न स्वर्ग की आस है,
न सितारों की तलाश है,
सुंदर है सब से मेरा घर,
मैं खुश हूं इस धरा पर...
श्रेष्ठ है यहां सब से कर्म,
पथ प्रदर्शक है धर्म,
पीर पैगंबर स्वर्ग से आये,
मैं खुश हूं इस धरा पर...
मां की मम्ता की छाया मिली,
पिता के स्नेह से जिंदगी खिली,
संबंध अनेकों अनेक बने,
मैं खुश हूं इस धरा पर...
पाप करें या पुन्य कमाएं,
मंदिर या मधुशाला जाएं,
बुद्धि, विवेक से सोचना है ये,
मैं खुश हूं इस धरा पर...
जो चहा, उसने वोही पाया,
मिट्टी को भी स्वर्ण बनाया,
दुख सुख दोनों का साथ है,
मैं खुश हूं इस धरा पर...
पाप करें या पुन्य कमाएं,
जवाब देंहटाएंमंदिर या मधुशाला जाएं,
बुद्धि, विवेक से सोचना है ये,
मैं खुश हूं इस धरा पर..
आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 19/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमिट्टी का जीवन मिट्टी को ही तलाशेगा ... उसमें ही मिलना है तो उसे ही क्यों न चाहा जाए ... भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 20/09/2013 को
जवाब देंहटाएंअमर शहीद मदनलाल ढींगरा जी की १३० वीं जयंती - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः20 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
दिल जीत लिया आपने
जवाब देंहटाएंकल 21/09/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
न स्वर्ग की आस है,
जवाब देंहटाएंन सितारों की तलाश है,
सुंदर है सब से मेरा घर,
मैं खुश हूं इस धरा पर.......बेहद सुंदर...सार्थक रचना...
लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंमैं खुश हूं इस धरा पर....भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आप सब का।
हटाएंसुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंथोड़ा फोंट बड़ा करेंगे तो पढ़ने में आसानी होगी !
सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंथोड़ा फोंट बड़ा करेंगे तो पढ़ने में आसानी होगी !
बहुत सुन्दर कविता लिखी है सरल शब्दों में सुन्दर भाव..
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