स्वागत व अभिनंदन।

गुरुवार, दिसंबर 31, 2015

नव वर्ष का अभिनन्दन है...

कहता है कलैंडर
आगे बढ़ो
रुको नहीं,
पर भागो नहीं,
अपनी गति में चलो।
बदलता है
सब कुछ ही।
हर पुराने के बाद
एक नये का उदय
क्रम चलता है यही...

कहता है पुराना वर्ष
पहुंच चुके हो जहां,
उससे आगे चलना,
रुकना नहीं
न भय लाना मन में।
जो भूल हुई,
 न दौहराना उसे,
जो न पा सके,
अब पाना उसे
इस नव वर्ष में...
लाया है नव वर्ष,
सब के लिये
नया उत्साह
 नयी उमंगे
नये सपने।
जब उदय होगा
नव वर्ष का सूरज,
जल उठेंगे
नव आशाओं के दीप
नव वर्ष का अभिनन्दन है...

शनिवार, दिसंबर 26, 2015

ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...

हर राज सब को बताए नहीं जाते,
हर जख्म भी दिखाए नहीं जाते,
यकीं करो या न करो,
ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...
हर जिंदगी यूं तो
एक फूल की तरह होती है
खिलते हैं फूल प्रेम से
नफरत से हैं मुर्झाते...
कौन कहता है
आदमी एक बार मरता है,
दुनिया के ठुकराए हुए,
बस दफनाए नहीं जाते...
कहने वाले समझते हैं
 वो अब  हमारा  घर है,
मासूम हैं वो कहने वाले
जो मकान को घर हैं बताते...

बुधवार, दिसंबर 23, 2015

मानव...

ईश्वर ने
हर प्राणी के लिये
बनाई है एक धरा
जहां सब स्वतंत्र विचरे।
इन सब में, 
सबसे श्रेष्ट   मानव है
जिसे बनाया है
इस धरा के लिये...
मानव तन में
वास है
अनश्वर  आत्मा का
नष्ट नहीं होती जो।
मानव कर सकता है कर्म
बुद्धि और   विवेक से
पा सकता है मोक्ष
इस लिये सबसे श्रेष्ट    है वो...
पांच तत्वों से
 हर मानव बना है
   अविभाज्य है
समान हैं सब।
वैदिक धर्म  है सब का एक
जीवन है सबका करम-क्षेत्र 
मानव जिये मानवता के लिये
मरे भी तो  मानवता  के लिये...

आज कर्म ही
धर्म है  उसका
वो कर्म करे
मानव  हित  के लिये
रक्षा करे हर जीव की
पर्यावरण का  संरक्षण करे।
न होने दे शोषण,
किसी भी मानव का...

रावण को मारा मानव के लिये
कंस संहारा मानव के लिये
दधिची  ने अपनी हड्डियों  का दान
दिया  था मानव के लिये।
नानक आये मानव के लिये
 दिया ज्ञान बुद्ध  ने मानव के लिये।
गोविंद ने अपने चार लाल
कुर्वान किये मानव के लिये।

सोमवार, दिसंबर 21, 2015

भूख...

कभी सोचा है
शेर मांस ही  क्यों खाता है?
उसे चाहे कुछ भी मिले
पर उसकी भूख मांस से ही मिटती है।
 एक चिड़िया
केवल अन्न ही खाती है
अन्न न  भी मिले
वह किसी जीव को नहीं खाती।
जानते हो क्यों?
इन दोनों की भूख में फर्क है....
एक रहीस का बच्चा
थाली से पूरा भोजन कभी नहीं खाता,
रेलवे स्टेशन पर हाथ फैलाता हुआ बच्चा
फैंके  गए  छिलके को भी  मुंह में डाल देता है
मैं सोचता हूं
इन दोनों की भूख में फर्क है
पर खतरनाक
रहीस के बच्चे की भूख है...

कोई बिना रोटी से भूखा  हैं
 किसी को दवाइयों से  भी भूख नहीं लगती
हैं तो दोनों भूखे हैं
इन दोनों की भूख में भी फर्क    है.
एक की आवश्यक्ता रोटी है
और दूसरे की भूख ही आवश्यक्ता है...
पर मैं उस भूख की बात कर रहा हूं
जिससे एक विद्वान पंडित,  रावण बन जाता है,
क्षण भर में ही उसका सारा  ज्ञान नष्ट हो जाता है।

मैं उस भूख की बात कर रहा हूं,
जो औरंगजेब को लगी थी,
जिसने अपने जनक को ही कारावास में डाल दिया था।
मैं उस भूख की बात कर रहा हूं,
जो कीचक को पांचाली  को देखकर लगी थी।
जिससे डर कर आज हर लड़की भयभीत है....

अखंड भारत देश  चाहिये।

जो वतन को बांट रहे हैंं,
लोकतंत्र की जड़े काट रहे हैं,
 कह दो उनसे
दिन नहीं अब उनके,
अब दल तंत्र नहीं
 जनतंत्र ही होगा,
राज्य राम का
न खंडित होगा
न होता जयचंद
हम गुलाम न होते,
कई सदियों तक
 गुम नाम न होते।
हमे एक दल नहीं
स्वदेश चाहिये,
केवल देश नहीं
अखंड भारत देश  चाहिये।

शनिवार, दिसंबर 19, 2015

 मेरे बचपन के वो सुनहरे  पल...

हर बार
जब आती है सर्दी
गिरती है बरफ
होती है रात
मुझे याद आता है
वो एक एक पल
कडाके की ठंड में 
जब हम सब
 आग के सामने बैठकर
बुजुर्ग   और बच्चे
सुनते और
सुनाते थे कहानियां...
अब बरफ तो गिरती है
पर उतनी नहीं
अब देर रात तक जागते तो हैं
पर अपने अपने कमरों में
बुजुर्ग   पड़े रहते हैं
एक कौने में किसी सामान की तरह।
बच्चों को फुरसत नहीं
टीवी,  Internet   से।
अब आग भी नहीं जलती
हीटर से काम चलता है।
अब नहीं आयेंगे लौटकर
 मेरे बचपन के वो सुनहरे  पल...

गुरुवार, दिसंबर 17, 2015

बलिदान नवम गुरु का...[गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस पर]

जब जब धर्म की
होती है हानी
आते हैं ईश्वर
जन्म मानव का लेकर
करते हैं अधर्म का नाश...
धर्म की पुनः स्थापना के लिये
नवम गुरु  थे धरा पर
 औरंगजेब का दुसाहस देखो
 जो चाहता था मिटाना
सनातन धर्म को ही...
 "करवा रहा है औरंगजेब
जबरन हमारा   धर्म परिवर्तन
हम अपवित्र हो जाएंगे
नहीं कोई अब  हमारा रक्षक
गुरु जी  आप ही  रक्षा करो"...
"ये कहो उससे
हम पथ पे चलेंगे केवल गुरु  के"
एक स्वर में कहा सबने
कर लेंगे  हम इस्लाम कबूल
अगर हमारे गुरु जी   करेंगे"...
औरंगजेब  ने गुरु जी  से कहा
"इस्लाम कबूल करो,
अगर ईश्वर  हो
 कोई करामात  दिखाओ,
वर्ना काट दूंगा शीश  तुम्हारा"...
श्रेष्ठ   धर्म है
क्यों परिवर्तन करूं
तुम इस योग्य नहीं
तुम्हें चमत्कार   दिखाऊं
 जो इच्छा हो तुम वोही करो"...
शीश गंज'  साक्षी है
गुरु जी की    शहादत का
उनके अनुपम  बलिदान ने
देश धर्म का महत्व बताया
  आजादी के लिये असंख्य  बलिदान  हुए...

शनिवार, दिसंबर 12, 2015

माता सुनी कुमाता  

पूत कपूत सुने है
 पर न माता सुनी कुमाता
 अगर ये कहावत
पशु-पक्षियों  के लिये कही गयी होती
तो सत्य मान लेता...
क्योंकि मैंने
एक जानवर को
उसके अपने  बच्चे से
बिछड़ने पर
रोते देखा है...
न देखा है कभी
किसी पक्षी को
त्यागते हुए
अपने बच्चों को
संवेदनशील है वो मानवों से अधिक...
ये बात वेद-पुर्ाणों में
कही गयी है
हो सकता है
किसी युग में
माता केवल सुमाता ही होती हो...
पर आज  ये  बालक
जिन्हे त्याग दिया
बेवजह ही इनकी माताओं ने
 करण की तरह जानते हैं
 अपनी माताओं का सत्य...
ये भले ही
प्रसन्न दिखते हों
पर जीवन का  सबसे बड़ा अभाव
इन के उदास नेत्रों में
कभीकभार झलकता तो   है ही है...
इन की माताएं
किसी उच्च कुल की महारानी बन
अपने अतीत का सत्य छुपाए
एक और महाभारत के बहाने
इनके शवों पर रोने के लिये तैयार बैठी हैं...


शुक्रवार, दिसंबर 11, 2015

जैसी संगत वैसी ही रंगत

कुंति गांधारी और द्रौण
ये सभी जीवन भर
करते हैं प्रयास
अपने बालकों के
उच्च चरित्र निर्माण करने का...
 एक अध्यापक  से
पढ़े हुए
या कभी कभी तो
एक  मां के दो पुत्र ही
एक राम एक रावण बन जाता  है...
 पांडव धर्म के पथ पे चले
क्योंकि उन्हे श्रीकृष्ण मिले
कौरवों को साथ मिला
कपटी शकुनी का
वो अधर्मी बनाए गये...
मां केकेयी धर्मआत्मा थी
सब से प्रीय थे उसे राम
मंथरा  की प्रेर्णा  से
एक असंभव कार्य को   भी
पल भर में संभव किया...
मैं सोचता हूं कि
वास्तविक चरित्र निर्माण
 संगत से होता है
जैसी संगत होती है
वैसी ही रंगत दिखती  है...
कोई आसमान छूता है
या तबाह होता है
 ये उस पर निर्भर नहीं करता
ये उसके मित्र, साथी  या 
  प्रेरक  पर निर्भर करता  है...

गुरुवार, दिसंबर 10, 2015

जीवन का है लक्ष्य यहीं।

मैं चल रहा हूं
कहीं रुका नहीं
आयी बाधाएं
मैं झुका नहीं।
जब कहा कदमों ने
ठहरों यहीं
कहा मन ने
ये  मंजिल नहीं।
निश्चय मेरा अटल है,
चाल मेरी धीमे  सही
पहुंचना है मंजिल तक
जीवन का है  लक्ष्य यहीं।

 

बुधवार, दिसंबर 09, 2015

हमे कुछ नहीं चाहिये मुफ्त का कुछ भी

एक नेता
सरकारी स्कूल के
छोटे-छोटे बच्चों को भी
सरकारी योजनाएं
गिनवा रहा था...
दोपहर का भोजन
मिलता है मुफ्त
नहीं लगता
स्कूल आने में किराया
न सिलवानी पड़ती है
वर्दी भी अब...
एक बच्चा
उसी वक्त
मंच के सामने आया
जिसकी फटी   हुई  वर्दी
नेता जी के भाषण पर
मानो व्यंग कर रही हो...
वह कांपते हुए बोला
हमे कुछ नहीं चाहिये
मुफ्त का कुछ भी
बस आप
मेरे पापा की
 शराब छुड़वा दो...

