स्वागत व अभिनंदन।

शुक्रवार, दिसंबर 19, 2014

भाग्यशाली और बदनसीब


भाग्यशाली है वो कुत्ते
जिन  का लालन पालन
बड़ी बड़ी कोठियों में
किसी राजकुमार की तरह हो रहा है
निछावर है जिनपर
शहर की सुंदरियों का सकल प्रेम


उन्ही  कोठियों में
बदनसीब वो बच्चे  भी रहते  हैं
जिन्हे रोटी भी
ताने सुन सुनकर
काम के बदले मिलती है।
 प्रेम पाने की तो
वो अपेक्षा ही नहीं करते।

अगर इन कोठियों में
कुत्तों की जगह
 इन बच्चों का लालन पालन होता
तो मैं कभी भी
इन बच्चों को बदनसीब
उन कुत्तों को भाग्यशाली न कहता।

गुरुवार, दिसंबर 11, 2014

काफी है तुम्हारे ही  विनाश के लिये।

भारत विभाजन के बाद
उठी चिंगारी वहां
यहां भी।
ज्वाला बन उसने
हाहाकार मचाया यहां
खाक  बनाया वहां भी।
यहां की चिंगारी
तो बुझ गयी थी
कुछ ही महिनों में।
वहां   चिंगारी आज भी
सुलग रही है
नफरत की हवा से।
चाह  कर भी
इस चिंगारी को
बुझा न सके हम।
तुम्हारा ये बारूद का कोष
और ये एक  चिंगारी
काफी है तुम्हारे ही  विनाश के लिये।

शनिवार, दिसंबर 06, 2014

6 दिसंबर का महत्व

 6   दिसंबर का महत्व
हिंदुओं के लिये भी
मुस्लिम के लिये भी है।
पर एक हिंदूस्तानी के लिये
इस का महत्व
 0 है।
गिराए गये मंदिर कयी
शोर भी न दिया सुनाई
सोचा क्यों खून बहाएं
 आताताई उस  बाबर की
मस्जिद गिरने की चिंगारी
आज भी  क्यों थमती नहीं।


जो भी  हुआ है  कल
भूल जाना अच्छा है उसे
न किसी की जीत है उस में
न प्राजित   हुआ है कोई
वो रक्त किसी राज नेता का नहीं
आम आदमी का था।
 
एक हिंदूस्तानी को
न वहां मंदिर चाहिये
न मस्जिद
आवश्यक्ता है अस्पताल की
या स्कूल चाहिये।

शुक्रवार, दिसंबर 05, 2014

केवल शस्त्र चलाते हैं अश्वस्थामा की तरह।

 एक स्वार्थ के लिये
काटते हैं उस  वृक्ष को
जो किसी से कुछ नहीं कहता
न किसी से कुछ मांगता है।
खड़ा है वर्दान बनकर
 घर हैं  इन पंछियों का भी।

देता है स्वच्छ हवा
हमे जीने के लिये भी ।
आने जाने वाले पथिक को
मिलती है   छाया
भूख लगने पर
खाते हैं उसके फल

अपने स्वार्थ के लिये
बन जाते हैं दानव
भूल जाते हैं हर परोपकार
नहीं रहती औरों की चिंता
नहीं देखते अपने कल को
केवल शस्त्र चलाते हैं अश्वस्थामा की तरह।

सोमवार, दिसंबर 01, 2014

दुर्भाग्य उस पुष्प का।

फूल टूटने  के बाद भी
लगते हैं सुंदर
कहीं माला में
कहीं मंदिर में
कभी अर्थी पर
कभी विवाह में।

तोड़ने से पहले
नहीं पूछते इनसे
क्या ये चाहते  हैं  अलग होना
अपनी उस  डाली से।
जिसने दिया है
इन्हे  ये सौंदर्य।

एक सुंदर   फूल
जिसे गुमान था
 अपने सौंदर्य पर
चाहता था स्पर्श पाना
रति सी किसी    सुंदरी का
ताकि मिलन हो
सौंदर्य से सौंदर्य का।

दुर्भाग्य उस पुष्प का
उस दिन प्रातः  ही
तोड़कर ले गये उसे
एक भ्रष्ट  नेता की
अर्थी पर चढ़ाने के लिये।
उसकी चाह और  ख्वाब,
वो सौंदर्य भी
उस अर्थी के साथ
राख हो गये मिनटों में।