स्वागत व अभिनंदन।

शनिवार, जुलाई 04, 2015

सूर्य के शब्द।

हे दानवीर
पुत्र मेरे,
कर चुके हो दान
तुम अपना सब कुछ।

कवच कुंडल
और ये जीवन
खाली हाथ न भ
मां को लौटाया।
जो लिया था  तुमने
उसके बदले
मृत पड़े हो
आज यहां।

भाग्यशाली हो
तुम दुर्योधन
निष्ठावान,  महावीर
मित्र पाया।

हे कुंति
छोड़ो अब रोना
रोने का अधिकार
केवल राधा को है।

न रहती तुम
वर्षों तक मौन
शायद तब ये
रण भी न होता।

दी हुई शिक्षा
को शाप देकर
क्षईण करना
स्वभाव नहीं था तुम्हारा।

एकलव्य और ये
पुछते रहेंगे
अपना अपराध
क्या उत्तर दोगे?

मुक्त हो गये
 आज तुम
हर शाप से
        दुर्योधन के रिण से भी।
दान लेने से अच्छा
दान देना होता है।
आना पड़ता है देवों को भी
दानवीर के पास याचक बन।
शूरवीर को
न आवश्यक्ता होती है
किसी पहचान की
उसकी वीरता ही पहचान होती है उसकी।
दुर्योधन के
हितेशियों में
केवल तुम ही थे
जिसे मान दिया माधव ने भी।
तुम्हारा जीवन
तुम्हारी निष्ठा
दानवीर स्वाभाव
अमर कर गये तुम्हे।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-07-2015) को "घिर-घिर बादल आये रे" (चर्चा अंक- 2027) (चर्चा अंक- 2027) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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