शुक्रवार, नवंबर 27, 2015

ये राजनितिक कटरपंथी हैं

अब नहीं होते
 चौराहों पर पंगे
न धर्म के नाम पे
हिन्दू  मुस्लिम के दंगे।
न सुनाई देता है
मंदिर मस्जिद  का शोर
अमन है
अब चारों ओर।
थम  जाएगा
भ्रष्टाचार भी
चल रही है लाठी
कड़े कानून की।
पर खतरा है अभी
लोकतंत्र पे,
कटरपंथियों   की
विचार धारा से।
चो कह रहे हैं
असहिष्णुता  है
नयी सरकार से
खतरा है।
ये साहित्यकार  या
अभिनेता नहीं है
ये राजनितिक
कटरपंथी  हैं
  जब देश में
दल परिवर्तन हुआ।
तभी इनका
उदय हुआ।
 कल कहां थे
जब दंगे हुए
आपातकाल में
पंगे हुए।
ये हितेशी नहीं 
भारत देश  के
ये बोलते हैं
बस पैसों से।
जन मत का
संमान करो
न लोकतंत्र का
अपमान करो।
देश को देखो
किसी दल को नहीं
यहां जनतंत्र है
राज एक दल का नहीं।

गुरुवार, नवंबर 26, 2015

अब जंता जाग रही है।

देख लिया है
अजमाकर उन को
जो राजा है
बहलाकर हम को।
हम भूल गये थे
अब तक खुद को
समझे थे आजादी
केवल शोषण को।
होते रहे खुश
हार पहनाकर
नेताओं की सभाओं में
तालियां बजाकर।
कुछ भी न बदला
सब कुछ वहीं है
अब जंता
जाग रही है।

नहीं सोचा कभी
हमे क्या दिया
अपनी जेवों  से भी
उनको ही दिया।
बदनाम हुए खुद
नयी पार्टी बनाई,
दागी छवी
नये चेहरों मे छुपाई।
भाषण-भरोसों पर
 विश्वास नहीं अब,
 फ्रेब चेहरे
और नहीं अब।
लोकतंत्र का
भविष्य यही है
अब जंता
जाग रही है।

हमे शासन नहीं
सुशासन चाहिये,
संसद में भी
अनुशासन चाहिये।
हमे वोट का
अधिकार मिला है
आजादी का
 उपहार मिला है।
आओ हम सब
कसम खाएं,
अपने वोटों को
पानी में न बहाएं।
गांव-गलियों में
आवाज यही है
अब जंता
जाग रही है।



मंगलवार, नवंबर 24, 2015

जय बोलो Guru Nanak की...

जब कलियुग में भी
होने लगा
 सनातन  धर्म का
अस्त सूरज...
विदेशी लुटेरे
बनकर राजा
बनाना चाहते थे
राम राज्य को लंका...
वेदों की ज्शिक्षाएं
भूल गये थे सब
पाखंडों का
अंधकार था...
पंडित ज्ञानी
जब न समझा सके
अर्जुनों को
वो गीता ज्ञान...
धर्म को बचाने
 ईश्वर आये फीर
बनकर Guru Nanak
इस धरा पर...
  दस रूपों में
आये नानक
वेदों का ज्ञान
Guru  ग्रंथ में समझाया...
नानक के रूप में
प्रेम से समझाया
गोविंद के रूप में
शस्त्र उठाए...
प्रेम की भाषा
जब न समझी
शस्त्रों से
अस्तित्व मिटाया...
की  धर्म की
पुनः स्थापना
जय बोलो
Guru Nanak की...




गुरुवार, नवंबर 19, 2015

जिंदगी की किताब...

हर जिंदगी
भी शायद
किसी लेखक की
लिखी हुई
किताब होती है...
पर हम
नहीं जान पाते
अपनी किताब के
लेखक को
न पढ़ पाते अगले पन्ने...
कहते हैं
रामायण भी
श्री राम जन्म से
कयी हजार वर्ष पूर्व
लिखी गयी थी...
वो ईश्वर थे
इस लिये शायद
हम जान पाये
उनकी जिंदगी की
किताब के लेखक को...

मंगलवार, नवंबर 10, 2015

मनाते हैं हम दिवाली...


[आप सब को पावन पर्व दिवाली की शुभकामनाएं...]
 पे राम
तुम दूर रहे
14 वर्षों तक
अंधकार सा लगा
 सब को तुम बिन
पर अंधकार नहीं था
न अन्याय था
राजा थे भरत...
वनवास काटकर
जब आये तुम
माएं हर्षित  हुई
जंता झूम उठी
पंछियों ने भी
जी भर के खाया
सब ने मिलकर
मनाई दिवाली...
पर आज
न तुम हो
न भरत
न तुम्हारी चरणपादुका।
है केवल
अन्याय,  भ्रष्टाचार
भय, हिंसा,
अनैतिकता और  आतंकवाद... 
हमे  विश्वास है
तुम्हारे वचन पर
होती है  जब-जब
धर्म की हानी
आते हो तुम
मानव बनकर
इस विश्वास से ही
मनाते हैं हम दिवाली...

शनिवार, नवंबर 07, 2015

हर जंग कलम ने ही जीती है...

ओ लिखने वालो
तुम्हारे पास
वो शब्द हैं
जो बदल सकते हैं
पवन की दिशा
जिन के बल पर
तुम
क्रांती ला सकते हो...
तुम्हारे पास
कलम की ताकत है
वो कलम
जिसका लिखा
रामायण का
एक एक शब्द
भविष्य में
सत्य हुआ...
आद तुम ही
और शस्त्र
हाथ में लिये
कलम के बिना भी
बदलना चाहते हो
आज के हालातों को
कैसे लिखने वाले हो
जो कलम को ही  भूल गये...
साक्षी है समय
कलम के  सिपाहियों ने
विश्व में आज तक
असंख्य क्रांतियां लाई है
कौन कहता है
शस्त्रों से जीती जाती है जंग
जानो, पढ़ो इतिहास
हर जंग कलम ने ही जीती है...

गुरुवार, नवंबर 05, 2015

मेरा महत्व कितना है..

बोला पुष्प
हंस कर
निज वृक्ष से
तुम्हारा महत्व
मेरे बिना
कुछ भी नहीं है...
जब खिलता हूं मैं
तभी आते हैं सब
वर्ना तुम्हारे पास
मानव तो क्या
पंछी भी नहीं आते
निहारते हैं सब मुझे ही...
कहा वृक्ष ने
सुनो प्रीय
तुम खिलते रहो
सदा ऐसे ही
होता बस में
तुम्हे अमर बनाता...
मैं तो बस
जीवन देता हूं
सब को ही
जैसे दिया तुम्हे भी
न सोचा कभी भी
मेरा महत्व कितना है..

