शुक्रवार, अक्टूबर 16, 2015

विश्वास....

जब तक
विश्वास था
 मुझे तुम पर
अटूट प्रेम था
मुझे तुम से...
जिंदगी
 और रंग-मंच
एक नहीं
 अलग हैं
जिंदगी हकीकत है....
विश्वास तोड़ने
से पहले ही
तुम कह देती
मैं मिट जाता
प्रेम  तो न मरता....
विश्वास
मात्र  शब्द नहीं
हृदय में
प्रेम का दीप
जलाने वाला तेल है....
जब तक तेल है
दीपक में
जलता है दीपक
 तब तक ही
वर्ना दीपक  दिखावा है...

2 टिप्‍पणियां:

  1. जय माँ अम्बे।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-10-2015) को "देवी पूजा की शुरुआत" (चर्चा अंक - 2132) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुंदर.नवरात्रि की शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं

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