गुरुवार, अक्टूबर 31, 2013

धरा मानव से कह रही है...



धरा मानव से कह रही है,
मुझे  तुमने बंजर   बनाया...
कर दिये जंगल बिलकुल  खाली,
नदियों का भी  जल सुखाया...

कहते हो तुम खुद को महान,
श्रेष्ठ है तुम्हारा ज्ञान, विज्ञान,
केवल चंद वर्षों के सुख के लिये,
सदियों का सुख लुटाया...

मिटा दिये तुमने असंख्य जीव,
टिकी हुई थी जिन पे मेरी नीव,
तुम्हारे नित्य नये आविष्कारों ने,
मुझे केवल असहाय बनाया...

पीड़ा से  जब मैं कराही,

हड़कंप  मचा हुई तबाही,
आंसू बहे तो बाड़ आयी,
हिली ही केवल,  भूकंप आया...

कब होगी तबाही, जान लिया,
दोषी भी खुद को मान लिया,
संभल जाओ वक्त अभी भी  है,
विनाश का निकट वक्त  है आया...





13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया आदरणीय कुलदीप जी-
    बधाई स्वीकारें-

    आविष्कारों-
    कराही

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  2. कुलदीप जी बहुत बढ़िया। हम अभी भी नहीं चेते तो बहुत देर हो जाएगी।

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  3. सुन्दर सार्थक रचना .. दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें ..

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  4. सुन्दर रचना !
    दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं
    नई पोस्ट हम-तुम अकेले

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  5. सुन्दर प्रस्तुति………

    काश
    जला पाती एक दीप ऐसा
    जो सबका विवेक हो जाता रौशन
    और
    सार्थकता पा जाता दीपोत्सव

    दीपपर्व सभी के लिये मंगलमय हो ……

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपको और आपके पूरे परिवार को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    स्वस्थ रहो।
    प्रसन्न रहो हमेशा।

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  7. पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
    वली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |

    सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
    कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |


    जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
    रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||


    वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
    पावली=चवन्नी

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  8. सुन्दर पंक्तियों से सजी रचना
    नया प्रकाशन --: दीप दिल से जलाओ तो कोईबात बन
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  9. बहुत सुंदर !!आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामना !!

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  10. भावपूर्ण प्रस्तुति |दीपावली शुभ और मंगलमय हो |

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  11. सुंदर अभिव्यक्ति ...

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