गुरुवार, अक्टूबर 29, 2015

जिंदगी की किताब...

मैं
वर्षों से
जिंदगी पर
एक किताब लिख रहा था...
हर दिन
सोचता था
आज ये किताब
पूरी हो जाएगी...
पर तभी
अतीत की
कोई न कोई घटना
याद आ जाती थी.....
एक के बाद एक
नया पन्ना
मेरी किताब में
शामिल हो रहा था...
पर कल
देखा मैंने
पुराने लिखे पनेने
दिमकों ने नष्ट कर दिये हैं...
मैंने
नष्ट हुए
सारे पन्ने
निकाल कर फैंक दिये...
अब मेरी
ये किताब
बचे हुए
पन्नों के साथ ही पूरी होगी...

गुरुवार, अक्टूबर 22, 2015

पावन चरित्र सीता का...

श्री राम
सामान्य पुरूष नहीं
मर्यादा पुरुषोत्तम
आदर्श राजा थे...
ईश्वर थे
भले ही राम
पर सीता   के बिना
 पूर्ण  नहीं थे...
सुख में भी
वो  साथ   रही
दुख  में भी
साथ दिया...
महलों में रही
या वनों में
पालन किया
पतिव्रत धर्म  का...
अगर न होती
अग्नि परीक्षा
 शंका के बादल
बार-बार घिर आते...
आदर्श राजा
कहलाते कैसे
रघु-कुल की रीत
बचाते कैसे...
अग्नि परीक्षा
ने दिखाया  जग को
पावन चरित्र
 सीता का...  
न छुह सका रावण
न जला सकी अग्नि
देकर अग्नी  परीक्षा
सर्वश्रेष्ठ,   बनी...
श्री राम ने
नारी का
सदा ही
 संमान किया......
राम को जानो
 सीता  को पहचानो
राजा के धर्म को 
अन्याय न कहो...


मंगलवार, अक्टूबर 20, 2015

राम नहीं मिलते...

आज हम
अपने बच्चों को
उच्च शिक्षा देकर
बड़ा  आदमी बनाने का
ख्वाब देखते हैं
ख्वाब पूरा भी हो जाता है...
पर हम भूल जाते हैं
उच्च शिक्षा के साथ
बच्चों के सामने
चरित्र निर्माण के लिये
राम का चरित्र होना चाहिये... 
इसी लिये आज
रावण की तरह
बड़े तो बहुत हैं
भरत, Laxman,
राम नहीं मिलते...

शुक्रवार, अक्टूबर 16, 2015

विश्वास....

जब तक
विश्वास था
 मुझे तुम पर
अटूट प्रेम था
मुझे तुम से...
जिंदगी
 और रंग-मंच
एक नहीं
 अलग हैं
जिंदगी हकीकत है....
विश्वास तोड़ने
से पहले ही
तुम कह देती
मैं मिट जाता
प्रेम  तो न मरता....
विश्वास
मात्र  शब्द नहीं
हृदय में
प्रेम का दीप
जलाने वाला तेल है....
जब तक तेल है
दीपक में
जलता है दीपक
 तब तक ही
वर्ना दीपक  दिखावा है...

गुरुवार, अक्टूबर 15, 2015

पुष्प और कवि....

मैं पुष्प हूं
भावनाओं से युक्त
मुझे माली नहीं
कवि प्रीय है...
कवि  मुझे
कभी नहीं तोड़ता
न वो केवल
सौंदर्य ही देखता है...
वो  अक्सर
आता है
पूछता है मुझसे
मेरे मन की बात...
दिखावा तो
करते हैं सब
प्रेम हम से भी
करता है कवि ही...
मुझे माली ने
लगाया भी
और पाला भी
पर स्वार्थ के लिये...
कौन कहता है
मैं नशवर हूं
मेरा मिटना तो
परोपकार का संदेश है...

सोमवार, अक्टूबर 05, 2015

हमेशा के लिये ही...

ऐ आंसू
मैं रिणी हो गया
आज से तुम्हारा
शायद ये रिण
न चुका पाऊंगा
आजीवन ही...
मन  से निकलकर
 तुम आँखों में उतरे
 मैंने देखा तुमको
गिरते हुए भी
क्षण भर में ही
तुम गये कहां
दे कर  शीतलता
मेरे मन को...

तुमने मेरा साथ
दिया तब
जब मैं अकेला ही
अपने मन का दर्द
मन में दबाए
भटक रहा था
उस परवाने की तरह
शमा ने जिसे
जलाना  तो चाहा
पर उसके प्राण नहीं निकल सके...

तुम सा
परोपकारी भी
कौन होगा जग में
ले गया बहाकर
मेरे मन  के दर्द को
और खुद मिट गया
हमेशा के लिये ही...

मंगलवार, सितंबर 29, 2015

कल के लिये....

बालक बनकर
जब दुनिया में आया था
स्वागत किया था सबने
बिना कुछ किये ही
मिला था सब कुछ
उमीदें थी सब को
भविष्य का
अंकुर समझकर
हर इच्छा
पूरी हुई थी  तब.....
 जवानी में
अथक काम करके
महल बनाए
खूब पैसा कमाया
न तपती धूप
से डगमगाया
न शरद  रातों
 को ही  सोया
काम किया बस
कल के लिये...
देखते ही देखते
आ गया गल भी
यानी तीसरा दिन
जीवन का
ये तीसरा दिन
कल  के काम का नहीं है
इस लिये अर्जुन
बिछा  रहा है
बाणों की एक और शया 
सोना पड़ेगा मृत्यु  तक
अब केवल उस पर ही...

गुरुवार, सितंबर 24, 2015

जो नहीं दे रही मुझे मेरा आहार...

मैं सोचता था
भ्रष्टाचार केवल
नेता, अधिकारी,
बड़े व्यपारी
या सरकारी तंत्र के
लोग  ही करते हैं
इन्हे करते देखा भी है...
जब मैंने देखा
1 माह का बच्चा
दूध की बौटल को
मुंह से दूर करते हुए
 जैसे मानो कह रहा हो
भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार
रोते हुए अपनी मां  को
तुम भी भ्रष्टाचारी हो
जो नहीं दे रही मुझे मेरा आहार...

मंगलवार, सितंबर 22, 2015

हम दूर हो गये...

सोचा था
कुठ गीत लिखुंगा
आयेगा जब
समय सुहाना...
दिन बीते
बीत गये वर्ष
पर आज तक
न वो गीत लिखे...
चला एक दिन
चमन की ओर
पर चमन तब तक
उजड़ चुका था...
नींद में ही सही
हसीन ख्वाब  देखूं
पर रातों  को
कभी  नींद न आयी...
तुम्हारा हमारा
मिलन था तन का
मन मिले बिना ही
हम दूर हो गये...

सोमवार, सितंबर 21, 2015

यही है सैनिक धर्म मेरा...

मैं और तुम
नहीं  जानते
एक दूसरे को
न मिले कभी
न हम दोनों का
बैर है कोई...

अगर मिलते
दिल्ली या लाहौर में
पूछता तुम से परिचय
परिचय देता अपना भी
संकट में होते
मदद भी  करता...

हो भले ही
तुम भी मुझसे
आज जंग है
दो देशों में
यहां तो  हम  केवल
  शत्रु हैं...

पर आज
हम दोनों का मिलन
रण-क्षेत्र में
हुआ है
हम दोनों को ही आज
सैनिक धर्म निभाना है...

हम दोनों में
जो मारा गया
वो शहीद कहलाएगा
जो  जिवित बचेगा
वो संमान पाएगा
अपने देश में...


न मैं तुमसे
मांग रहा हूं
भिक्षा अपने जीवन की
न जिवित तुम्हे
जाने दूंगा आज
यही है सैनिक धर्म मेरा...

शनिवार, सितंबर 05, 2015

देश पर संकट है...

देख भारत की
दुर्दशा आज
उमीद है
परिवर्तन होगा
विश्वास है सब को
तुम आओगे...

जब जब भी
आया संकट
हम डरे नहीं
बुलाया तुमको
एक बार नहीं
 हर बार आये हो...

तुम्हारा दिया
गीता का ज्ञान
अब नहीं आता
समझ में किसी के
पुनः दो
हमे  वोही ज्ञान...

आज सनातन
धर्म फिर
बुला रहा है
श्याम तुम को
सनातन का  खतरा ही
देश पर संकट है...

गुरुवार, सितंबर 03, 2015

केकयी सा ही अनादर होता है...

मां केकयी को
आज सभी
मानते हैं दुर्ात्मा,
 दोनों माओं की तरह ही
 वो भी  एक
 महान नारी थी...
नहीं जानना चाहा किसीने
भरत से अधिक
प्रीय थे जेसे   राम
फिर पल भर में ही
क्यों मांग लिया
 श्री राम को वनवास...

उन्हे तो केवल
देवताओं ने
भ्रमित करके
मांगने भेजे दो वचन,
 ताकि राम वनों में जाए
वध करे रावण का...


भरत की जननी
श्रीराम की मां
दशरत की रानी
उच्च कुल की बेटी
कुल वधु अवध   की
दुर्ात्मा कैसे...


किसी का किया
एक तुच्छ कर्म
उसके जीवन के
सारे उच्च कर्मों  को
नष्ट नहीं कर सकता
ये हमारी भूल है...

कभी कभी पराई मां भी
एक पुत्र को
उसकी जननी से भी
अधिक प्रेम करती है
पर उसका  सदा ही
केकयी सा ही अनादर होता है...

शनिवार, अगस्त 29, 2015

...बहनें अब जाग रही हैं...

सदियों से
अटूट समझा जाता  था
भाई-भहन का
 पावन रिशता
शायद इस लिये
क्योंकि विवाह के बाद
बहन का सब कुछ
भाई का ही
हो जाता था...

जब से
बहन भी
मांगने लगी
अधिकार अपना
अपने घर से
तब से
राखी का महत्व भी
घटने लगा
ये बंधन भी
अटूट नहीं रहा
...बहनें अब जाग रही हैं...

ये पहाड़
जो खड़े हैं
आज गर्व से
 छाती ताने
इन से पूछो
इन्हे ये
मजबूति किसने दी है
सब देखते हैं इनको
उन्हें कोई नहीं देखता
वो तो कहीं
दबे पड़े हैं...

सोमवार, अगस्त 24, 2015

पर किसी की काल  का इंतजार नहीं है...

अब जब भी चाहो
कहीं   भी
कर लेते हैं
बातें जी भरके
मुबाइल पर
एक दूसरे के साथ...
पर बार बार
बातें करने में भी
नहीं  मिलता वो आनंद
जो मिलता था
बार बार एक ही
चिठ्ठी  पड़ने में...
मिट गये हैं
दूरियों  के फांसले
मगर दिलों की दूरियां
बढ़ती जा रही है
आज सब के पास ही मोबाइल है
पर किसी की काल  का इंतजार नहीं है...

शनिवार, अगस्त 22, 2015

प्रीय तिमिर

मैं और तुम
साथ हैं
तब से
जब से मैं
आया हूं यहां...
क्या कहा था
ईश्वर ने तुमसे
जब तुम्हे मेरे पास
भेजा था
मेरे जन्म के साथ ही...

मुझे तो
याद नहीं
अपने पूर्व जन्म
 की कोई  कहानी
न इस जन्म की
कोई घटना...

मुझे क्यों
मिले तुम ही
मैं ईश्वर को
दोष नहीं दे रहा हूं
    बस पूछ रहा हूं...

