स्वागत व अभिनंदन।

गुरुवार, जुलाई 16, 2015

सावन की।

बहुत यादें हैं
सब के पास
बचपन के
 सावन की।

बीता वक्त
न आता फिर से
कहती है पवन
सावन की।

व्याह हुआ
दूर हुए सब
आस थी बस
सावन की।

बाबुल का घर
मां का लाड
बुलाती है सखियां
सावन की।

होगा मिलन
अवश्य एक दिन
कहती है वर्षा
सावन की।

बदल गया है
आज सब कुछ
न बदली रुत
 सावन की।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 22 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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