स्वागत व अभिनंदन।

बुधवार, जुलाई 23, 2014

आज भी मुझ को...

उस दिन मैं, जब मिला था तुम से,
वो दिन  याद है, आज भी मुझ को,
तुम्हारी प्यारी-प्यारी बातें,
सुनाई देती हैं, आज भी मुझ को...

साक्षी  है वो वृक्ष आज भी,
छाया मैं जिसकी बैठे थे,
मंद-मंद वो शीतल पवन,
देती है शीतलता,   आज भी मुझ को...

चाहता था मैं साथ चलना,
तुम्हे ये मंजूर नहीं था,
जहां हम अलग हुए,
बुलाता है वो मोड़, आज भी मुझ को...

शायद तुम भूल गयी हो,
वो सावन, वो रिमझिम वर्षा,
 प्रेम के  फूल, जो सूख गये हैं,
देते हैं खुशबू, आज भी मुझ को...

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना कुलदीप ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद सर....
      इसी प्रकार स्नेह रखें...
      सादर।

      हटाएं
  2. आदरणीय शास्त्री जी...
    आपने मुझे मंच पर चर्चा में स्थान दिया आभार...

    जवाब देंहटाएं
  3. चाहता था मैं साथ चलना,
    तुम्हे ये मंजूर नहीं था,
    जहां हम अलग हुए,
    बुलाता है वो मोड़, आज भी मुझ को..
    बेमिसाल अभिव्यक्ति
    स्नेहाशीष

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप का धन्यवाद...
      इसी प्रकार आशीश मिलता रहेगा...

      हटाएं
  4. शायद तुम भूल गयी हो,
    वो सावन, वो रिमझिम वर्षा,
    प्रेम के फूल, जो सूख गये हैं,
    देते हैं खुशबू, आज भी मुझ को...
    --यही तो सच्चा प्यार है। .
    बहुत बढ़िया

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप मेरे ब्लौग पर आये, टिप्पणी देकर मेरा मान बढ़ाया...
      आभार।

      हटाएं

ये मेरे लिये सौभाग्य की बात है कि आप मेरे ब्लौग पर आये, मेरी ये रचना पढ़ी, रचना के बारे में अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें...
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ मुझे उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !