स्वागत व अभिनंदन।

गुरुवार, दिसंबर 31, 2015

नव वर्ष का अभिनन्दन है...

कहता है कलैंडर
आगे बढ़ो
रुको नहीं,
पर भागो नहीं,
अपनी गति में चलो।
बदलता है
सब कुछ ही।
हर पुराने के बाद
एक नये का उदय
क्रम चलता है यही...

कहता है पुराना वर्ष
पहुंच चुके हो जहां,
उससे आगे चलना,
रुकना नहीं
न भय लाना मन में।
जो भूल हुई,
 न दौहराना उसे,
जो न पा सके,
अब पाना उसे
इस नव वर्ष में...
लाया है नव वर्ष,
सब के लिये
नया उत्साह
 नयी उमंगे
नये सपने।
जब उदय होगा
नव वर्ष का सूरज,
जल उठेंगे
नव आशाओं के दीप
नव वर्ष का अभिनन्दन है...

शनिवार, दिसंबर 26, 2015

ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...

हर राज सब को बताए नहीं जाते,
हर जख्म भी दिखाए नहीं जाते,
यकीं करो या न करो,
ताज बनते हैं, बनाए नहीं जाते...
हर जिंदगी यूं तो
एक फूल की तरह होती है
खिलते हैं फूल प्रेम से
नफरत से हैं मुर्झाते...
कौन कहता है
आदमी एक बार मरता है,
दुनिया के ठुकराए हुए,
बस दफनाए नहीं जाते...
कहने वाले समझते हैं
 वो अब  हमारा  घर है,
मासूम हैं वो कहने वाले
जो मकान को घर हैं बताते...

बुधवार, दिसंबर 23, 2015

मानव...

ईश्वर ने
हर प्राणी के लिये
बनाई है एक धरा
जहां सब स्वतंत्र विचरे।
इन सब में, 
सबसे श्रेष्ट   मानव है
जिसे बनाया है
इस धरा के लिये...
मानव तन में
वास है
अनश्वर  आत्मा का
नष्ट नहीं होती जो।
मानव कर सकता है कर्म
बुद्धि और   विवेक से
पा सकता है मोक्ष
इस लिये सबसे श्रेष्ट    है वो...
पांच तत्वों से
 हर मानव बना है
   अविभाज्य है
समान हैं सब।
वैदिक धर्म  है सब का एक
जीवन है सबका करम-क्षेत्र 
मानव जिये मानवता के लिये
मरे भी तो  मानवता  के लिये...

आज कर्म ही
धर्म है  उसका
वो कर्म करे
मानव  हित  के लिये
रक्षा करे हर जीव की
पर्यावरण का  संरक्षण करे।
न होने दे शोषण,
किसी भी मानव का...

रावण को मारा मानव के लिये
कंस संहारा मानव के लिये
दधिची  ने अपनी हड्डियों  का दान
दिया  था मानव के लिये।
नानक आये मानव के लिये
 दिया ज्ञान बुद्ध  ने मानव के लिये।
गोविंद ने अपने चार लाल
कुर्वान किये मानव के लिये।

सोमवार, दिसंबर 21, 2015

भूख...

कभी सोचा है
शेर मांस ही  क्यों खाता है?
उसे चाहे कुछ भी मिले
पर उसकी भूख मांस से ही मिटती है।
 एक चिड़िया
केवल अन्न ही खाती है
अन्न न  भी मिले
वह किसी जीव को नहीं खाती।
जानते हो क्यों?
इन दोनों की भूख में फर्क है....
एक रहीस का बच्चा
थाली से पूरा भोजन कभी नहीं खाता,
रेलवे स्टेशन पर हाथ फैलाता हुआ बच्चा
फैंके  गए  छिलके को भी  मुंह में डाल देता है
मैं सोचता हूं
इन दोनों की भूख में फर्क है
पर खतरनाक
रहीस के बच्चे की भूख है...

