स्वागत व अभिनंदन।

बुधवार, अप्रैल 08, 2015

ये जिमगारियां न निकलती।

जिन के पास कल
रहने को घर न थे,
आज महल पाकर वो
झौंपड़ियों को जलाना चाहते हैं।

वो भूल चुके हैं
अपने वो आंसू
जो बहाए थे खुद भी
उस दिन बेघर होने पर।

न भूलते अगर
अपना बुरा वक्त वो
आज इन महलों से
ये जिमगारियां न निकलती।

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