स्वागत व अभिनंदन।

शनिवार, अगस्त 08, 2015

उदास खामोशी

एक दिन हम भी
साथ चले थे
एक पथ पर
एक बहाव में
एक थे कल
आज दो हैं
इन दोनों
 नदियों  की तरह।
ये नदियां  भी
 कल एक थी
पर कुछ लोगों ने
अपने स्वार्थ के लिये
मोड़ दिया
इन  के जल को
हो गया विछेद
बन गयी दो नदियां।

एक नदि तो
तुम्हारी तरह
बहने लगी
आनंद के बहाव में
एक नदि को
बहना पड़ा
केवल मजबूरी से।


उस नदि की
कल कल करती
 आवाज में भी
ऐहसास होता है
बिछोड़े की
उदास    खामोशी का।

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-08-2015) को "भारत है गाँवों का देश" (चर्चा अंक-2062) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर प्रस्तुति. अच्छी रचना.

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर भावाभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं

ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !