स्वागत व अभिनंदन।

गुरुवार, जून 26, 2014

हम से पूछिये...



क्यों खामोश हैं यहां सब, हम से पूछिये,
जानकर भी अंजान हैं सब, हम से पूछिये।
महफिलों  में चर्चा तो करते हैं सब,
यहां  न बोलेगा कोई, हम से पूछिये...
भीड़ में खड़े हैं, इक लंबी कतार में,
हाथ मिलाना भी मंजूर नहीं, हम से पूछिये...
क्या कहें इनको, जो कहते हों खुद को खुदा,
हकीकत क्या हैं इनकी, हम से पूछिये...
ये गिर्गिट है, जो जानते हैं रंग बदलना,
ये रिशते भी बदलते हैं, हम से पूछिये...

मंगलवार, जून 24, 2014

पावन है गुल...



सुन ऐ बुलबुल,
उस गुल ने,
प्रेम किया था,
केवल तुम से...

बुलबुलें कयी आयी,
सामने उसके,
हृदय में उसके,
केवल तुम थे...

सर्वस्व किया,
तुम पर अर्पण,
न मांगा कुछ भी,
न चहा तुम से....

बुलबुल का स्वार्थ,
देखा सबने,
गुल पावन है,
जग में सब से...

सोमवार, जून 16, 2014

नेत्रों से दूर, न जाने देना...



[मां हाटेशवरी से  प्रार्थना के रूप में चंद शब्द]

स्विकार करो, नमन मेरा,
मैं हूं मां, सुत तेरा,
तेरे दर को छोड़, जाऊं कहां,
सदा  दर पे, शीश झुकाने देना।

सब दिया है तेरा, मैं क्या अर्पण करू,
सत्य  बोलने से, मैं क्यों डरूं,
दो पुष्प लेकर तेरे दर पे आया,
इन पुष्पों को न मुर्झाने देना...

डाली  ने ये पुष्प, धरा पे गिराए,
मैं क्या करता, तेरे दर पे लाए,
मैं अंजान, तुम जानती हो सब,
बस इन्हे मुस्कुराने देना...

चाहते हैं ये फूल खिलना,
नहीं चाहते, ये धूल में मिलना,
ये पुष्प ही है, विश्वास  मेरा,
नेत्रों से दूर, न जाने देना...

मंगलवार, जून 03, 2014

ये सोचकर मन बहलाया...



होंठों की हंसी कहां गयी?
नैनों में नीर कहां से आया।
इस चमन में कल चहल-पहल थी,   ,
आज सूनापन क्यों  है छाया...

चली कहीं से ऐसी पवन,
उजड़  गया,  पल भर  में उपवन,
मैं बस केवल  देखता रहा,
कुछ भी मेरे हाथ न आया...

पूछा मैंने फूलों से,
तुम इतनी जल्दी क्यों मुर्झाए,
कहते कहते रो पड़े,
मन का भेद, मन में  छुपाया,

जो हुआ, वो होनी है,
जो उजड़ गया, नशवर था,
खिलेंगे फूल, महकेगा चमन,
ये सोचकर मन बहलाया...

रविवार, जून 01, 2014

गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...



मानव ने आवाहन किया,
शिवजी  ने मुझे आदेश दिया,
स्वर्ग का सुख छोड़ के आयी,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...

आयी थी मैं धरा पर,
अमृत  सा पावन जल लेकर,
उर्वर  बनाया बंजर को,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...

रोया जब  हिंद मैं भी रोई,
संकटों के समय, मैं भी न सोई,
अर्पण किये भिष्म से सुत,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...

जहां चाह   तुमने, मेरे जल को रोका,
 उद्योगों  का कचरा मुझमे फैंका,
मौन रही, न क्रोधित हुई,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...

चाहते  हो मेरा अस्तित्व बचाना,
जल को मेरे शुद्ध, पावन बनाना,
और नदियों को मत भूल जाना,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...

स्वच्छ होगा जब,  सब नदियों का जल,
सुनहरा होगा, आने वाला कल,
जल बिना, नहीं है जीवन,
गंगा हूं मैं, हिंद की पहचान...