[दिनांक 30 अप्रैल 2017 को मेरे पूजनीय पिता जी श्री ठाकुर ईश्वर सिंह इस भू लोक को त्याग कर चले गये...
जीवन में उनकी कठिन तपस्या से ही आज हम सुखद जीवन जी पा रहे हैं....]
"हे ईश्वर मेरे पूजनीय पिता जी को....अपने पावन चरणों में स्थान देना...."
ओ मेरे पूज्य पिता जी,
कल तक मैं
खुद को दुनिया का
सब से बड़ा आदमी समझता था
क्यों कि मेरे सिर पर
तुम्हारा हाथ था....
हम नहीं जानते
हम कौन हैं,
पर तुम भिष्म थे,
जिन्होंने हमारे घर रूपी हस्तिनापुर को
चारों ओर से सुर्क्षित कर के ही,
ये भू लोक त्यागा...
जब से दुनिया में आएं हैं,
न ईश्वर को देखा कभी
ब्रह्मा थे तुम
हमे जन्म देने वाले,
विष्णु थे तुम ही
हमारा पालन करने वाले....
तुम तो
नील-कंठ शिव थे,
जिन्होंने हमे तो अमृत दिया,
पर हमारे भाग का
सारा विष ही,
आजीवन ही पीते रहे....
मैं जानता हूं
राजा-महाराजाओं की तरह
तुम्हारा इतिहास नहीं लिखा जाएगा,
जिन पर तुमने उपकार किये थे,
वो भी भूल जाएंगे तुम्हे,
पर मेरे मन मंदिर में तो तुम,
कभी नहीं मरोगे....
शब्द रहित श्रद्धा सुमन
जवाब देंहटाएंईश्वर से यही मांगना है
इस दारुण दुःख को सहने के लिए
आपको पत्थर का कलेजा दे
उचित समय में लिखी गई उचित पंक्तियाँ
सादर...
आदरणीय ,इस रचना के माध्यम से बहुत ही मार्मिक श्रद्धांजलि ,नमन है परमपूज्य उस पिता को मेरा सुन्दर !आभार ,"एकलव्य"
जवाब देंहटाएंह्रदय को द्रवित करते शब्दों में
जवाब देंहटाएंआपने पिताश्री को मार्मिक भावों के साथ
श्रद्धांजलि अर्पित की है ।
पितृशोक असीम वेदना का तूफ़ान लाता है।
आपको दुःख सहन करने की परमपिता परमात्मा शक्ति दे। पिता जी को हमारी विनम्र सादर श्रद्धांजलि।
हम आपकी इस अपूरणीय क्षति पर अपनी संवेदना प्रकट करते है। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें।
जवाब देंहटाएंकल्पना की भीत में
जवाब देंहटाएंशब्दों से परे
आज भी बाबुजी दिखते
बेटे को बनाने की ज़िद में
वैसे ही अड़े खड़े।.....
...............
नमन!!!
Shat shat naman ..pitaji ko..
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