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गुरुवार, सितंबर 03, 2015

केकयी सा ही अनादर होता है...

मां केकयी को
आज सभी
मानते हैं दुर्ात्मा,
 दोनों माओं की तरह ही
 वो भी  एक
 महान नारी थी...
नहीं जानना चाहा किसीने
भरत से अधिक
प्रीय थे जेसे   राम
फिर पल भर में ही
क्यों मांग लिया
 श्री राम को वनवास...

उन्हे तो केवल
देवताओं ने
भ्रमित करके
मांगने भेजे दो वचन,
 ताकि राम वनों में जाए
वध करे रावण का...


भरत की जननी
श्रीराम की मां
दशरत की रानी
उच्च कुल की बेटी
कुल वधु अवध   की
दुर्ात्मा कैसे...


किसी का किया
एक तुच्छ कर्म
उसके जीवन के
सारे उच्च कर्मों  को
नष्ट नहीं कर सकता
ये हमारी भूल है...

कभी कभी पराई मां भी
एक पुत्र को
उसकी जननी से भी
अधिक प्रेम करती है
पर उसका  सदा ही
केकयी सा ही अनादर होता है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें!

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 08 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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