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मंगलवार, अप्रैल 11, 2017

...केवल संस्कार दो...

शूल की चुभन,
बहुत पीड़ा देती है,
पर शायद
उतनी पीडा नहीं,
जितनी फूल की चुभन,
....देती है....
वो बेटे
भूल चुके हैं  सब कुछ
अपने  मां-बाप को भी,
उन के सप नों को भी,
जिन्हे  याद है अब
...केवल नशा ...
जो माएं
मांगती रही दुआ
लंबी आयु की
अपने बेटों  के लिये
आज वो भी अपनी दुआ में,
....
अपनी खुशियांं  ही मांग रही है...
वो माएं   सब से
यही कह रही है
बच्चों  के लिये
न मांगो लंबी आयु की दुआ
न धन दौलत
...केवल संस्कार दो...

10 टिप्‍पणियां:

  1. मार्मिक वर्णन ,सुन्दर ,आभार।

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  2. और संस्कार पे़डों पर नहीं लगते। हज़ारो पीढियों से अर्जित किए जाते हैं। एकल परिवारों की चाह में हम रहां खो बेठे हैं।

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  3. बहुत सही कहा आपने अच्छे संस्कार से कुछ भी हासिल करना कठिन नहीं, संस्कार अच्छे न हो तो जो कुछ है उसे डूबते देर नहीं लगती

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  4. बहुत सुन्दर रचना..... आभार
    मेरे ब्लॉग की नई रचना पर आपके विचारों का इन्तजार।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. बहुत सही बात कही आपने कुलदीप जी | संस्कार से ही समाज की गंदगी को साफ किया जा सकता है |

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  7. मैंने आपके ब्लॉग को फ़ॉलो भी किया हुआ है पर आपकी रचना मेरी रीडिंग लिस्ट तक नहीं पहुँचती , न जाने क्यों ?

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  8. बहुत सुन्दर एवं सार्थक सृजन।
    सही कहा बच्चों को संस्कारवान बनाना ही एकमात्र ध्येय होना चाहिए हर माँ-बाप का।

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