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सोमवार, जुलाई 14, 2014

प्रेम नहीं है...



साथ रहना,  प्रेम नहीं है,
लबों से कहना, प्रेम नहीं है,
जलता है पतंगा मौन रहकर,
किसी को जलाना, प्रेम नहीं है...

आता है जब भी सावन,
महकाता  है खुद धरा को,
खुद  ही, सजना संवर्ना,
दिखावा है, प्रेम नहीं है...

बेवफाई की साहेबा ने,
बेचारा मिर्जा ऐसे न मरता,
बेवफाई करके जान देना,
खुदगर्जी है, प्रेम नहीं है...

करता है, सुमन प्रेम जग से,
लुटाता है, सर्वस्व अपना,
माली तुम्हारा इन फूलों से,
स्वार्थ है, प्रेम नहीं है...

तन से तन के मिलन को,
कहते हैं सच्चा प्रेम,
प्रेम है पावन चंदन सा,
तन से  आकर्षण, प्रेम नहीं है...


8 टिप्‍पणियां:

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