स्वागत व अभिनंदन।

शुक्रवार, अप्रैल 03, 2015

मैं ही जान सकता हूं।

एक तरफा प्रेम
घातक होता है
उसके लिये
जो प्रेम करता है।
अज्ञानी पतंगा
खुद से भी अधिक
करता है प्रेम दीपक   से
भस्म हो जाता है जलकर।
कोई उसके प्रेम को
कहता है त्याग
कोई समझता है समर्पण
ये केवल  नादानी है   उसकी।
मैंने खुद देखा है
मिटकर पतंगे की तरह
क्यों जलता है पतंगा
मैं ही जान सकता हूं।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (04-04-2015) को "दायरे यादों के" { चर्चा - 1937 } पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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