मैं तुम्हारे साथ
खुश हूं हमेशा
जैसे निशा
 प्रसन्न है
तुम्हारे साथ...

प्रीय तिमिर
तुमने मुझे
जकड़  रखा है इसकदर
न दीपक के
प्रकाश की आवश्यक्ता
न रात होने का भय...
    

मंगलवार, अगस्त 18, 2015

रोती है बस वो...

उस औरत को
न्याय मिल सकता है
वो पढ़ी लिखी   है
 जानती है
हर उस कानून के बारे में
जो बने हैं
उसके संरक्षण के लिये...

फिर भी वो
सह रही है
मार-पीट
और हिंसा
एक शराबी की
जो शराब भी
उसकी कमाई से
पीता है...

उसे याद है
विदाई के समय
नम आंखों से
कहा था मां  ने
जा बेटा अब
खुश रहना
उस बड़े कुल  में...

मायका भी
अब  हो गया पराया
जाएं कहां
बच्चे भी हैं,
 अकेले मे
जी भर के
रोती है बस वो...

बुधवार, अगस्त 12, 2015

ये अमर गाथा आजादी की।

जब लहराता है
 लाल किले पर
अखंड देश का
 प्यारा  तिरंगा
झुक जाता है
मस्तक मेरा
करने को नमन
इन शहीदों को।

हमारी तरह ही
अगर ये भी
सुख वैभव से
जीवन जीते।
हम आज भी
जकड़े होते
विदेशियों की
प्राधीन बेड़ियों में।

कहा माओं से
बुला रही है मां
तेरे दूध की
परीक्षा है।
आने वाले
कल की खातिर
मांग रही हैं तुमसे
तुम्हारा आज।

हम माएं है इनकी
केवल इस जन्म में
तुम मां हो
युगों-युगों से
सौ पुत्र भी
होते एक के
सहर्ष भेजते
चरणों में तुम्हारे।

जाओ बेटा
न देर करो
जाग उठा है
नसीब तुम्हारा।
ये जन्म भूमि ही
कर्म भूमि है
आज से
केवल तुम्हारी।



सूरज चांद
सितारों ने देखी
अनुपम  कुर्वानी
शहीदों की।
स्वर्णिम अक्षरों में
इतिहास ने लिखी
ये अमर गाथा
आजादी की।

मंगलवार, अगस्त 11, 2015

विजय तुम्हारी।

क्यों होते हो
बार बार उदास
सब कुछ है
आज तुम्हारे पास।
कुछ खोना
हार नहीं है
जो खोया है
उसे पाना सीखो
पहले सोचो
क्यों हारे हो
फिर विचार करो
कैसे जीतोगे।
देती है जिंदगी
बार बार अवसर
भर देगा वक्त
सारे घाव।
असफलता  को
अनुभव समझो
हार को न
अब याद करो।
अटल मन से
विजय के पथ पर
बिना रुके ही
चलते रहो।
उदय होगा जब
कल का सूरज
साथ लायेगा
विजय तुम्हारी।

शनिवार, अगस्त 08, 2015

उदास खामोशी

एक दिन हम भी
साथ चले थे
एक पथ पर
एक बहाव में
एक थे कल
आज दो हैं
इन दोनों
 नदियों  की तरह।
ये नदियां  भी
 कल एक थी
पर कुछ लोगों ने
अपने स्वार्थ के लिये
मोड़ दिया
इन  के जल को
हो गया विछेद
बन गयी दो नदियां।

एक नदि तो
तुम्हारी तरह
बहने लगी
आनंद के बहाव में
एक नदि को
बहना पड़ा
केवल मजबूरी से।


उस नदि की
कल कल करती
 आवाज में भी
ऐहसास होता है
बिछोड़े की
उदास    खामोशी का।

शनिवार, अगस्त 01, 2015

मौत...

जन्म के साथ ही
मृत्यु भी
चलती है साथ
छाया की तरह।

मौत तो
हर क्षण ही
शत्रु की तरह
खोजती है अवसर

होता है जो
बुझदिल और कायर
उसे शिघ्र
बना लेती है अपना।

 वीरों से तो
भय लगता है
उसको भी
दूर दूर ही रहती है।

आती है
कयी  रूप रंग बदलकर
पर वीर तो
उसे पहचान लेते हैं।

हर साहसी को
वर्दान  होता है
इच्झा  मृत्यु का
भिष्म की तरह...


शुक्रवार, जुलाई 31, 2015

मेरी भारतीय रुह


मेरी भारतीय रुह भी
आहत होती है
ऊधम सिंह  की
रुह की तरह
जब देखती  हैं मानव संहार
कहीं भी

 भारत से दूर
मदन लाल ढींगरा
या ऊधम सिंह  की
फांसी की खबर सुनकर
वो  भी   बहुत रोई थी
अपने वतन में
अपनों के साथ।

भगत सिंह, सुखदेव
और  राजगुरु
की फांसी से
भारत मां के साथ
मेरी रुह भी
 आहत  है आज तक


आज तक मेरी रुह
फांसी को केवल
निर्मम हत्या मानती थी
क्योंकि ये सब निर्दोष थे
फांसी केवल
निर्दोषों को मिला करती थी।

पर आज जब
अफजल, कसाब
या मेमन  को
फांसी दी गयी
मेरी आत्मा आहत नहीं हुई
क्योंकि वो भी भारतीय है।

मंगलवार, जुलाई 28, 2015

जय कलाम

जय कलाम
आज मेरी कलम भी
कुछ लिखना चाहती है
तुम्हारे बेदाग चरित्र पर।

तुम जैसे
पथ प्रदर्शक
पंडित और ज्ञानी
नहीं आयेंगे बार बार।

देखो आज तो
ये बच्चे भी
नहीं खेलना चाहते खिलौनों से
बस रोना चाहते हैं।
तुम्हारे द्वारा
एक साथ रखी हुई
गीता और कुर्ाण
 अब न अलग होगी कभी भी।

