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मंगलवार, जुलाई 28, 2015

जय कलाम

जय कलाम
आज मेरी कलम भी
कुछ लिखना चाहती है
तुम्हारे बेदाग चरित्र पर।

तुम जैसे
पथ प्रदर्शक
पंडित और ज्ञानी
नहीं आयेंगे बार बार।

देखो आज तो
ये बच्चे भी
नहीं खेलना चाहते खिलौनों से
बस रोना चाहते हैं।
तुम्हारे द्वारा
एक साथ रखी हुई
गीता और कुर्ाण
 अब न अलग होगी कभी भी।

दिये हैं जब से
तुमने हमे वो उपहार
नहीं लगता है डर
किसी विश्व शक्ती से।


वर्षों बाद
 आज फिर से
लगा यूं
गया है कोई युगपुरुष।



पर तुम्हारा
अनंत विस्तार लिखने के लिये
मेरी  कलम के पास 
 शब्द नहीं है।

मैं और मेरी कलम
आज दोनों मिलकर
तुम्हे शत शत
नमन करते हैं।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर-शत-शत नमन,युग-पुरुष कलाम साहिब को.
    हम हमारा देश कृतग्य है—कि ऐसी पुन्य आत्माएं इस
    धरती पर अवतरित हो हमें धन्य करती हैं.

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