सोमवार, दिसंबर 31, 2018

इस नव-वर्ष में.....

केवल 2018 की जगह अब,
2019 हुआ  है,
बताओ, क्या कुछ और बदलेगा?
इस नव-वर्ष में.....
जहां सुरक्षित नहीं,  4 वर्ष की बेटी भी
सुनाई देती हैं अभी भी, चीखें निरभया, गुडिया की,
क्या बेटियां भय मुक्त निकल पाएगी बाहर?
इस नव-वर्ष में.....

क्या नव-विवाहिताएं घरों में सुरक्षित रह पाएंगी?
क्या दहेज के लोभियों की भूख मिट जाएगी?
क्या एक मर्ित  बेटी के पिता को न्याय  मिलेगा?
इस नव-वर्ष में.....

जो जन्म लेना चाहती हैं,
पर गर्भ में ही मार दी जाती हैं।
क्या वो बेटियां  सुरक्षित रह पाएगी?
इस नव-वर्ष में.....
जो कुपोषित और  बिमार हैं,
निर्धनता के कारण  लाचार हैं।
क्या मिल पाएगा उन्हे भर पेट खाना?
इस नव-वर्ष में.....

न बाल-विवाह होने देंगे,
न बालकों को बोझ ढोने देंगे,
आओ सब का जीवन महकाएं.
इस नव-वर्ष में.....

रविवार, अगस्त 26, 2018

...उसकी आंखों से देख रहा हूं......

मेरे पास
नहीं थी आंखे,
पर उन दोनों के पास ही
 आंखे थी......
एक की आंखों ने
मेरी बुझी हुई
 आंखे देखी
...छोड़ दिया मझधार में मुझे.....
एक की आंखों ने
बुझी हुई आंखों में भी
अपने लिये प्यार देखा,
.... कहा, मेरी आंखे हैं तुम्हारे लिये.....
मेरी बुझी हुई  आंखों ने भी
इनकी आंखों में
उनकी आंखों की तरह
...कभी लोभ नहीं देखा.....
खुशनसीब हूं मैं
जो संसार को
अपनी आंखों से नहीं
...उसकी आंखों से देख रहा हूं......

शुक्रवार, अगस्त 17, 2018

कोटी-कोटी नमन तुम को.....

हे जन-नायक अटल जी,
तुम्हारी शकसियत अनुपम थी।
तुम   स्तंभ बनकर खड़े रहे,
सत्य-पथ पर अड़े रहे,
भारत को विश्व-शक्ति बनाया,
पाक कोमुंह के बल गिराया।
निज संस्कृति पर  अभिमान था,
धर्म-सभ्यता पर मान था।
तुम तो  जन-जन के प्यारे थे,
मां भारती के आंख के तारे थे।
तुम नेताओं  में शास्त्री से,
कवियों में मैथली शरण थे।
तुम भारत की पहचान हो,
कोटी-कोटी नमन तुम को.....
आजाद शत्रु, सभी मित्र,
बेदाग और आदर्श चरित्र।
न रुके कहीं, न झुके कभी,
राजनीति में जिये, बनकर रवी,
ओ भारत के अनुमोल-रतन,
राम राज्य  आये, तुमने  किये यतन।
नम है नैन,   रतन चला गया,
सुना है, भाजपा का कमल चला गया।
ऐ मौत तु, इतनी मत इतरा,
वो मन से मरे, जी भर के जिया।
तु मारती है केवल, नशवर तन को,
नहीं मार सकती, अटल से जन को।
सुभाष गांधी  की तरह तुम अमर हो,
कोटी-कोटी नमन तुम को.....




शुक्रवार, अगस्त 10, 2018

श्री की जगह शहीद लिखती हूं.......


[मेरी इस कविता में एक शहीद की बेटी के भावों को प्रकट करने का प्रयास किया गया है....}
जब तुम  पापा!
आये थे घर
तिरंगे में लिपटकर
तब मैं बहुत रोई थी....
शायद तब मैं
बहुत छोटी थी,
बताया गया था मुझे,
तुम मर चुके हो....
मुझे याद है पापा!
कहा था जाते हुए तुमने
मैं दिवाली पर आऊंगा,
तुम्हारे लिये बहुत से  उपहार  लेकर.....
तुम्हारी पुचकार से,
मैं हंस पड़ी थी उस दिन
क्या पता था मुझे,
नहीं आओगे लौटकर अब....
जब स्कूल में
बाते करते थे सब
अपने पापा के दुलार की
तब तुम्हारी याद रुलाती थी मुझे....
उमर बढ़ने के साथ साथ
सत्य जाना मैंने,
तुमने मुझे क्या दिया,
अब   उसे पहचाना मैंने....
कौन कहता है,
 तुम  मरे हो,
देखो-देखो तुम  तो
महा-वीरों की कतार में खड़े हो.......
मुझे गर्व होता है,
जब  मैं तुम्हारे   नाम से पहले
श्री की  जगह
शहीद लिखती हूं.......
तुमने तो पापा  
निभा दिया अपना फर्ज
उतार दिया मां का कर्ज,
मां का सर झुकने न दिया.....
अब तो  पापा!
जानते हैं सभी
पहचानते हैं मुझे भी
तुम्हारे नाम से....
ओ पापा!
मेरे पास जीने के लिये,
तुम्हारा नाम ही काफी है,
मत उदास होना कभी मेरे लिये......

सोमवार, अप्रैल 16, 2018

यहां तो हर घटना को राजनीति रंग में रंगा जाता है.....