दिये हैं जब से
तुमने हमे वो उपहार
नहीं लगता है डर
किसी विश्व शक्ती से।


वर्षों बाद
 आज फिर से
लगा यूं
गया है कोई युगपुरुष।



पर तुम्हारा
अनंत विस्तार लिखने के लिये
मेरी  कलम के पास 
 शब्द नहीं है।

मैं और मेरी कलम
आज दोनों मिलकर
तुम्हे शत शत
नमन करते हैं।

शनिवार, जुलाई 25, 2015

सबसे सस्ता साधन है।



हर आपदा के बाद
कुछ लोगों के शव
गुम हो जाते हैं
हमेशा के लिये।

उनके प्रीयजन
नहीं कर पाते
उनके अंतिम दर्शन भी
ख्वाइश ही रह जाती है।

कुछ दब जाते  हैं
मलवे में ही
जिनको   खा जाते हैं
भयानक जीव जंतु।

कुछ शवों को
अपना लेता है कोई
भाई या पिता के रूप में
मरने के बाद भी।

किसी  अंजान शव को देख
जोर जोर से रोना
मुआवजा पाने का
सबसे सस्ता साधन है।

शुक्रवार, जुलाई 17, 2015

कमजोर आदमी

कमजोर आदमी
के साथ तो
अन्याय कल भी हुआ था
होता रहा है सदा
शकुनी हितेशी बनकर
अन्याय की याद दिलाता रहता है उसे
फिर कमजोर आदमी करता है वोही
जो चाहता है शकुनी

महाभारत के
युद्ध का कारण
न भिष्म की प्रतिज्ञा थी,
न धृतराष्ट्र का पुत्र मोह
न दुर्योधन की महत्वाकांक्षा
न ही  शकुनी का प्रतिशोध
न द्रोपदी का हठ
पांडव तो बिलकुल नहीं।
 मैं तो
युद्ध का एकमात्र कारण
विदुर निति को मानता  हूं
जिसने धृतराष्ट्र  से
 राजमुकुट झीना।
जो उसका अधिकार था
दिया था भाग्य ने उसे
ये अधिकार जेष्ठ बनाकर।

राजा बनने की
तीव्र  आकांक्षा की ज्वाला
सुलगी तब
जन्म हुआ दुर्योधन का जब
कहा विदुर ने ये
पांडू पुत्र ही युवराज होगा।
कैसे होने देता
 वोही अन्याय
अपने पुत्र के साथ भी।   

गुरुवार, जुलाई 16, 2015

सावन की।

बहुत यादें हैं
सब के पास
बचपन के
 सावन की।

बीता वक्त
न आता फिर से
कहती है पवन
सावन की।

व्याह हुआ
दूर हुए सब
आस थी बस
सावन की।

बाबुल का घर
मां का लाड
बुलाती है सखियां
सावन की।

होगा मिलन
अवश्य एक दिन
कहती है वर्षा
सावन की।

बदल गया है
आज सब कुछ
न बदली रुत
 सावन की।

मंगलवार, जुलाई 07, 2015

हो गया तलाक।

विवाह के
सातों फेरों में
पत्नि अपने
होने वाले पति से
एक के बाद एक
मांगती है वचन।

पती  भी
सहर्ष
बिना अर्थ जाने बिना
दे देता है
सात वचन
एक अभिनेता की तरह।


अदालत से
कागज के कुछ टुकड़े
प्राप्त कर
घर आया
कहा सबने
हो गया तलाक।

पर ये मासूम
जो नहीं जानते
तलाक का अर्थ भी
उन्हे समझाने के लिये
ये कागज के टुकड़े भी
काफी नहीं है।

सोचता रहा
उस रात मैं
कैसे हुआ
आज ये सब
कहां गये
वो कसमे वादे।

विश्वासघात से
ढै  गयी  है
विवाह की
पावन इमारत
जिसके पत्थर
बिखरे हैं इधर-उधर।

तलाक के कागज पर
हस्ताक्षर करना
फांसी के फंदे
 से भी अधिक
पीड़ा दायक होता है
बस    आदमी मरता नहीं है।

शनिवार, जुलाई 04, 2015

सूर्य के शब्द।

हे दानवीर
पुत्र मेरे,
कर चुके हो दान
तुम अपना सब कुछ।

कवच कुंडल
और ये जीवन
खाली हाथ न भ
मां को लौटाया।
जो लिया था  तुमने
उसके बदले
मृत पड़े हो
आज यहां।

भाग्यशाली हो
तुम दुर्योधन
निष्ठावान,  महावीर
मित्र पाया।

हे कुंति
छोड़ो अब रोना
रोने का अधिकार
केवल राधा को है।

न रहती तुम
वर्षों तक मौन
शायद तब ये
रण भी न होता।

दी हुई शिक्षा
को शाप देकर
क्षईण करना
स्वभाव नहीं था तुम्हारा।

एकलव्य और ये
पुछते रहेंगे
अपना अपराध
क्या उत्तर दोगे?

मुक्त हो गये
 आज तुम
हर शाप से
        दुर्योधन के रिण से भी।
दान लेने से अच्छा
दान देना होता है।
आना पड़ता है देवों को भी
दानवीर के पास याचक बन।
शूरवीर को
न आवश्यक्ता होती है
किसी पहचान की
उसकी वीरता ही पहचान होती है उसकी।
दुर्योधन के
हितेशियों में
केवल तुम ही थे
जिसे मान दिया माधव ने भी।
तुम्हारा जीवन
तुम्हारी निष्ठा
दानवीर स्वाभाव
अमर कर गये तुम्हे।

गुरुवार, जून 25, 2015

किसी वृक्ष को काटने से पहले

किसी वृक्ष को
 काटने से पहले
एक पल के लिये ही सही
अवश्य सोचना.

इस वृक्ष पर
घर है पंछियों का
जो उजड़ जाएगा।

एक के बाद एक
आते हैं थककर पथिक
पाते हैं शीतलता
अब कहां बैठेंगे?

