पा जाता है कुर्सी,
आम आदमी की आवाज,
वो भी नहीं सुनता...

आते हैं जब राजा,
उमड़ आती है भीड़,
उनका कहा हर शब्द,
आम आदमी आनंद से है  सुनता...

आम आदमी की हर पीड़ा,
महसूस की कवियों  ने,
कवियों  की आवाज  तो,
आम आदमी भी नहीं सुनता...

सोमवार, अगस्त 25, 2014

बोलो-बोलो पाकिस्तान...

कितनी बार शिकस्त है खाई,
रण छोड़ के कब कब भागे हो,
तबाही करके क्या पाया अब तक,
बोलो-बोलो पाकिस्तान...

कितने बच्चे भूखे हैं,
कितनी नारियां घुटन में मर्ती,
कितने मासूम बेमौत मर्ते,
बोलो-बोलो पाकिस्तान...

न तुम्हारा कोई धर्म- इमान,
न शिक्षा देता ये इस्लाम,
कौन है खुदा, जेहाद ये कैसा,
बोलो-बोलो पाकिस्तान...

हिंदुओं की सुनकर दशा,
थर-थर रुह कांपती है,
कब तक खून बहेगा मानवता  का,
बोलो-बोलो पाकिस्तान...

कहता भारत सुनो तुम से,
अमन ही हमारी शकती है,
खुशहाली चाहिये या संहार,
बोलो-बोलो पाकिस्तान...

रविवार, अगस्त 17, 2014

आओ श्याम, बंसीधर...


[पावन पर्व श्री कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं...]



आहत यमुना तुम्हे बुलाए,
गायें     पीड़ा किसे सुनाएं,
आस है सब की तुम्ही पर,
आओ श्याम,  बंसीधर...

दुष्ासन  छिपा है, हर मोड़ पे आज,
बचाओ हिंद की बेटी की लाज,
    व्याप्त है केवल मन में  डर,
आओ श्याम,  बंसीधर...

पाषाण हो गयी भावनाएं,
न रही अब मर्यादाएं,
हिंसा, भोग-विलास है अब,
आओ श्याम,  बंसीधर...

मात-पिता ही  शड़ियंत्र रचाते,
अजन्मी बेटी का अस्तित्व मिटाते,
सूना है,  बेटी बिन घर,
आओ श्याम,  बंसीधर...

भाई-भाई में बैर है,
सुत के लिये, मां गैर  है,
खंडित हो गये रिश्ते सब,
आओ श्याम,  बंसीधर...

सूनी है,  ब्रज की गलियां,
सूख गयी है,  मधुवन की कलियां,
मौन है,  वृक्ष  सब,
आओ श्याम,  बंसीधर...

कहा था तुमने,  आओगे,
 धर्म, मानवता  को, बचाओगे,
कहता भारत, आओ अब,
आओ श्याम,  बंसीधर...

गुरुवार, अगस्त 14, 2014

हमने आज़ादी पाई है...

जीतकर एक लंबी जंग,
हमने आजादी पाई है,
पुत्रों ने धर्म निभाया,
मां की पीड़ा मिटाई है...
साक्षी है सूरज चंदा,
सत्य गंगा कहेगी,
शहीदों  ने अपने खून से,
ये हरियाली लाई है...
लड़े अंत तक, पर हार न मानी,
शीश  मां का कभी,  झुकने न दिया,
खुद मरते हुए, दस और मारे,
सीख गोविंद की सदा  ही,  काम आयी है...
न हस्ति इसकी कभी, मिटने देंगे,
जग अंबर में हिंद, चमकता रहेगा,
हमने इसकी पावन माटी,
सदा मस्तक पे लगाई है...

[स्वतंत्रता दिवस की असंख्य शुभकामनाएं...]

सोमवार, अगस्त 11, 2014

वो तो अभी ख्वाब है...



जो दिया था तुम्हे खुदा ने,
वो तुम्हारी तकदीर थी,
जो तुम पाना चाहते हो,
वो तो  अभी ख्वाब है...

बोला मिर्जा,  साहेबा से,
आज तुमने बेवफाई की,
वफा करोगे अगले जन्म में,
वो तो  अभी ख्वाब है...

सफर आधा कट चुका,
सफर आधा बाकी है,
कोई अब साथ चलेगा,
वो तो  अभी ख्वाब है...


जो शब्द  मेरे मौन है,
वो मौन रहेंगे शायद सदा,
उन शब्दों  को कोई सुनना चाहेगा,
वो तो  अभी ख्वाब है...

चाहत है दिल में यही,
आता रहूं मैं काम सब के,
ये जीवन किसी के काम आयेगा,
वो तो अभी ख्वाब है...

शनिवार, अगस्त 09, 2014

राखी के इस धागे में...

[पावन पर्व रक्षाबंधन की असंख्य शुभकामनाएं...]

भाई बहन का संबंध,
पावन है सब से,
ये संदेश है,
राखी के इस धागे में...

बहन का  प्रेम,
भाई का वचन,
सावन की खुशबू है,
राखी के इस धागे में...

प्राचीन परंपरा,
रिशते की पावनता,
भारत का गौरव है,
राखी के इस धागे में...

