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शनिवार, अक्टूबर 20, 2012

जिंदगी

मुझे पूरा ऐतवार था तुझ पर जिंदगी, सब कुछ अपना निसार किया तुझ पर जिंदगी।

तु तो वक्त के हाथ की कठपुतली है, मैं यूं ही गुमान करता रहा तुझ पर जिंदगी।

मैंने तुझे खूब सजाया संवारा, ये मेरा ऐहसान है तुझ पर जिंदगी।

तु मेरी राह में शूल बिछाती रही, मैंने जुल्म नहीं किये तुझ पर जिंदगी।

मेरी होकर भी तु मेरी न हुई, फिर क्यों इलजाम लगाऊं तुझ पर जिंदगी।

तुझे नशवर कहूं या बेवफा है तु, मैंने केवल गीत लिखे हैं तुझ पर जिंदगी।

5 टिप्‍पणियां:

  1. चोट खाए लगते हो दोस्त!
    सब ठीक हो जाएगा!

    --
    ए फीलिंग कॉल्ड.....

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  2. यशवंत जी एवम् आशीश जी मेरी रचना पसंद करने के लिये धन्यवाद

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  3. इतने इल्जाम भी लगा रहे हैँ और लिख भी रहे हैं कि क्यों इल्जाम लगाऊँ! भ्रमित लगते हैं।

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  4. जिंदगी भी अजीब शय है...
    पता नहीं वो तुमसे खफा है या तुम उससे......

    अनु

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