ये भीख मांग रहे बच्चे,
किस धर्म के हैं?
इनकी जात क्या है?
न हिंदू को इस से मतलब,
न मुस्लमान को.......
कारखानों या ढाबों  पर,
काम कर रहे बच्चों से
नहीं पूछते उनका मजहब।
कोई नहीं पहचानता,
ये उनकी जात, मजहब के  हैं....
जब एक बेटी का
जबरन बाल-विवाह होता है,
साथ देते हैं सब,
जात-मजहब के लोग,
नहीं करता कोई भी विरोध इसका.....
पर रेप या हत्या के बाद
पहचान लेते हैं सब
पिड़ित या निरजीव शव को
ये हमारे मजहब का था,
मारने वाले दूसरे मजहब के......
निरभया का नाम छुपाया गया,
गुड़िया का नाम भी दबाया गया,
देदेते आसिफा को भी कोई और नाम।
वो केवल मासूम बेटी थी,
क्यों बताया गया उसका मजहब क्या था....
काश हर मजहब के लोग,
अपने मजहब को समझ पाते,
न रेप होता, न हत्या।
यहां तो  हर घटना को
राजनीति रंग में रंगा जाता है.....

बुधवार, अप्रैल 11, 2018

हुआ था भ्रम, वसंत आया है,

दो दिन पहले  यानी 9 अप्रैल 2018  शाम 3:15 बजे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के नूरपुर में मलकवाल के निकट चुवाड़ी मार्ग पर भयानक हादसा हुआ बजीर राम सिंह पठानिया मेमोरियल स्कूल की   बस करीब 200 फीट गहरी खाई में जा गिरी। हादसे में
27 बच्चों समेत 30 लोगों की मौत हो गई है जबकि कई बच्चे घायल भी हुए हैं।
इस घटना से मन बहुत आहत है......

तेरी धरा पर, ओ मां भवानी,
हर नेत्र में है, क्यों  आज पानी,
तुझसे मांगे थे फूल जो,
निष प्राण  पड़े हैं, आज धरा पे वो,
टूट गयी एक मां की आस,
खंडित हो गया पिता का विश्वास।
न नजर लगे, तिलक लगाया था,
चूम के माथा, बस में बिठाया था।
भाती-भांती के पकवान बनाए,
प्रतीक्षा में थी मां, बच्चे घर आये।
तभी आई खबर, वो नहीं आएंगे,
रो पड़े खिलौने, हम कहां जाएंगे।
अमिट उदासी छा गयी मन में,
छा गया मातम घर आंगन में।
पल भर में ये क्या हो गया,
जो पास था, सब कुछ खो गया।
हुआ था भ्रम, वसंत आया है,
ये कैसा वसंत, जो रोदन लाया है।

शुक्रवार, फ़रवरी 23, 2018

एक प्रश्न

एक प्रश्न
वो बेटी
ईश्वर से पूछती है,
क्यों भेजा गया
मुझे उस गर्भ में,
जहां मेरी नहीं
बेटे की चाह थी....
एक प्रश्न
वो बेटी
 उस  मां से पूछती है,
"तुम तो मां  हो
क्या तुम भी
आज न बचाओगी मुझे
इन  जालिमों  से?....."
"एक प्रश्न
वो बेटी
उस पिता से पूछती है,
"क्यों बोझ मान लिया मुझे?
मेरे जन्म से पहले ही,
क्या किसी बेटी को देखा है,
बूढ़े माता-पिता को वृद्ध आश्रम में भेजते हुए?...."
एक प्रश्न
वो बेटी
उस चकितसक  से पूछती है,
"तुम्हारा कर्म
जीवन बचाना है,
मुझे भी जीना है,
क्या आने दोगे मुझे दुनिया में?...."
एक प्रश्न
वो बेटी
इस समाज से पूछती है,
"कब तक होता रहेगा भेद-भाव,
बेटा और बेटी में?
अग्नी परीक्षा देकर भी
कब तक सीता को वनवास मिलता रहेगा?...."
इन प्रश्नों के
उत्तर की प्रतीक्षा में थी वो,
तभी सुनाई दिया उसे,
पैसों का लेन-देन,
उस जालिम ने जितने मांगे,
क्रूर पिता ने उतने ही दिये,
फिर तीखे औजारों से मिटा दिया उसे.....
ये प्रश्न
एक बेटी नहीं
हजारों बेटियां पूछती है,
 ईश्वर से,  और समाज से,
माता-पिता  और चकितसक  से>
नहीं मिलता उन्हे उत्तर,
और मार दी जाती है....

शनिवार, जनवरी 13, 2018

न जलता है अब वो आलाव

मेरे बचपन के दिनों में,
जब होता था हिमपात,
जलाकर आती-रात तक  आलाव,
बैठते थे सब एक साथ....
याद आती हैं सबसे अधिक
पूस-माघ की वो लंबी  रातें,
दादा-दाती की कहानियां,
बजुरगों की कही  सच्ची बातें....
अब तो  बर्फ के दिनों में भी,
आलाव नहीं, आग जलती है,
जो कर गये स्थान रिक्त,
उनकी कमी  खलती हैं....
बैठते तो हैं आज भी,
आग जलाकर एक साथ,
सबके हाथ में मोबाइल होता है,
नहीं करते आपस में बात....
न जलता है अब वो आलाव,
न वो मेल-मिलाप रहां,
न पहले सी बर्फ गिरती है,
अब पहले से लोग कहां....