कोई बिना रोटी से भूखा  हैं
 किसी को दवाइयों से  भी भूख नहीं लगती
हैं तो दोनों भूखे हैं
इन दोनों की भूख में भी फर्क    है.
एक की आवश्यक्ता रोटी है
और दूसरे की भूख ही आवश्यक्ता है...
पर मैं उस भूख की बात कर रहा हूं
जिससे एक विद्वान पंडित,  रावण बन जाता है,
क्षण भर में ही उसका सारा  ज्ञान नष्ट हो जाता है।

मैं उस भूख की बात कर रहा हूं,
जो औरंगजेब को लगी थी,
जिसने अपने जनक को ही कारावास में डाल दिया था।
मैं उस भूख की बात कर रहा हूं,
जो कीचक को पांचाली  को देखकर लगी थी।
जिससे डर कर आज हर लड़की भयभीत है....

अखंड भारत देश  चाहिये।

जो वतन को बांट रहे हैंं,
लोकतंत्र की जड़े काट रहे हैं,
 कह दो उनसे
दिन नहीं अब उनके,
अब दल तंत्र नहीं
 जनतंत्र ही होगा,
राज्य राम का
न खंडित होगा
न होता जयचंद
हम गुलाम न होते,
कई सदियों तक
 गुम नाम न होते।
हमे एक दल नहीं
स्वदेश चाहिये,
केवल देश नहीं
अखंड भारत देश  चाहिये।

शनिवार, दिसंबर 19, 2015

 मेरे बचपन के वो सुनहरे  पल...

हर बार
जब आती है सर्दी
गिरती है बरफ
होती है रात
मुझे याद आता है
वो एक एक पल
कडाके की ठंड में 
जब हम सब
 आग के सामने बैठकर
बुजुर्ग   और बच्चे
सुनते और
सुनाते थे कहानियां...
अब बरफ तो गिरती है
पर उतनी नहीं
अब देर रात तक जागते तो हैं
पर अपने अपने कमरों में
बुजुर्ग   पड़े रहते हैं
एक कौने में किसी सामान की तरह।
बच्चों को फुरसत नहीं
टीवी,  Internet   से।
अब आग भी नहीं जलती
हीटर से काम चलता है।
अब नहीं आयेंगे लौटकर
 मेरे बचपन के वो सुनहरे  पल...

गुरुवार, दिसंबर 17, 2015

बलिदान नवम गुरु का...[गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान दिवस पर]

जब जब धर्म की
होती है हानी
आते हैं ईश्वर
जन्म मानव का लेकर
करते हैं अधर्म का नाश...
धर्म की पुनः स्थापना के लिये
नवम गुरु  थे धरा पर
 औरंगजेब का दुसाहस देखो
 जो चाहता था मिटाना
सनातन धर्म को ही...
 "करवा रहा है औरंगजेब
जबरन हमारा   धर्म परिवर्तन
हम अपवित्र हो जाएंगे
नहीं कोई अब  हमारा रक्षक
गुरु जी  आप ही  रक्षा करो"...
"ये कहो उससे
हम पथ पे चलेंगे केवल गुरु  के"
एक स्वर में कहा सबने
कर लेंगे  हम इस्लाम कबूल
अगर हमारे गुरु जी   करेंगे"...
औरंगजेब  ने गुरु जी  से कहा
"इस्लाम कबूल करो,
अगर ईश्वर  हो
 कोई करामात  दिखाओ,
वर्ना काट दूंगा शीश  तुम्हारा"...
श्रेष्ठ   धर्म है
क्यों परिवर्तन करूं
तुम इस योग्य नहीं
तुम्हें चमत्कार   दिखाऊं
 जो इच्छा हो तुम वोही करो"...
शीश गंज'  साक्षी है
गुरु जी की    शहादत का
उनके अनुपम  बलिदान ने
देश धर्म का महत्व बताया
  आजादी के लिये असंख्य  बलिदान  हुए...

