स्वागत व अभिनंदन।

शनिवार, दिसंबर 19, 2015

 मेरे बचपन के वो सुनहरे  पल...

हर बार
जब आती है सर्दी
गिरती है बरफ
होती है रात
मुझे याद आता है
वो एक एक पल
कडाके की ठंड में 
जब हम सब
 आग के सामने बैठकर
बुजुर्ग   और बच्चे
सुनते और
सुनाते थे कहानियां...
अब बरफ तो गिरती है
पर उतनी नहीं
अब देर रात तक जागते तो हैं
पर अपने अपने कमरों में
बुजुर्ग   पड़े रहते हैं
एक कौने में किसी सामान की तरह।
बच्चों को फुरसत नहीं
टीवी,  Internet   से।
अब आग भी नहीं जलती
हीटर से काम चलता है।
अब नहीं आयेंगे लौटकर
 मेरे बचपन के वो सुनहरे  पल...

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (20-12-2015) को "जीवन घट रीत चला" (चर्चा अंक-2196) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !