नशे की राह पे जो बच्चे चल रहे हैं,
माँ-बाप के अरमान अब टूट कर छल रहे हैं।
आँखों में सपने, अब आँसुओं में डूबे हैं,
सपनों के महल, शीशे की तरह टूटे हैं।
जो कभी खिलते थे हंसी में, अब गुम हैं मुस्कानें,
नशे ने छीन ली उनसे, सारी पहचानें।
माँ-बाप की मेहनत, अब बेकार हो गई,
हर उम्मीद, हर चाहत, अंधेरे में खो गई।
आओ, मिलकर इन्हें बचाएं इस अंधेरे से,
हर बच्चे को दिखाएं सपने, सुनहरे भविष्य के।
नशे की काली रात, अब खत्म हो जाए,
एक नई सुबह, बच्चों के जीवन में आए।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जवाब देंहटाएं