तुम बिन पिताजी
अब हम कैसे मनाएंगे दिवाली
अपने हाठों से लाई मिठाई
खाने में वो आनंद नहीं आएगा....
पर इस दिवाली पर भी,
हम जलाएंगे दीपक
करेंगे प्रकाश,
तुम्हारे लिये....
हम जानते हैं
तुम्हे अपने घर में
फैला हुआ अंधकार
अच्छा नहीं लगेगा...
हम ये भी जानते हैं
तुम आओगे
किसी न किसी रूप में
हमारे साथ दिवाली मनाने....
न सजा पाएंगे घर को,
न बन सकेंगे वो पकवान
आहत मन से ही सही
एक दीपक अवश्य जलाएंगे....
अब हम कैसे मनाएंगे दिवाली
अपने हाठों से लाई मिठाई
खाने में वो आनंद नहीं आएगा....
पर इस दिवाली पर भी,
हम जलाएंगे दीपक
करेंगे प्रकाश,
तुम्हारे लिये....
हम जानते हैं
तुम्हे अपने घर में
फैला हुआ अंधकार
अच्छा नहीं लगेगा...
हम ये भी जानते हैं
तुम आओगे
किसी न किसी रूप में
हमारे साथ दिवाली मनाने....
न सजा पाएंगे घर को,
न बन सकेंगे वो पकवान
आहत मन से ही सही
एक दीपक अवश्य जलाएंगे....
पिता के लिए असीम अनुराग भाव से लबरेज सुन्दर सृजन .
जवाब देंहटाएंदीप पर्व शुभ हो । सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब, दीप पर्व की शुभकामनाएँ
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