मंगलवार, अप्रैल 26, 2016

ये जाति वंश का भेद

मैं करण हूं
मुझे याद है
अपनी भूलों पर
मिले हर श्राप
पर मैं मुक्त हो चुका था
हर श्राप  से।
मैंने तो बस
सब कुछ लुटाया ही था
किसी से कुछ नहीं मांगा,
अपनी मां से भी नहीं।
हे कृष्ण
तुम साक्षी हो....
मैं नहीं जानता
ये वंश  भेद का
श्राप  मुझे किसने दिया
न मैं ये जानता हूं,
ये श्राप  मुझे क्यों मिला
न निवारण ही जानता हूं।
ये श्राप मुझे
मेरे हर जन्म में
मेरी योग्यता पर
प्रश्न चिन्ह लगाता है।
कल सूत पुत्र था
और आज क्षत्रीय....
कल रंगभूमि  में
भी  मेरा वंश पूछा गया था
आज हर साक्षातकार में
मेरी जाति   देखी जाती है।
सब जानते थे
सर्वश्रेष्ट धनुर धारी हूं मैं
आज भी मेरे पास
अनुभव,  नंबर अधिक है  सब से।
मैं कल भी छला गया था
और आज भी।
ये  जाति वंश का भेद
बाधक है प्रगती में
मारता है योग्यता को  
बांटता है राष्ट्र   को....


  


शुक्रवार, अप्रैल 08, 2016

ईस्वी केलेंडर से काम चलाते हैं।


हुआ नव वर्ष का  आगमन,
कह रहा प्रकृति का कण कण 
न जरूरत किसी  केलेंडर की
न हो पास पंचांग  भी,
प्रकृति और आकाश  को देखो,
ये सब  खुद बताते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
दिवाली,  दशहरा,  होली,
 विवाह  शुभ मुहूर्त, यज्ञ,  कथा,
 सभी  महापुरुषों के  जन्म दिवस,
हिंदू  संवत के अनुसार मनाते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
उदय हुआ था प्रथम सूरज जब,
उस दिन को क्यों भूल जाते हैं।
क्यों भारत में  हम नव वर्ष,
पोष  माह में मनाते हैं,
नहीं दिखती कहीं  नवीनता ह
उपवन खेत बताते हैं,
हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
मैकाले की शिक्षा याद रही,
वेद-पूराण हम  भूल गये,
बस इंडिया ही याद रहा,
भारत को हम भूल गये।
आया है हमारा नव वर्ष,
चैत्र नवरात्र बताते हैं।
 हम पूरे अभी आजाद कहां
ईस्वी केलेंडर   से काम चलाते हैं। 
 आप सभी को नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये..

 

बुधवार, अप्रैल 06, 2016

आवशयक्ता है जीवन की।

बीते कल ने
अनुभव दिये,
उन अनुभवों से
आज कर्म किये,
अब कल के लिये
कई ख्वाब सजाए,
मन में हैं
कई आशाएं।
आशाएं हैं
जब तक मन में
तब तक मानव
 सुखी है।
जब निर्ाशा
बस गयी मन में,
समझो   मानव
अब  दुखी है।
खुशी और गम
अवस्था है मन की,
ये दोनों ही
आवशयक्ता है जीवन की।