तेज धूप में तुमने भी
थक कर कभी
इस की छाया में
वक्त तो बिताया होगा।


आज ये वृक्ष
 बेबस खड़ा है
देखकर कुलाहड़ी में
अपना अंश

हो सकता है
तुम्हारे  अच्छे वक्त के बाद
ये वृक्ष ही
तुम्हारे काम आये।

मंगलवार, अप्रैल 28, 2015

मशीन बनाने का प्रयास है।

देखता हूं
बैग का भारी बोझ
उठाना भी
मुशकिल है
इन बच्चों के लिये।
सोचो फिर
इनका छोटा सा दिमाग
कैसे उठा पाएगा
इतनी सारी किताबों का बोझ
असंभव है।
अभी से
आंखों पर
दिखाई देते हैं
इतने बड़े बड़े चशमे
ये शिक्षा है
या बच्चों को
मशीन बनाने का प्रयास है।

गुरुवार, अप्रैल 16, 2015

इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है।

कुछ इनसान
आते हैं
ईश्वर की तरह
इस धरा पर।
कोई कहता है उन्हे
युहपुरुष
कोई धर्मात्मा
पर वो केवल
इनसान ही होते हैं।
वो जन्म भी लेते हैं
मौत भी निश्चित है उनकी
वो तन त्यागकर भी
अमर हो जाते हैं।
 उनके   तन में
वास होता है
किसी उच्च आत्मा का
उच्च कर्म होते हैं उनके।
उनका कहा हर शब्द
उपदेश कहलाता है
उनका किया हर कर्म
इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता  है।

रविवार, अप्रैल 12, 2015

सब से सुंदर क्या है जग में।


अगर कोई
पूछे मुझसे
सब से सुंदर
क्या है जग में।
यूं तो
खुदा की रची
हर शै सुंदर है
शूल भी,  फूल भी।
करूप ईश्वर ने
कुछ भी नहीं बनाया
ये केवल हमारी
दृष्टि का भेद है।
पर मां का आंचल
सब से सुंदर
जो करता है आकर्षित
ईश्वर को भी।

बुधवार, अप्रैल 08, 2015

ये जिमगारियां न निकलती।

जिन के पास कल
रहने को घर न थे,
आज महल पाकर वो
झौंपड़ियों को जलाना चाहते हैं।

वो भूल चुके हैं
अपने वो आंसू
जो बहाए थे खुद भी
उस दिन बेघर होने पर।

न भूलते अगर
अपना बुरा वक्त वो
आज इन महलों से
ये जिमगारियां न निकलती।

शुक्रवार, अप्रैल 03, 2015

मैं ही जान सकता हूं।

एक तरफा प्रेम
घातक होता है
उसके लिये
जो प्रेम करता है।
अज्ञानी पतंगा
खुद से भी अधिक
करता है प्रेम दीपक   से
भस्म हो जाता है जलकर।
कोई उसके प्रेम को
कहता है त्याग
कोई समझता है समर्पण
ये केवल  नादानी है   उसकी।
मैंने खुद देखा है
मिटकर पतंगे की तरह
क्यों जलता है पतंगा
मैं ही जान सकता हूं।

शुक्रवार, मार्च 13, 2015

उदय होता सूरज

उदय होता सूरज
जगाता है मुझे
मैं कौन हूं
बताता है मुझे।
नशवर है जीवन
ओस  की बूंदों सा
मिटाकर उन्हे
दिखाता है मुझे।
पूछता है मुझसे
मेरे मन की पीड़ा
जलकर खुद ही
दिखाता है मुझे।
केवल कर्म करो
करता हूं जैसे मैं
फल तो मिलेगा ही
समझाता है मुझे।

शुक्रवार, जनवरी 30, 2015

युग पुरुष

न सिंहासन मांगा
न जंग थी किसी से
फिर क्यों छलनी किया
एक संत को निज गोली से।
कांपते हाथों से तुमने
प्राण लिये जिसके
वो केवल  मानव  नहीं
युगपुरुष थे।
भस्म हो जाते तुम वहीं
अगर अहिंसा के पुजारी   बापू
राम राम कहते हुए
तुम्हे क्षमा न करते।
युगपुरुष की हत्या
होती है ऐसे ही
मारा था माधव को भी
छल से एक शिकारी ने।
क्यों दी फांसी
इस  अश्वस्थामा  को
जलने देते सदा
प्राश्चित  की आग में।

बुधवार, जनवरी 21, 2015

आना है तो, महमान बनके आओ।

आना है तो,  महमान बनके आओ,
तुम क्या हो,  हमे न ये  दिखाओ,
तुम कौन हो,  पता है हमे
हम क्या है, ये भी जान जाओ...
तुम जैसे कयी आये
जय कह गये इस धरा की
जो देखोगे यहां तुम,
कहीं और हमे दिखाओ...
आकर्षण  है इस मिट्टी में
आते हैं सब बार बार,
हकीकत में जीवन जीयो,
ये दिखावा भूल जाओ...
जो देखा है तुमने आज,
हज़ारों वर्ष पहले यहां था,
क्या करना है हमें
हमे न ये सिखायो...

रविवार, जनवरी 04, 2015

"निर्भय होकर चल सकती थी हर लड़की।"

एक मासूम के साथ
हुआ दुशकर्म भी
टिवी चैनलों पर
नमक मिर्च लगाकर दिखाना
टिवी चैनल को
प्रसिद्धि दिलाने का ही
माधयम बन गया है।

अगर ऐसा न होता तो
ये चैनल
कभी पिड़िता के भाई से
कभी पिता से
कभी रोती हुई मां को
अपने चैनल पर बुलाकर
उनकी  अंतर   वेदना न पूछते।

ऐसी खबरों को  सब से पहले
 दिखाने की प्रतिसपर्धा की जगह
अगर ये टीनी चैनल
अपने कैमरे  सड़कों या गलियों  में  लगाते
सोए हुए प्रशासन को जगाते
कहां है असुर्क्षा  जंता को बताते
            "निर्भय होकर चल सकती थी हर लड़की।"