शनिवार, दिसंबर 12, 2015

माता सुनी कुमाता  

पूत कपूत सुने है
 पर न माता सुनी कुमाता
 अगर ये कहावत
पशु-पक्षियों  के लिये कही गयी होती
तो सत्य मान लेता...
क्योंकि मैंने
एक जानवर को
उसके अपने  बच्चे से
बिछड़ने पर
रोते देखा है...
न देखा है कभी
किसी पक्षी को
त्यागते हुए
अपने बच्चों को
संवेदनशील है वो मानवों से अधिक...
ये बात वेद-पुर्ाणों में
कही गयी है
हो सकता है
किसी युग में
माता केवल सुमाता ही होती हो...
पर आज  ये  बालक
जिन्हे त्याग दिया
बेवजह ही इनकी माताओं ने
 करण की तरह जानते हैं
 अपनी माताओं का सत्य...
ये भले ही
प्रसन्न दिखते हों
पर जीवन का  सबसे बड़ा अभाव
इन के उदास नेत्रों में
कभीकभार झलकता तो   है ही है...
इन की माताएं
किसी उच्च कुल की महारानी बन
अपने अतीत का सत्य छुपाए
एक और महाभारत के बहाने
इनके शवों पर रोने के लिये तैयार बैठी हैं...


शुक्रवार, दिसंबर 11, 2015

जैसी संगत वैसी ही रंगत

कुंति गांधारी और द्रौण
ये सभी जीवन भर
करते हैं प्रयास
अपने बालकों के
उच्च चरित्र निर्माण करने का...
 एक अध्यापक  से
पढ़े हुए
या कभी कभी तो
एक  मां के दो पुत्र ही
एक राम एक रावण बन जाता  है...
 पांडव धर्म के पथ पे चले
क्योंकि उन्हे श्रीकृष्ण मिले
कौरवों को साथ मिला
कपटी शकुनी का
वो अधर्मी बनाए गये...
मां केकेयी धर्मआत्मा थी
सब से प्रीय थे उसे राम
मंथरा  की प्रेर्णा  से
एक असंभव कार्य को   भी
पल भर में संभव किया...
मैं सोचता हूं कि
वास्तविक चरित्र निर्माण
 संगत से होता है
जैसी संगत होती है
वैसी ही रंगत दिखती  है...
कोई आसमान छूता है
या तबाह होता है
 ये उस पर निर्भर नहीं करता
ये उसके मित्र, साथी  या 
  प्रेरक  पर निर्भर करता  है...

गुरुवार, दिसंबर 10, 2015

जीवन का है लक्ष्य यहीं।

मैं चल रहा हूं
कहीं रुका नहीं
आयी बाधाएं
मैं झुका नहीं।
जब कहा कदमों ने
ठहरों यहीं
कहा मन ने
ये  मंजिल नहीं।
निश्चय मेरा अटल है,
चाल मेरी धीमे  सही
पहुंचना है मंजिल तक
जीवन का है  लक्ष्य यहीं।

 

बुधवार, दिसंबर 09, 2015

हमे कुछ नहीं चाहिये मुफ्त का कुछ भी

एक नेता
सरकारी स्कूल के
छोटे-छोटे बच्चों को भी
सरकारी योजनाएं
गिनवा रहा था...
दोपहर का भोजन
मिलता है मुफ्त
नहीं लगता
स्कूल आने में किराया
न सिलवानी पड़ती है
वर्दी भी अब...
एक बच्चा
उसी वक्त
मंच के सामने आया
जिसकी फटी   हुई  वर्दी
नेता जी के भाषण पर
मानो व्यंग कर रही हो...
वह कांपते हुए बोला
हमे कुछ नहीं चाहिये
मुफ्त का कुछ भी
बस आप
मेरे पापा की
 शराब छुड़वा दो...