मेरे भारत में सब के लिये रोटी हैं?
न जाने इन बच्चों को भोजन क्यों नहीं मिलता।
आंगनबाड़ी स्कूल में,
दोपहर का भोजन मिलता है,
डिपुओं में निशुल्क भाव में,
ससता राषण दिया जाता है,
हर गाड़ी के आते ही,
क्यों ये हाथ फैलाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....
ये किस पिता के लाल हैं,
ये किस मां की संतान हैं,
जो हर रोज यहां आते हैं,
केवल झूठन ही खाते हैं।
माता-पिता का करतव्य था,
क्या केवल इन्हे जन्म देना?
पशु-पक्षी भी निज बच्चों के लिये,
भोजन खुद लाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....
आओ हम बाल-दिवस मनाएं,
इन बच्चों को इनके अधिकार दिलाएं,
जिन माता-पिता ने इन्हे जन्म दिया,
रोटी देना भी उन्ही की जिमेवारी है,
जो पिता नशे में मस्त हैं,
वो दंड के अधिकारी हैं।
कुछ पिता नशे के लिये,
सब कुछ ही खा जाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....
न जाने इन बच्चों को भोजन क्यों नहीं मिलता।
आंगनबाड़ी स्कूल में,
दोपहर का भोजन मिलता है,
डिपुओं में निशुल्क भाव में,
ससता राषण दिया जाता है,
हर गाड़ी के आते ही,
क्यों ये हाथ फैलाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....
ये किस पिता के लाल हैं,
ये किस मां की संतान हैं,
जो हर रोज यहां आते हैं,
केवल झूठन ही खाते हैं।
माता-पिता का करतव्य था,
क्या केवल इन्हे जन्म देना?
पशु-पक्षी भी निज बच्चों के लिये,
भोजन खुद लाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....
आओ हम बाल-दिवस मनाएं,
इन बच्चों को इनके अधिकार दिलाएं,
जिन माता-पिता ने इन्हे जन्म दिया,
रोटी देना भी उन्ही की जिमेवारी है,
जो पिता नशे में मस्त हैं,
वो दंड के अधिकारी हैं।
कुछ पिता नशे के लिये,
सब कुछ ही खा जाते हैं,
ये गाड़ी से फैंके झूठन से,
अपनी भूख मिटाते हैं....
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