स्वागत व अभिनंदन।

शनिवार, अक्टूबर 27, 2012

अदभुत माया


अनुपम है रचना तेरी रचनाकार, तुझे किस रूप में पूजे संसार।

सब को अलग रूप आकार दिया,  पर खुद क्यों कोई रूप लिया।

किसी उपवन में पतझड़ लायी,  किसी गुलशन को खूब महकाया,

सोचता हूं कभी कभी, ये जग तुने कैसा बनाया।


किसी को दिये ढेरों दुःख, किसी कि झोली में डाले सुख।

कोई तो गलीचों पर सोता है, कोई फुटपातों पर रोता है।

किसी को दी खूब हंसी, किसी को जी भर के रुलाया।

सोचता हूं कभी कभी, ये जग तुने कैसा बनाया।


किसी के बंगले अलिशान है, किसी कि छत बस आसमान है।

किसी कुल में हो रहा है विवाह, किसी कुल का बुझ गया है दिया।

कोई ढूंढ़े मरघट के लिये जमीन, किसी को तूने भूपति बनाया।

सोचता हूं कभी कभी, ये जग तुने कैसा बनाया।


अगर तु मनुज को दुःख देता, तेरा नाम प्रभु कोई लेता।

क्षमा दया को भूल जाता जन, पाषाण बन जाता उसका मन।

कहीं धूप कहीं है छांव,   अदभुत है प्रभु तेरी माया।

सोचता हूं कभी कभी, ये जग तुने कैसा बनाया।

शनिवार, अक्टूबर 20, 2012

जिंदगी

मुझे पूरा ऐतवार था तुझ पर जिंदगी, सब कुछ अपना निसार किया तुझ पर जिंदगी।

तु तो वक्त के हाथ की कठपुतली है, मैं यूं ही गुमान करता रहा तुझ पर जिंदगी।

मैंने तुझे खूब सजाया संवारा, ये मेरा ऐहसान है तुझ पर जिंदगी।

तु मेरी राह में शूल बिछाती रही, मैंने जुल्म नहीं किये तुझ पर जिंदगी।

मेरी होकर भी तु मेरी न हुई, फिर क्यों इलजाम लगाऊं तुझ पर जिंदगी।

तुझे नशवर कहूं या बेवफा है तु, मैंने केवल गीत लिखे हैं तुझ पर जिंदगी।

रविवार, अक्टूबर 14, 2012

कुर्सी की पूजा


सुबह सुबह मैंने देखा, धूप देते नेता जी को।

वो भी आज कर रहे हैं पूजा  भगवान को गाली देते थे जो।


सारी सामग्री थी पूजा  की, मुर्ति वहाँ  न थी किसी की।

ये सोचकर मैं हुआ हैरान, कौन है नेता जी का भगवान,


मैंने उन पर व्यंग्य किया, उन्हे पुजारी का नाम दिया।

ये सुन उसने कहा मुझे, सच्चाई बताता हूँ तुझे,


भगवान को किसने  देखा है, कौन जाने कहाँ है वो,

पूजा  भी उसकी करो, वर्तमान में यहाँ है जो।


मैं कुर्सी की पूजा  करता हूँ, चुनाव में हारने से डरता हूँ।

मैंने हैं कयी सपने सजाये, बस एक बार कुर्सी मिल जाये।


इस कुर्सी पर बैठकर  मैं, अरब पती  बन जाऊंगा।

तेरे खुदा को पूजकर,  क्या खाक मैं पाऊंगा।


करके असंख्य घुटाले में,गिनिज़ में नाम लिखवाऊंगा,

इस वतन को बेचकर मैं, धनवान बन जाऊंगा।

मंगलवार, अक्टूबर 09, 2012

प्रेम पावन


दुनिया में हर रिश्ते को, कोई न कोई नाम मिला,

राधा कृष्ण के रिश्ते को, नाम मिला न अन्जाम मिला।

श्याम की रानियां थी अनेक, न उन में से राधा थी एक।

पर समर्पण था इन सब से अधिक, फिर भी न बैकुन्ठ धाम मिला।





सब ने कहा, मथुरा न जाओ, राधा ने कहा कर्तव्य निभाओ,

राधा का समर्पण, श्याम का स्नेह, राधा को श्याम सा मान मिला।



न आकर्षण, न दिखावा, ये था केवल प्रेम पावन,

ये सुनायी देता था श्याम की मुरली में, इसे जगदीश के हृदय में स्थान मिला।



लक्ष्मी स्वरूपा थी रुख्मणी, पर जग ने राधे श्याम कहा,

प्रेम श्रेष्ठ है भक्ति से, उद्धव को ये ज्ञान मिला।

गुरुवार, अक्टूबर 04, 2012

जीवन की धारा



न रह गयी  है  रिशतों में पावनता, लहू तो  वन गया है पानी,

न रह गयी कोई मर्यादाएं,   परमप्रायें बन गयी है कहानी।

टूट गये दिलों के बन्धन, न आपसी भाईचारा है,

पैसे का जनून है सब को, बदली जीवन की धारा है।


बचपन बीत जाता है, चन्द किताबे पढ़ने में,

कट जाती  है जवानी, धन अर्जन करने में,

बुढ़ापे में आकर जग, ढूंढ़ता कोई सहारा है,

 पैसे का जनून है सब को, बदली जीवन की धारा है।


बन्द कमरे में बैठा जन, मशीनों का दास है,

प्रकृति प्रेम से वंचित, गुमसुम और उदास है।

लबों पर कृत्रिम हंसी, काँति हीन सितारा है।

पैसे का जनून है सब को, बदली जीवन की धारा है।


अशांत मन  अतृप्त  आंखे, महत्वाकांक्षी  इनसान है,

पथभ्रष्ट हो गया है, न मंजिल का ज्ञान है।

लड़ाई  और षड़यंत्रों  में, जाता  जीवन सारा है,

पैसे का जनून है सब को, बदली जीवन की धारा है।

बुधवार, अक्टूबर 03, 2012

मेरी चाहत



            धन दौलत की कमी नहीं है, हर चीज है मेरे पास,

स्वर्ग सा सुख धरा पे पाया, फिर भी है मन उदास।

मुझे दुनिया की हर चीज मिली वो नहीं मिला जो मैंने चाहा,

जब मन्नत मांगने मन्‍दिर गया, बुत बनकर खुदा मौन रहा।

तकदीर बनाने वाले ने देखो मुझसे छल किया,

मुझे चन्द दीपक देकर मेरा सूरज छीन लिया।

मैंने इसे भी मुकदर समझा ये सोचकर हर गम सहा,

जब मन्नत मांगने मन्‍दिर गया, बुत बनकर खुदा मौन रहा।

मुझे मेरी चाहत नहीं मिली, मेंने बहूत आंसु बहाए,

खुदा रहम दिल नहीं जो आंसुओं से पिघल जाए।

नहीं बद           लती आंसुओं से तकदीर हर लम्हे ने यही कहा,

जब मन्नत मांगने मन्‍दिर गया, बुत बनकर खुदा मौन रहा।