स्वागत व अभिनंदन।

गुरुवार, जुलाई 24, 2014

तुम कुर्सी हो या नशा हो...

शिकस्त खाकर, अंतिम बार,
गया नेता कुर्सी के पास,
सन्बोधित करके कहा उसे,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

जीता था मैं जब चुनाव,
लगा स्वर्ग यहीं है,
संपूर्ण सुख भोगे मैंने,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

जंता आगे पीछे दौड़े,
मैं खुदा हूं, ऐहसास हुआ,
इमान धर्म मैं भूल गया था,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

मांगने गया था जब वोट,
किये थे वादे जंता से,
तुम्हे  पाकर, भूल गया सब,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

दुर्योधन मरा तुम्हारे लिये,
कन्स  ने पिता को बंदी बनाया,
श्री राम अमर हुए, तुम््हे त्यागकर,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

तुम नशवर हो, जाना अब,
हारा हूं, चुनाव जब,
फिर ख्वाइश है तुम्हे पाने की,
तुम कुर्सी हो या नशा हो...

बुधवार, जुलाई 23, 2014

आज भी मुझ को...

उस दिन मैं, जब मिला था तुम से,
वो दिन  याद है, आज भी मुझ को,
तुम्हारी प्यारी-प्यारी बातें,
सुनाई देती हैं, आज भी मुझ को...

साक्षी  है वो वृक्ष आज भी,
छाया मैं जिसकी बैठे थे,
मंद-मंद वो शीतल पवन,
देती है शीतलता,   आज भी मुझ को...

चाहता था मैं साथ चलना,
तुम्हे ये मंजूर नहीं था,
जहां हम अलग हुए,
बुलाता है वो मोड़, आज भी मुझ को...

शायद तुम भूल गयी हो,
वो सावन, वो रिमझिम वर्षा,
 प्रेम के  फूल, जो सूख गये हैं,
देते हैं खुशबू, आज भी मुझ को...

शुक्रवार, जुलाई 18, 2014

सावन...

उदास हुआ दिल आज फिर से,
जब झूम- झूम कर आया सावन,
वोही पुराने ज़ख्म लेकर,
जोर-जोर से बरसा सावन।

हर तरफ जब  हरियाली देखी,
सोचा जीवन भी महकेगा,
केवल मिलन की आस जगाने,
इस बार भी आया सावन।

छम-छम जब वर्षा हुई,
सुलगा  उठी यादें पुरानी,
मंद-मंद जब पवन चली,
हलचल दिल में  मचा गया  सावन।

फूल खिले केवल  ज़ख़्मों के
हिज्र  के गीत पंछी सुनाएं।
बार बार बादल  गरजें,
आया सावन, न भाया सावन।

पपपीहे  तुम उनके पास जाना,
मेरे ये गीत, उनको सुनाना,
न भी सुने, तुम गाते जाना,
बीत न जाए जब तक सावन।

गुरुवार, जुलाई 17, 2014

यादें...



टूट गये खिलौने सब,
नहीं हैं  वो मित्र अब,
बजपन की अब मेरे पास,
यादें हैं केवल शेष,
इनसान चले जाते हैं,
फिर लौटकर नहीं आते हैं,
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

जीवन के इस लंबे सफर में,
मिलते हैं कयी इनसान,
कौन कब तक साथ चलेगा,
हम सभी हैं इस से अन्जान,
वृक्ष के सभी फूल भी,
अलग अलग मुर्झाते हैं...
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

असीम और अनोखा है,
यादों का ये संसार,
बीते हुए दिन हमे,
याद आते हैं बार बार,
जो दिल में जगह बना ले,
वो बहुत ही   याद आते हैं...
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

ये यादें ही दिलों में,
मिलन की आस जगाती  हैं,
बिछड़े हुए इनसानों से,
ख्वाबों में भी मिलवाती हैं,
कुछ यादें तो हंसाती हैं,
कुछ से नैन भर आते हैं...
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

अगर ये यादें न होती,
निरस होता हमारा जीवन,
जाने वाले चले जाते,
लगता केवल सूनापन,
अतीत को याद करके ही,
हम नयी राह बनाते हैं...
हमारे पास वो  केवल,
कुछ यादें छोड़ जाते हैं...

सोमवार, जुलाई 14, 2014

प्रेम नहीं है...



साथ रहना,  प्रेम नहीं है,
लबों से कहना, प्रेम नहीं है,
जलता है पतंगा मौन रहकर,
किसी को जलाना, प्रेम नहीं है...

आता है जब भी सावन,
महकाता  है खुद धरा को,
खुद  ही, सजना संवर्ना,
दिखावा है, प्रेम नहीं है...

बेवफाई की साहेबा ने,
बेचारा मिर्जा ऐसे न मरता,
बेवफाई करके जान देना,
खुदगर्जी है, प्रेम नहीं है...

करता है, सुमन प्रेम जग से,
लुटाता है, सर्वस्व अपना,
माली तुम्हारा इन फूलों से,
स्वार्थ है, प्रेम नहीं है...

तन से तन के मिलन को,
कहते हैं सच्चा प्रेम,
प्रेम है पावन चंदन सा,
तन से  आकर्षण, प्रेम नहीं है...


रविवार, जुलाई 06, 2014

रहेगा अनंत काल तक...



समय तो निराकार   है,
मैं कलम, साकार हूं,
मैं साक्षी हूं हर घटना की,
मैं कल भी थी,
आज भी हूं,
इस धरा पर मेरा अस्तित्व,
रहेगा अनंत काल तक...

आज से नहीं सदियों से,
हम दोनों साथ हैं,
समय  कहीं रुका  नहीं,
मैं कभी थकी नहीं.
हम दोनों का ये अटूट साथ,
रहेगा अनंत काल तक...

जो देखा मैंने,
वो लिखा मैंने,
मेरा लिखा इतिहास बना,
मेरा सिपाही अमर हुआ,
मेरा लिखा हर अक्षर,
रहेगा अनंत काल तक...

मैंने राम कथा लिखी,
जग को गीता का  उपहार दिया,
वेद पुराणों की रचना की,
हर युग का सत्य लिखा,
ज्ञान विज्ञान, सब मेरे कारण,
रहेगा अनंत काल तक...

जब चहा मैंने क्रांति लाई,
दोषियों को दंड दिलवाया,
भ्रम अस्त्र सा  है मेरा प्रहार,
सत्य मार्ग  है मेरा पथ,
सत्य, न्याय  और धर्म,
रहेगा अनंत काल तक...

शुक्रवार, जुलाई 04, 2014

कभी तो यहां भी आया करो...




[कौलिज के समय लिखी चंद पंखतियां, आज इस ब्लौग पर  प्रस्तुत कर रहा हूं]
कभी तो यहां भी आया करो,
नाम लेकर मेरा बुलाया करो,
हर महफिल रौशन है तुम से,
एक दीपक, यहां भी जलाया करो,

दिन उदास है तुम बिन,
दिखता है रात को ख्वाब तुम्हारा
अमावस है जीवन में आज कल,
चांद बनकर छाया करो...

पुष्प से प्यारी तुम्हारी मुस्कान,
कोयल से मीठी  तुम्हारी  वाणी,
सौंदर्य में तुम रति हो,
प्रेम गीत, कंठ से गाया करो...

सोचता हूं कभी कभी,
तुम किस जहां की हूर हो,
आयी हो यहां किस के लिये,
ये सच्च भी बताया करो...