राष्ट्र प्रेम,
धर्म की रक्षा,
नारी सन्मान है,
राखी के इस धागे में...

बहन  का त्याग,
भाई  का बलिदान,
दिखावा नहीं, निष्ठा है,
राखी के इस धागे में...

सोमवार, अगस्त 04, 2014

मां उदास हूं, तुम बिन शहर में



मां उदास हूं, तुम बिन शहर में,
दिखते हैं ख्वाब, बस  गांव के,
चलना पड़ता हैं, यहां संभल के,
 काम ही काम, न आराम  यहां...

यहां आदमी तो  असंख्य हैं,
नज़र आता नहीं, इनसान यहां,
खामोशी है, न घर कोई,
दिखते हैं केवल, मकान यहां...               

यहां  फूलों में, वो खुशबू नहीं,
विहग भी,  गीत गाते नहीं,
पहचानते हैं, सब मुझे,
फिर भी हूं, अंजान यहां...

कहा था तुमने, शहर जाना,
पढ़ना-लिखना, पैसे कमाना,
न मिलती पैसे में, तुम्हारी मम्ता,
दौड़ाता है हरपल, तुफान यहां...

गुरुवार, जुलाई 24, 2014

तुम कुर्सी हो या नशा हो...

शिकस्त खाकर, अंतिम बार,
गया नेता कुर्सी के पास,
सन्बोधित करके कहा उसे,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

जीता था मैं जब चुनाव,
लगा स्वर्ग यहीं है,
संपूर्ण सुख भोगे मैंने,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

जंता आगे पीछे दौड़े,
मैं खुदा हूं, ऐहसास हुआ,
इमान धर्म मैं भूल गया था,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

मांगने गया था जब वोट,
किये थे वादे जंता से,
तुम्हे  पाकर, भूल गया सब,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

दुर्योधन मरा तुम्हारे लिये,
कन्स  ने पिता को बंदी बनाया,
श्री राम अमर हुए, तुम््हे त्यागकर,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

तुम नशवर हो, जाना अब,
हारा हूं, चुनाव जब,
फिर ख्वाइश है तुम्हे पाने की,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

बुधवार, जुलाई 23, 2014

आज भी मुझ को...

उस दिन मैं, जब मिला था तुम से,
वो दिन  याद है, आज भी मुझ को,
तुम्हारी प्यारी-प्यारी बातें,
सुनाई देती हैं, आज भी मुझ को...

साक्षी  है वो वृक्ष आज भी,
छाया मैं जिसकी बैठे थे,
मंद-मंद वो शीतल पवन,
देती है शीतलता,   आज भी मुझ को...

चाहता था मैं साथ चलना,
तुम्हे ये मंजूर नहीं था,
जहां हम अलग हुए,
बुलाता है वो मोड़, आज भी मुझ को...

शायद तुम भूल गयी हो,
वो सावन, वो रिमझिम वर्षा,
 प्रेम के  फूल, जो सूख गये हैं,
देते हैं खुशबू, आज भी मुझ को...

शुक्रवार, जुलाई 18, 2014

सावन...

उदास हुआ दिल आज फिर से,
जब झूम- झूम कर आया सावन,
वोही पुराने ज़ख्म लेकर,
जोर-जोर से बरसा सावन।

हर तरफ जब  हरियाली देखी,
सोचा जीवन भी महकेगा,
केवल मिलन की आस जगाने,
इस बार भी आया सावन।

छम-छम जब वर्षा हुई,
सुलगा  उठी यादें पुरानी,
मंद-मंद जब पवन चली,
हलचल दिल में  मचा गया  सावन।

फूल खिले केवल  ज़ख़्मों के
हिज्र  के गीत पंछी सुनाएं।
बार बार बादल  गरजें,
आया सावन, न भाया सावन।

पपपीहे  तुम उनके पास जाना,
मेरे ये गीत, उनको सुनाना,
न भी सुने, तुम गाते जाना,
बीत न जाए जब तक सावन।

गुरुवार, जुलाई 17, 2014

यादें...



टूट गये खिलौने सब,
नहीं हैं  वो मित्र अब,
बजपन की अब मेरे पास,
यादें हैं केवल शेष,
इनसान चले जाते हैं,
फिर लौटकर नहीं आते हैं,
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

जीवन के इस लंबे सफर में,
मिलते हैं कयी इनसान,
कौन कब तक साथ चलेगा,
हम सभी हैं इस से अन्जान,
वृक्ष के सभी फूल भी,
अलग अलग मुर्झाते हैं...
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

असीम और अनोखा है,
यादों का ये संसार,
बीते हुए दिन हमे,
याद आते हैं बार बार,
जो दिल में जगह बना ले,
वो बहुत ही   याद आते हैं...
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

ये यादें ही दिलों में,
मिलन की आस जगाती  हैं,
बिछड़े हुए इनसानों से,
ख्वाबों में भी मिलवाती हैं,
कुछ यादें तो हंसाती हैं,
कुछ से नैन भर आते हैं...
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

अगर ये यादें न होती,
निरस होता हमारा जीवन,
जाने वाले चले जाते,
लगता केवल सूनापन,
अतीत को याद करके ही,
हम नयी राह बनाते हैं...
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...